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Sardar Bahadur Sir Sobha Singh: दिल्ली की हर खास इमारत की बढ़ाई जिन्होंने ‘शोभा’

सोभा सिंह को लेकर खुशवंत सिंह ने लिखा है कि ‘उनके छोटे भाई भले ही सांसद और बाद में गर्वनर रहे लेकिन उनको राजनीति से कुछ लेना देना नहीं था बस बिल्डिंग्स बनाते रहें और पैसा बनाते रहे’ दिल्ली की कुल 28 आइकोनिक बिल्डिंग उनके नाम दर्ज हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 18 Apr 2021 06:30 AM (IST)Updated: Sun, 18 Apr 2021 08:18 AM (IST)
Sardar Bahadur Sir Sobha Singh: दिल्ली की हर खास इमारत की बढ़ाई जिन्होंने ‘शोभा’
कनाट प्लेस जैसे प्रतिष्ठित 28 इमारतों की बेमिसाल बनावट सोभा सिंह की ही पहचान है’ जागरण आर्काइव

विष्णु शर्मा। आधी दिल्ली का मालिक.. जी हां, यही कहा जाता था मशहूर पत्रकार खुशवंत सिंह के पिता सरदार बहादुर सोभा सिंह को और वजह भी वाजिब थी, कैसे उन्होंने दो आना वर्ग गज में दिल्ली की आधी के करीब जमीन खरीद ली थी, ये कहानी काफी दिलचस्प है। सोभा सिंह के पिता सुजान सिंह की पंजाब के शाहपुर (अब पाकिस्तान में) में काफी जमीन थी, पश्चिमी पंजाब में परिवहन का व्यवसाय करते थे।

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जब अंग्रेजी सरकार ने भारत में रेलवे लाइन बिछाने का फैसला किया तो अंग्रेजी निवेश लाने के लिए अंग्रेजी अधिकारियों ने उन्हें पांच फीसद ब्याज की गारंटी दी थी, तो इससे भारत के भी कई कांट्रैक्टर जुड़े। सेना को पूरे देश में आवागमन में आसानी, कच्चे माल को पोर्ट तक लाने और अंग्रेजी माल को देशभर में खपाने के लिए जो रेलवे लाइन भारत में बिछाई गई, उसका फायदा सुजान सिंह जैसे लोगों ने भी उठाया। खुशवंत सिंह ने ‘नाट ए नाइस मैन टू नो’ में बताया है कि कैसे उन्होंने पंजाब की कुछ लाइनें बिछाईं और सबसे अहम कालका शिमला लाइन का ज्यादातर प्रोजेक्ट पूरा किया। तभी ये खबर लगी कि कोलकाता से अंग्रेज राजधानी दिल्ली लाने वाले हैं और वो वहां एक पूरा शहर नई दिल्ली के नाम से बसाने वाले हैं।

मौका देख सुजान सिंह अपने बेटों सोभा सिंह और उज्जवल सिंह को लेकर दिल्ली आ गए। उस वक्त भी उनका रसूख देखिए कि तमाम राजा महाराजाओं के साथ सुजान सिंह और 21 साल के सोभा सिंह भी इंग्लैंड के राजा जार्ज पंचम और क्वीन मेरी के दरबार में मौजूद थे, जो 1911 में दिल्ली में लगा था। किंग्जवे कैंप में नए दिल्ली शहर का फाउंडेशन स्टोन राजा रानी ने रखा, क्या पता था किसी को एक दिन उसी फाउंडेशन स्टोन से सोभा सिंह का नाम ऐसा जुड़ जाएगा कि कोई नहीं मिटा पाएगा।

दरअसल हुआ यूं कि नई दिल्ली के दोनों वास्तुविद लुटियंस और बेकर को वो जगह ही पसंद नहीं आई तो नई जगह की तलाश पूरी हुई रायसीना हिल के मालचा गांव में सोभा सिंह रात के अंधेरे में कामगारों के साथ जाकर वो दोनों फाउंडेशन स्टोन उठा लाए और रायसीना हिल पर लगा दिया। ‘खुशवंतनामा’ में खुशवंत सिंह ने लिखा है कि, ‘ये मेरे पिता का पहला जॉब था, बैलगाड़ी किराए पर लेकर उसके साथ साइकिल चलाते हुए रात के अंधेरे में 11 किमी तक लाए क्योंकि लोग उन पत्थरों को अपशगुन मानने लगे थे। इसके लिए कुल 16 रुपये मिले थे।’

तब सोभा सिंह को काफी काम वहां मिल गया, काफी जमीन खरीदी, सबसे महंगी कनाट प्लेस की थी दो रुपये गज। काफी काम भी मिला, लुटियंस दिल्ली किताब में डा. चंदन त्रिखा ने लिखा है कि, ‘कनाट प्लेस में पहली इमारत सुजान सिंह ब्लाक के नाम से बनवाई, दोनों सिनेमाघर रीगल और रिवौली बनवाए, पहले खुद ही संचालन का भी प्रयास किया। साउथ ब्लाक और इंडिया गेट भी बनवाया। राष्ट्रपति भवन का कोर्ट, बडौदा हाउस, आल इंडिया रेडियो, राष्ट्रीय संग्रहालय नेशनल म्यूजियम, विजय चौक, दयाल सिंह कालेज, टीबी हास्पिटल, सेंट कोलंबस स्कूल, रेड क्रास बिल्डिंग, मार्डन स्कूल और तमाम बंगले उनके ही बनवाए हुए हैं।’

सोभा सिंह को लेकर खुशवंत सिंह ने लिखा है कि ‘उनके छोटे भाई भले ही सांसद और बाद में गर्वनर रहे लेकिन उनको राजनीति से कुछ लेना देना नहीं था, बस बिल्डिंग्स बनाते रहें और पैसा बनाते रहे’, दिल्ली की कुल 28 आइकोनिक बिल्डिंग उनके नाम दर्ज हैं, पिता के नाम पर बस उन्होंने सुजान सिंह पार्क बनवाया, बंगलों वाली दिल्ली में पहला अपार्टमेंट कांप्लैक्स भी। बाद में नई दिल्ली नगर पालिका परिषद एनडीएमसी के पहले अध्यक्ष बने और चार बार इस पद पर रहे। सो दिल्ली के इतिहास से उन्हें मिटाना नामुमकिन है।


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