7 दशक के दौरान गणतंत्र दिवस परेड को लेकर क्या-क्या हुए बदलाव, पढ़िये पूरी स्टोरी
Republic Day 2022 26 जनवरी 1950 को पहली बार राजपथ देश के पहले गणतंत्र दिवस के जश्न का गवाह बना था। णतंत्र दिवस पर राजपथ पर परेड समेत झांकियां निकाली जाती हैं जिसे हजारों लोग प्रत्यक्ष तो करोड़ों लोग टेलीविजन के जरिये लाइव प्रसारण देखते हैं।
नई दिल्ली, आनलाइन डेस्क। अंग्रेज शासन से लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार देश को साल 1947 में आजादी मिली, जबकि तकरीबन 3 साल के बाद 26 जनवरी, 1950 में भारत में संविधान लागू हुआ। इसके साथ ही 1950 से हर साल 26 जनवरी को ही गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। इस दिन दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड को लेकर देश के करोड़ों में जबरदस्त क्रेज होता है। गणतंत्र दिवस पर राजपथ पर परेड समेत झांकियां निकाली जाती हैं, जिसे हजारों लोग प्रत्यक्ष तो करोड़ों लोग टेलीविजन के जरिये लाइव प्रसारण देखते हैं। 26 जनवरी 1950 को पहली बार राजपथ देश के पहले गणतंत्र दिवस के जश्न का गवाह बना था। राजपथ को अंग्रेजों के समय सड़क किंग्सवे के नाम से जाना जाता था। सामान्य भाषा में किंग्सवे मतलब राजा का रास्ता है। परतंत्रता के दौरान इस रास्ते पर ब्रिटेन के शासक चलते थे। वहीं, आजादी के बाद किंग्सवे राजपथ बना और यह इतिहास बन गया। 1950-1954 तक गणतंत्र दिवस इर्विन स्टेडियम, किंग्सवे कैंप से लेकर लाल किला और रामलीला मैदान तक आयोजित होता रहा। फिर वर्ष 1955 से राजपथ 26 जनवरी परेड का स्थायी स्थल बन गया है।
यह होता था परेड का रूट
7 दशक के दौरान गणतंत्र दिवस परेड के लिए कई बदलाव हुए हैं। कोरोना वायरस संक्रमण के चलते पिछले कुछ सालों से परेड के मार्ग में भी बदलाव हुआ है। पहले परेड अजमेरी गेट से नया बाजार, लाहौरी गेट हुए खारी बावली और फिर फतेहपुरी मस्जिद होते हुए चांदनी चौक में पहुंचती थी। इनमें टैंक, राकेट और युद्ध के अत्याधुनिक साज-सामानों के साथ राज्यों व मंत्रालयों की झांकियां होती थीं। इसी तरह से अन्य करतब दिखाते सेना के जवान भी गुजरते थे।
परेड के दौरान लोग करते थे फूलों की बारिश
चांदनी चौक तक गलियों और सड़कों को सजाया जाने लगता था। हर जगह तिरंगे लहरा रहे होते थे। सड़क के दोनों और तख्त और कुर्सियां डाली जाती थीं। चाट-पकौड़ी की भी दुकानें लग जाती थीं। फुटपाथ से लेकर छत और छज्जे लोगों से भरे होते थे। तकरीबन 11.30 परेड चांदनी चौक की सड़क से गुजरती थी। लोग फूलों की बारिश करते थे।
तीन दिन रहता था जश्न का माहौल
चांदनी चौक के कारोबारी प्रदीप गुप्ता उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि तब वे स्कूल में पढ़ते थे। उनके पिता की कटरा अशर्फी में कपड़े की दुकान थी। ऐसे में कटरे के सामने ही सड़क किनारे फुटपाथ पर तख्त लग जाता था। परेड के बाद तीन दिन तक लालकिला चांदनी चौक वालों के मस्ती और घूमने का मुख्य ठिकाना होता था, क्योंकि झांकियां इसी में देखने के लिए रखी जाती थीं।
टाउन हाल की होती थी विशेष सजावट
तख्त लगना मान-सम्मान का भी प्रतीक होता था। तब चांदनी चौक में अलग ही जश्न का माहौल हुआ करता था। आज तिरंगे वाली टोपी का चलन है, जबकि उस समय सफेद टोपी को आजादी का प्रतीक माना जाता था। तब लोग खासकर बुजुर्ग सफेद टोपी लगाकर परेड देखने आते थे।
घरों में बनते था पकवान
इस दौरान यानी 26 जनवरी के दिन घरों में अच्छे पकवान बनते थे। कूचे व कटरों के मुख्य द्वारों को फूलों से सजाया जाता था। अच्छी तरह सफाई होती थी। पूरे सड़क किनारे जगह-जगह तिरंगे लगाए जाते थे। कागज की पतंगें लटकाई जाती थीं। टाउन हाल की तो विशेष सजावट और लाइटिंग होती थी।
नए कपड़े पहनकर लोग देखते थे परेड
नए कपड़े पहनकर लोग तख्तों पर आकर बैठ जाते थे। परेड के आने के समय तक इतनी भीड़ हो जाती थी कि कोई हिल भी नहीं सकता था, इसलिए लोग सुबह आठ बजे से ही पहुंचकर अपने लिए स्थान चुन लेते थे। यही हाल कमोबेश छतों और छज्जों पर होता था। खासकर, महिलाएं ऊपर से परेड को देखती थीं। परेड अजमेरी गेट से नया बाजार, लाहौरी गेट हुए खारी बावली फिर फतेहपुरी मस्जिद होते हुए चांदनी चौक में पहुंचती थी। इनमें टैंक, राकेट और युद्ध के अत्याधुनिक साज सामानों के साथ राज्यों व मंत्रालयों की झांकियां होती थीं।
इस दौरान देशभक्ति के नारों से आसमान गूंजने लगता था। यह परेड लालकिला में जाकर संपन्न होता था। यह आजादी के बाद से ही चलता आ रहा था, लेकिन वर्ष 2000 के आस-पास सुरक्षा कारणों से परेड का रास्ता बदल दिया गया है। अब यह बहादुरशाह जफर मार्ग और सुभाष मार्ग होते हुए सीधे लालकिला पहुंचता है।