Delhi News: बाबा बंदा बहादुर के चरणों में नतमस्तक लाल किला, 300 साल पहले यहीं हत्या का जारी किया गया था फरमान
300 साल पहले लाल किले से मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने बाबा बंदा बहादुर की क्रूर हत्या का फरमान जारी किया था। वही लाल किला बाबा बंदा बहादुर के चरणों में नतमस्तक होगा। उनकी वीरता की गाथा से लाल किले का हर कोना गूंजेगा।
नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। 300 साल पहले लाल किले से मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने बाबा बंदा बहादुर की क्रूर हत्या का फरमान जारी किया था। वही लाल किला बाबा बंदा बहादुर के चरणों में नतमस्तक होगा। उनकी वीरता की गाथा से लाल किले का हर कोना गूंजेगा।
राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण के चेयरमैन तरुण विजय ने बताया कि इतिहास में पहली बार इस तरह का कार्यक्रम हो रहा है। लाल किले में निहंग, उनके शौर्य और पराक्रम की गाथा सुनाएंगे। यही नहीं महरौली में जिस जगह बाबा बंदा बहादुर बलिदान हुए वहां नमन किया जाएगा। यहां एक स्मारक मौजूद है। इसे राष्ट्रीय स्मारक घोषित कराने की कोशिश की जा रही है।
जम्मू के राजौरी में बाबा बंदा बहादुर का जन्म 1670 में हुआ था। इनका नाम माधव दास था। 13 साल की उम्र में ही इन्होने बैराग की दीक्षा ले ली थी और बंदा बैरागी बन गए। कहते हैं कि गुरु गोविंद सिंह जब नांदेड़ गए थे तो वहीं बंदा बैरागी को दीक्षा दी और उन्हें बंदा सिंह बहादुर नाम दिया।
1708 में बंदा सिंह बैरागी नांदेड़ से चले। 1709 में मुगलों ने गुरु गोविंद सिंह की हत्या कर दी। गुरु गोविंद सिंह की पत्नी माता सुंदरी खालसा की मुखिया बनीं। बंदा बैरागी फरवरी 1709 में सोनीपत के पास शेरीखंडा पहुंचे और वहां 60 हजार से अधिक सैनिकों की पूरी फौज खड़ी की।
ये फौज मुगलों से लड़ी और सतलज और यमुना के बीच का इलाका जीत लिया। इतिहासकारों की मानें तो बंदा सिंह बहादुर पहले सिख राजा थे।
बाबा बंदा सिंह बहादुर के अंतिम दिन और दो सिख शहीद बच्चे
पुस्तक में प्रोफेसर हरबंस ङ्क्षसह लिखते हैं कि बाबा बंदा सिंह बहादुर और उनके साथियों की अंतिम दिनों की कहानी बेहद दर्दनाक है। मार्च, 1715 में बंदा सिंह बहादुर अपने सिपाहियों के साथ गुरदास नंगल की गढ़ी में घिर गए।
मुगलों ने गढ़ी में प्रवेश के सभी रास्ते, किले तक भोजन और पीने के पानी पर पूरी तरह से रोक लगा दी। मुगल सेना के लगभग 30 हजार सिपाहियों ने किले को चारों तरफ से घेर लिया था। कई महीनों तक बंदा ङ्क्षसह बहादुर और उनके साथी अपना पेट भरने के लिए गढ़ी में पैदा हुई घास और पेड़ों के पत्ते खाते रहे।
इसके बावजूद बंदा सिंह बहादुर के वफादार सिपाहियों ने आठ महीनों तक मुगल फौजों का डटकर मुकाबला किया। 17 दिसंबर, 1715 को बंदा सिंह बहादुर समेत 740 सैनिकों को लोहे की जंजीरों में जकड़कर कैद कर लिया गया। इन कैदियों को कत्ल करने का काम पांच मार्च 1716 को शुरू हुआ।
लाल किले के पास हर दिन करीब 100 सैनिकों का कत्लेआम किया जाता। बंदा सिंह बहादुर एवं उनके चार साल के बेटे का कत्ल कुतुबमीनार के पास किया गया, लेकिन मारने से पहले बहुत यातनाएं दी गईं। मुगल बादशाह फर्रुखसियर बंदा बैरागी से इस्लाम धर्म कुबूल करने को कहता रहा, लेकिन उन्होंने हमेशा पूरी मजबूती के साथ इन्कार करते रहे। 9 जून 1716 को मुगलों ने उनकी हत्या कर दी।