कोरोना से ठीक होने के बाद भी कुछ मरीज कृत्रिम ऑक्सीजन पर निर्भर, ये है बड़ी वजह
गंगाराम अस्पताल के चेस्ट मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. बॉबी भलोत्र ने कहा कि कोरोना से ठीक हुए कई मरीजों को चलने व सीढ़ी चढ़ने पर सांस फूलने की समस्या हो रही है।
नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। कोरोना वायरस के गंभीर संक्रमण से पीड़ित ज्यादातर मरीज भी इस महामारी को मात देने में सफल हो रहे हैं। लेकिन, कोरोना से संघर्ष के दौरान फेफड़े में आए जख्म व सिकुड़न से कुछ मरीजों के फेफड़े कमजोर हो रहे हैं। इस वजह से कुछ मरीज दोबारा अस्पताल पहुंच रहे हैं। कुछ ऐसे भी मरीज हैं जो ऑक्सीजन सिलेंडर पर निर्भर हैं। अपोलो अस्पताल के श्वांस रोग विशेषज्ञ डॉ. राजेश चावला ने कहा कि कोरोना के गंभीर मरीजों में निमोनिया के संक्रमण से फेफड़े की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इस वजह से फेफड़े में फाइब्रोसिस (घाव जैसे धब्बे) बन जाते हैं व फेफड़े में सिकुड़न आ जाती है। इससे फेफड़े की कार्यशैली प्रभावित होती है। कई मरीजों में यह समस्या कई सालों तक रह सकती है और उन्हें लंबे समय तक कृत्रिम ऑक्सीजन पर रहना पड़ सकता है।
गंगाराम अस्पताल के चेस्ट मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. बॉबी भलोत्र ने कहा कि कोरोना से ठीक हुए कई मरीजों को चलने व सीढ़ी चढ़ने पर सांस फूलने की समस्या हो रही है। इसलिए मरीजों के फॉलोअप के लिए डाटा तैयार किया जा रहा है। इससे पता चलेगा कि कोरोना से ठीक होने के बाद कितने मरीजों के फेफड़े कमजोर हुए। पांच-सात मरीज ऐसे हैं जो मई से ही अब तक ऑक्सीजन पर हैं। उनके फेफड़े में फाइब्रोसिस हो गया है। इस वजह से उनकी कार्यक्षमता कमजोर हो गई। कोरोना होने से पहले वे बिल्कुल ठीक थे, लेकिन अब वे ऑक्सीजन सिलेंडर पर निर्भर हो गए हैं।
एम्स के डॉक्टर ने बताई ये वजह
एम्स के पल्मोनरी मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. अनंत मोहन ने कहा कि अभी तक यहां कोई अध्ययन नहीं हुआ है, लेकिन यहां भी कोरोना से ठीक हुए कुछ मरीजों के फेफड़े खराब पाए जा रहे हैं। क्योंकि निमोनिया ठीक होने के बाद उसके कुछ अंश उन मरीजों में बचे रह गए। इसके अलावा सांस की पुरानी बीमारी से पीड़ित मरीजों के फेफड़े पहले से ज्यादा कमजोर हो गए। इस वजह से कोरोना से ठीक होने के बाद भी कुछ मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है।
दो फीसद मरीजों के फेफड़े में बार-बार संक्रमण होने समस्या
लोकनायक अस्पताल के चिकित्सा निदेशक डॉ. सुरेश कुमार ने कहा कि सिर्फ एक से दो फीसद मरीजों में ही सांस फूलने, खांसी व फेफड़े में बार-बार संक्रमण होने की समस्या देखी जा रही है। इसे पोस्ट कोविड सिंड्रोम कहा जाता है। पांच से छह माह बाद पता चलेगा कि कितने मरीजों को फेफड़े की दीर्घकालिक समस्या होती है।
नियमित कराएं जांच
शालीमार बाग स्थित फोर्टिस अस्पताल के पल्मोनरी मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. विकास मौर्या ने कहा कि हल्के संक्रमण वाले मरीजों में समस्या नहीं है। गंभीर संक्रमण से पीड़ित कुछ मरीजों के फेफड़े में फाइब्रोसिस, रक्त थक्का होने की समस्या होती है। इस वजह से कुछ समय के बाद बीमारी दोबारा बढ़ने लगती है। इनमें ऑटोइम्यून व रक्त थक्का करने का सिस्टम अधिक सक्रिय हो जाता है। इस वजह से कोरोना से ठीक होने के बाद भी हार्ट अटैक की आंशका बनी रहती है। ऐसे में मरीजों को नियमित रूप से जांच करवाते रहना चाहिए।