सिपाही संजीव कुमार ने कहा था मरना तो एक दिन हर शख्स को है, क्यों न तिरंगे में लिपट खुद को अमर कर लूं..पढ़िए शहीद की दास्तान
मिशन रक्षक के दौरान देश की आन-बान-शान के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले छह जाट रेजिमेंट में तैनात सिपाही संजीव कुमार अक्सर अपनी बहनों को मजाक में कहा करते थे कि एक दिन उनका शव भी तिरंगे में लिपटा हुआ घर आएगा।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। मरना तो एक दिन हर शख्स को है, क्यों न तिरंगे में लिपट खुद को अमर कर लूं.. मिशन रक्षक के दौरान देश की आन-बान-शान के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले छह जाट रेजिमेंट में तैनात सिपाही संजीव कुमार अक्सर अपनी बहनों को मजाक में कहा करते थे कि एक दिन उनका शव भी तिरंगे में लिपटा हुआ घर आएगा जिसे देखकर उनका व पिता जी का सिर गर्व से और ऊंचा हो जाएगा। उनकी पत्नी मीनू देवी ने कहा ‘24 सितंबर 2001 से दो दिन पूर्व संजीव का फोन आया था कि उनका मिशन पूरा हो गया है और वे छुट्टी पर आ रहे हैं।
उनके इस संदेश से परिवार में उमंग व उत्साह की लहर दौड़ पड़ी थी। पर दो दिन बाद पुलिस टीम आई और उन्होंने मेरे ससुर जी से पूछा कि आप लोगों का कोई जानने वाला श्रीनगर में रहता है। श्रीनगर का नाम सुनते ही मेरे मन में हलचल शुरू हो गई। दूसरी तरफ घर के बाहर गांव के लोग भी एकत्रित हो गए। पुलिस ने बताया कि एक अभियान के दौरान दुश्मनों की गोली से सिपाही संजीव कुमार शहीद हो गए हैं। उस संदेश ने एक पल में मुङो अंधकार में धकेल दिया।’
संजीव के निर्भय स्वभाव से डरते थे स्वजन
उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के पास भटोना गांव के निवासी संजीव कुमार 1995 में सेना में भर्ती हुए थे। दुश्मनों से लोहा लेने से वे कभी पीछे नहीं हटे। वे हमेशा कहते थे कि वे सीने में गोली खाएंगे। संजीव के इसी निर्भय स्वभाव के चलते उनकी बहन व पत्नी को हमेशा उन्हें खो देने का डर लगा रहता था, क्योंकि वे सीमा के खतरों से भलीभांति वाकिफ थीं।
हवाई जहाज से लौटने का किया था वादा
मीनू बताती हैं कि 1996 में उनकी शादी हुई थी। मिशन रक्षक खत्म होने के बाद फोन कर हवाई जहाज से घर आने की बात कही थी। इसी बीच सूचना मिली कि मस्जिद में दुश्मन छिपकर हमले की घात लगाए बैठे हैं। दस जवानों की टीम दुश्मनों के दांत खट्टे करने के लिए मस्जिद पहुंची। इसमें संजीव कुमार भी शामिल थे। पर जवानों को मस्जिद में कोई नहीं मिला और सूचना को गलत साबित कर वे वापस लौट रहे थे कि इस दौरान दुश्मनों ने उन पर हमला बोल दिया।
जिसमें एक जवान को पैर में गोली लग गई। मौजूदा स्थिति में दुश्मनों पर पलटवार करने से ज्यादा जरूरी था खुद की रक्षा करते हमले की रणनीति तैयार करना। पर दुश्मनों ने जवानों को संभलने का मौका ही नहीं दिया व इस दौरान एक खिड़की से दुश्मन की गोली ने संजीव के सीने को छलनी कर दिया।
बेटी साक्षी डागर करेगी पिता के सपनों को पूरा
मीनू बताती हैं कि संजीव की मुत्यु के समय बेटी साक्षी डागर (21) दो और बेटा शानू डागर (22) तीन साल का था। जब संजीव लंबे समय तक घर नहीं आए तो शानू मुझसे अक्सर उनके बारे में पूछा करता था। वह समय मेरे लिए काफी चुनौतियों से भरा था। पर मैं उसे कुछ भी कहकर टाल देती थी कि पिता की मृत्यु का सदमा वह बर्दाश्त नहीं कर पाता। पर जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते गए तो उन्हें दोस्तों से पता चला कि उनके पिता सीमा पर शहीद हो गए हैं। अपने पिता की साहस भरी कहानियों से प्रेरित होकर साक्षी भी सेना में भर्ती होना चाहती हैं। उन्होंने एनसीसी में सर्टिफिकेट कोर्स को पूरा कर लिया है और फिलहाल एनडीए में प्रवेश परीक्षा की तैयारियों में जुटी हुई हैं।