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Coronavirus: वरिष्ठ पत्रकार राजीव कटारा का कोरोना से निधन

वरिष्‍ठ पत्रकार और कादंबिनी मैग्‍जीन के संपादक राजीव कटारा का कोरोना वायरस की वजह से निधन हो गया है। वे कई अखबारों और मैग्‍जीन में वरिष्‍ठ पदों पर रहे। उनके चाहने वालों के लिए ये खबर किसी सदमे से कम नहीं है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Thu, 26 Nov 2020 03:07 PM (IST)Updated: Thu, 26 Nov 2020 03:47 PM (IST)
Coronavirus: वरिष्ठ पत्रकार राजीव कटारा का कोरोना से निधन
नहीं रहे इनस्विंग कॉलम लिखने वाले राजीव कटारा

नई दिल्‍ली। कादंबिनी पत्रिका के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार राजीव कटारा का कोविड-19 से निधन हो गया है। उन्‍होंने बुधवार की रात दिल्‍ली के बत्रा अस्‍पताल में अंतिम सांस ली। दीवाली के बाद वो कोरोना पॉजिटिव हो गए थे। राजीव कटारा अपनी लेखन शैली के जरिए लाखों दिलों में बसते थे। वर्ष 2006 से ही वो हिंदुस्‍तान मीडिया वेंचर से जुडे हुए थे। दो माह पहले तक भी वो कादंबिनी मैग्‍जीन में बतौर संपादक की भूमिका अदा कर रहे थे। इससे पहले वो चौथी दुनिया, अमर उजाला, नवभारत टाइम्स, संडे, राष्ट्रीय सहारा, माया, आजत, दैनिक जागरण, अमर उजाला और दैनिक भास्कर से भी जुड़ चुके थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में अहम योगदान के देने लिए उन्‍हें राष्‍ट्रपति द्वारा गणेश शंकर विद्यार्थी सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका था।

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कादंबिनी की कमान संभालने से पहले वो हिंदुस्‍तान के स्‍पोर्ट्स एडिटर भी रह चुके थे। उनके द्वारा लिखा जाने वाला इनस्विंग कॉलम खेल से जुड़े लोगों की पसंद हुआ करता था। बातों में शालीनता और गंभीरता की वजह से वो हर दिल के करीब थे। राजीव कटारा अपने पहने हुए कुर्ते के लिए भी पहचाने जाते थे। उनकी ये एक पहचान भी थी। बेहद कम लोग जानते हैं कि वो केवल अपनी पत्‍नी के ही डिजाइन किए हुए कुर्ते पहना करते थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में ऐसे सैकड़ों लोग हैं जिन्‍हें उन्‍होंने हाथ पकड़कर इसका ककहरा सिखाया था। इतना ही नहीं कुछ के तो वे इतने करीब थे कि वो लोग इन्‍हें इस फील्‍ड में अपने गार्जियन का दर्जा देते थे।

हिंदुस्‍तान अखबार से जुड़ने से पहले वो हिंदी अकादमी में भी पत्रकारिता के छात्रों को इसके गुण सिखाते थे। यहां पर उनसे ज्ञान लेने वाले बताते हैं कि अक्‍सर वो उनके साथ मेट्रो में या फिर अपनी गाड़ी में साथ जाते थे। इस दौरान कई तरह की बातें होती थी। कभी नहीं लगता था कि वो किसी दूसरे के साथ बैठे हैं। युवाओं के साथ वो युवा होते थे। पत्रकार के साथ एक पत्रकार की भूमिका में वो दिखाई देते थे तो अपनी उम्र के साथियों के बीच वो उनकी ही तरह दिखाई देते थे। उनको जानने वाले उन्‍हें कभी नहीं भूल सकेंगे। खासतौर पर वो लोग जिनको उन्‍होंने हाथ पकड़कर लिखना सिखाया। 1996 में जब उन्‍होंने बतौर फीचर एडिटर दैनिक जागरण से शुरुआत की तो उसमें कई तरह के प्रयोग किए। अमर उजाला में उन्‍होंने सप्‍ताह के फीचर पेज की शुरुआत की। 2003 में सीएसई की फैलोशिप के तहत उन्‍होंने बैतूल में काम किया।

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