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पढ़िए कोरोना संक्रमण से बचाव के क्या है दो प्रमुख रामबाण, जरूर करना होगा इनका इस्तेमाल

Coronavirus Prevention Tips तीसरी लहर से लड़ने के लिए दिल्ली का स्वास्थ्य ढांचा पर्याप्त है यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन इतना जरूर है कि बीते दो साल में स्वास्थ्य ढांचे में सुधार तो हुआ है। एक दम से पूरी तरह कायापलट नहीं किया जा सकता।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 05 Jan 2022 03:05 PM (IST)Updated: Thu, 06 Jan 2022 12:23 PM (IST)
पढ़िए कोरोना संक्रमण से बचाव के क्या है दो प्रमुख रामबाण, जरूर करना होगा इनका इस्तेमाल
COVID-19 Prevention Tips: दो साल में स्वास्थ्य ढांचे में सुधार हुआ है मगर एकदम से कायापलट नहीं किया जा सकता।

नई दिल्ली [राहुल चौहान]। हमें यह समझना होगा कि कोरोना से लड़ाई सिर्फ सरकार द्वारा की गई तैयारियों के भरोसे नहीं लड़ी जा सकती। यह जनभागीदारी से ही संभव है। तीसरी लहर से लड़ने के लिए दिल्ली का स्वास्थ्य ढांचा पर्याप्त है, यह नहीं कहा जा सकता। लेकिन इतना जरूर है कि बीते दो साल में स्वास्थ्य ढांचे में सुधार तो हुआ है। एक दम से पूरी तरह कायापलट नहीं किया जा सकता।

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देश में डाक्टर और मरीज के अनुपात में काफी कमी है। देश में 11 हजार मरीजों पर एक डाक्टर है। अब आप सोच सकते हैं कैसी स्थिति है। ऐसे में एकदम से बदलाव संभव नहीं है। तीसरी लहर से मुकाबले के लिए सरकार ने तैयारियां तो की हैं, लेकिन ये पर्याप्त तभी मानी जा सकती हैं, जब लोग भी कोरोना से बचाव के प्रति जागरूक होकर नियमों का पालन करेंगे।

जनभागीदारी है जरूरी

100 साल पहले पेरिस में फ्लू की आपदा से मास्क द्वारा ही जंग जीती गई थी। सिर्फ बेड, आइसीयू बेड बढ़ाने, आक्सजीन प्लांट लगाने, आक्सीजन सिलेंडर और टैंकर खरीदने से यह तैयारी पूरी नहीं होगी। कोरोना से लड़ने के लिए तैयारी तभी पूरी हो सकती हैं जब लोग मास्क लगाकर घर से निकलने की आदत डाल लें। साथ ही वह शारीरिक दूरी का पालन करना भी शुरू कर दें। अभी तक लोगों के अंदर बचाव के नियमों का पालन करने की आदत ही नहीं बनी है।

लोग भीड़भाड़ वाली जगहों पर जाने से परहेज नहीं कर रहे हैं। इसके लिए सरकार को सख्ती के साथ जागरूकता अभियान चलाना होगा। जैसे पोलियो की खुराक के लिए एक स्लोगन चला था दो बूंद जिंदगी की। उसी तरह मास्क लगाने और टीकाकरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए और भी बड़े स्तर पर अभियान चलाने की जरूरत है। पोलियो से लड़ाई भी तब तक पूरी नहीं हुई जब तक इसमें जनभागीदारी नहीं बढ़ी।

दिल्ली-एनसीआर की बात करें तो स्वास्थ्य के प्रति लोग बिल्कुल गैर जिम्मेदार हैं। जब तक कोई गंभीर परेशानी न हो लोग जांच तक नहीं कराते। बिना परेशानी के कोई व्यक्ति अपना ब्लड प्रेशर भी पता नहीं करना चाहता है। ये आदत बदलनी होगी। कोई भी महामारी इतनी जल्दी खत्म नहीं होती। इससे निपटने में समय लगता है। अब किशोरों का टीकाकरण भी शुरू हो गया है। यह भी कोरोना से लड़ने में मददगार साबित होगा, लेकिन सिर्फ टीकाकरण के भरोसे नहीं रहा जा सकता। क्योंकि बचाव का रामबाण मास्क लगाना ही है।

पहले दोनों डोज ले चुके लोगों को भी अब तीसरी डोज (बूस्टर) देनी पड़ रही है। अगर लोग जागरूक हो जाते और संक्रमण को फैलने से रोकने के प्रति गंभीर होते और मास्क लगाने की आदत डाल चुके होते तो शायद यह नौबत नहीं आती। ओमिक्रोन से घबराने की जरूरत नहीं है। लेकिन, बचाव के तरीके वही हैं जो कोरोना की शुरुआत के पहले दिन से चल रहे हैं, पर लोगों की आदतें नहीं बदली हैं। सारी समस्याओं का समाधान बचाव के नियमों का पालन करने में ही है।


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