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1971 WAR : दुश्मनों की गोलियां के बीच भी घायल साथी को वापस लाए थे राजाराम

चारों ओर दुश्मनों की चलती गोलियां और आसपास गोली लगने से घायल साथी, इसके बावजूद बहादुरी और जज्बे में कोई कमी नहीं आई। सूबेदार मेजर राजराम(तत्कालीन ग्रेनेडियर) ने बांग्लादेश के भुरंगामारी जिले में एक हाथ से गोली चलाते हुए आठ दुश्मनों को धराशाई कर दिया तो दूसरी ओर आधा किलोमीटर तक दो घायल साथियों को कंधे पर उठाकर लाए और उनकी जान बचाई। स्टेनगन की गोलियां खत्म हुई तो लाठियों से ही दुश्मनों पर हमला किया। 72 वर्षीय राजाराम वर्तमान में सैनिक संस्था के साथ जुड़कर सैनिकों के उत्थान के लिए लगातार कार्य कर रह

By Edited By: Published: Mon, 10 Dec 2018 09:45 PM (IST)Updated: Tue, 11 Dec 2018 09:23 PM (IST)
1971 WAR : दुश्मनों की गोलियां के बीच भी घायल साथी को वापस लाए थे राजाराम
1971 WAR : दुश्मनों की गोलियां के बीच भी घायल साथी को वापस लाए थे राजाराम

लोनी/ गाजियाबाद,(अजय सक्सेना)। चारों ओर दुश्मनों की चलती गोलियां और आसपास गोली लगने से घायल साथी इसके बावजूद बहादुरी और जज्बे में कोई कमी नहीं आई। सूबेदार मेजर राजाराम (तत्कालीन ग्रेनेडियर) ने बांग्लादेश के भुरंगामारी जिले में एक हाथ से गोली चलाते हुए आठ दुश्मनों को धराशायी कर दिया तो दूसरी ओर आधा किलोमीटर तक दो घायल साथियों को कंधे पर उठाकर लाए और उनकी जान बचाई। स्टेनगन की गोलियां खत्म हुई तो लाठियों से ही दुश्मनों पर हमला किया। 72 वर्षीय राजाराम वर्तमान में सैनिक संस्था के साथ जुड़कर सैनिकों के उत्थान के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं।

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1971 के युद्ध के दौरान सूबेदार मेजर राजाराम बंगाल के कूच बिहार की एक पोस्ट पर ग्रेनेडियर रेजीमेंट में तैनात थे। युद्ध छिड़ते ही उन्होंने अपनी बटालियन के साथ बांग्लादेश की बॉर्डर की ओर प्रस्थान किया। 13 नवंबर 1971 के दिन भुरंगामारी पहुंचते ही उन्होंने दुश्मनों पर हमला कर उन्हें सरेंडर करने को मजबूर कर दिया। इस दौरान पाकिस्तानी सेना ने शांति प्रतीक चिह्न दिखाकर सरेंडर करने का झांसा दिया और भारतीय सेना पर हमला कर दिया।

अचानक हुए हमले में 35 जवान गोली लगने से गंभीर रूप से घायल हो गए। इसके बाद भी वह और उनके साथ के करीब 20 जवानों ने पाकिस्तानियों को मुंहतोड़ जवाब दिया और गोलियां बरसा दीं। उन पर लगातार गोलियां बरस रही थीं। अब उन्हें न सिर्फ दुश्मन को नेस्तनाबूद करना था बल्कि घायल साथियों को बेस कैंप तक पहुंचाना था। उन्होंने स्टेनगन से आठ पाकिस्तानियों को मार गिराया। इस दौरान गोलियां खत्म हुई तो लाठियों से भी दुश्मनों पर हमला किया और मौका देखते ही दो साथियों को कंधे पर उठा लिया। आधा किलोमीटर दुश्मन की गोलियों से बचते हुए दोनों को बेसकैंप तक पहुंचाया और उनकी जान बचाई। वापस जाकर हमला किया तो पाकिस्तानी सैनिकों ने उनके सामने सरेंडर कर दिया। 35 में से 31 जवान समय पर इलाज न मिल पाने के कारण शहीद हो गए।

हालांकि बटालियन ने 45 पाकिस्तानी जवानों को मार गिराया और 25 ने सरेंडर कर दिया। एक सप्ताह भी नहीं रहे पत्नी के साथ: 4 जनवरी 1968 को ग्रेनेडियर रेजीमेंट ज्वाइन करने वाले सूबेदार मेजर राजाराम ने जबलपुर मध्यप्रदेश में ट्रे¨नग ली। सितंबर 1969 में उनकी पोस्टिंग उत्तराखंड के जोशी मठ चाइना बार्डर पर की गई। युद्ध के लक्षण देखते हुए 1970 में उन्हें कूच बिहार पोस्ट किया गया। राजाराम बताते हैं कि 14 मई 1966 में कृष्णा देवी से उनकी शादी हुई थी। पुरानी परंपरा के चलते तीन वर्ष के बाद 1969 में पत्नी को गौना कर घर लाया गया। जब दुल्हन बनी कृष्णा देवी घर पहुंची तभी युद्ध का एलान हो गया। राजाराम पत्नी के साथ एक सप्ताह भी नहीं रहे और देश सेवा के लिए बॉर्डर पर चले गए।


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