Move to Jagran APP

कहीं आप भी तो नहीं कर रहे खराब गुणवत्ता वाले कूकर का इस्तेमाल, ई प्लेटफार्म पर बिक रहे 30 फीसद खराब, जानें अन्य डिटेल

जानकारों की मानें तो बाजार से लेकर ई-कामर्स प्लेटफार्म पर बिकते करीब 30 प्रतिशत कूकर की गुणवत्ता खराब है। उत्पाद को सस्ता बनाने और बेचने के चक्कर में गुणवत्ता से खिलवाड़ कर घर में रहते लोगों खासकर गृहणियों की जान से खिलवाड़ जारी है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 01 Dec 2021 01:05 PM (IST)Updated: Wed, 01 Dec 2021 01:09 PM (IST)
कहीं आप भी तो नहीं कर रहे खराब गुणवत्ता वाले कूकर का इस्तेमाल, ई प्लेटफार्म पर बिक रहे  30 फीसद खराब, जानें अन्य डिटेल
दिल्ली के औद्योगिक इलाकों में भी हो रहा है इसका निर्माण

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। कूकर के बिना किचन की कल्पना नहीं की जा सकती है। अमीर हो या गरीब घर, सभी के किचन में यह अनिवार्य है, लेकिन भरोसे के साथ खरीदे जाने वाले इस बर्तन की गुणवत्ता के साथ खिलवाड़ जारी है। जानकारों की मानें तो बाजार से लेकर ई-कामर्स प्लेटफार्म पर बिकते करीब 30 प्रतिशत कूकर की गुणवत्ता खराब है। उत्पाद को सस्ता बनाने और बेचने के चक्कर में गुणवत्ता से खिलवाड़ कर घर में रहते लोगों खासकर गृहणियों की जान से खिलवाड़ जारी है। यह स्थिति तब है जब भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) ऐसे नकली उत्पादों की धरपकड़ के साथ गुणवत्ता पर निगरानी के लिए नियमित तौर पर छापेमारी का दावा करता है।

loksabha election banner

हाल ही में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने ऐसे पांच ई-कामर्स कंपनियों के खिलाफ नोटिस जारी किया है, जो खराब गुणवत्ता वाले प्रेशर कूकर की बिक्री कर रहे थे। हैरानी की बात यह कि इनका निर्माण दिल्ली के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में भी हो रहा है। इसमें बवाना, वजीरपुर, नरेला, बादली, झिलमिल व आनन्द पर्वत जैसे औद्योगिक क्षेत्र शामिल है। साथ ही यह थोक बर्तनों के बाजार डिप्टीगंज के साथ दिल्ली-एनसीआर में बिक भी रहा है। मुख्य तौर पर प्रेशर कूकर और गैस चूल्हा दो ऐसे उत्पाद हैं, जिन पर बीआइएस ने मानक तय कर रखे हैं और इन उत्पादों पर आइएसआइ मार्क जरूरी है। पर इसके बिना या जाली मार्क के साथ ऐसे कूकर बेचे जा रहे हैं। ये प्रतिष्ठित कंपनियों के मुकाबले सस्ते हैं। दाम में 30 से 50 प्रतिशत का अंतर पड़ जाता है।

बवाना चैंबर आफ इंडस्ट्री के चेयरमैन प्रकाशचंद जैन कहते हैं कि सस्ता उत्पाद तैयार करने के चक्कर में गुणवत्ता से समझौता हो रहा है। इसमें यह भी स्पष्ट है कि सरकारी निगरानी तंत्र भी नाकाम है। अन्यथा लोगों की जान से खिलवाड़ करने वाले ये उत्पाद नहीं बिक रहे होते। इस मामले में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में भी चोरी होती है, क्योंकि इनमें से अधिकतर बिना बिल के बेचे जाते हैं। गुणवत्ता में समझौते का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कूकर में जिस रबड़ का इस्तेमाल होता है, उसमें 98 प्रतिशत रबड़ और मात्र 2 प्रतिशत कैल्शियम होना चाहिए। हालांकि, तब इसकी लागत 100 रुपये से अधिक की बैठती है, लेकिन मांग महज 20 रुपये तक वाले रबड़ की है।

ऐसे में रबड़ बनाने में कच्चे माल का यह फार्मूला ठीक उलट जाता है। यहीं कूकर में लगे हैंडल और अन्य उत्पादों में होता है। डिप्टीगंज स्टेनलेस स्टील यूटेंसिल ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुधीर जैन कहते हैं कि ऐसे उत्पादों में फर्जी आइएसआइ मार्का खुद निर्माताओं द्वारा लगाया जाता है। कुछ मामलों में यह लगा भी नहीं होता है। ये खेल मुख्य रूप से चोरी-छिपे घरों में चल रही इकाईयों या छोटी फैक्टि्रयों में हो रहा है, क्योंकि जिन्हें अधिक और नियमित उत्पादन करना है। वह बिना गुणवत्ता के अधिक दिन नहीं चल सकते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.