नई और पुरानी दिल्ली बनाने में भी कम नहीं आई थीं अड़चनें, पढ़ें- इतिहास से जुड़ी रोचक जानकारियां
लार्ड हार्डिंग को जब वायसराय बनाया तो तीन बड़ी जिम्मेदारियां सिर पर थीं मिंटो मार्ले सुधारों से उत्पन्न रोष को कम कर भारतीयों से नरम रिश्ते बनाना राजधानी को कलकत्ता (अब कोलकाता) से दिल्ली लाना और किंग जार्ज पंचम के लिए 1911 में दिल्ली दरबार आयोजित करना।
नई दिल्ली [विष्णु शर्मा] सेंट्रल विस्टा पर तो हाई कोर्ट ने याचिका रद करके इस विरोध को बंद करने की पहल कर दी है लेकिन आपके लिए ये जानना दिलचस्प होगा कि चाहे वो अंग्रेजों की बनाई नई दिल्ली हो या शाहजहां की बनाई हुई पुरानी दिल्ली या शाहजहांनाबाद, लोकतंत्र ना होने के वाबजूद बिना विरोध या अड़चनों के कोई भी काम पूरा नहीं हुआ था।
लार्ड हार्डिंग को जब वायसराय बनाया तो तीन बड़ी जिम्मेदारियां सिर पर थीं, मिंटो मार्ले सुधारों से उत्पन्न रोष को कम कर भारतीयों से नरम रिश्ते बनाना, राजधानी को कलकत्ता (अब कोलकाता) से दिल्ली लाना और किंग जार्ज पंचम के लिए 1911 में दिल्ली दरबार आयोजित करना। पहले तो कलकत्ता में अब तक जम चुके अंग्रेजी अधिकारियों और व्यापारियों ने ही विरोध किया और इसे पैसे की बर्बादी बताया। तब हाॄडग ने उस वक्त के भारत सचिव को लिखा था, 'अगर मैं राजधानी पर कम पैसे खर्च करता हूं, तो वो मेरी कंजूसी पर विरोध करेंगे, लेकिन मैं एक गोदाम भी बनाता हूं तो उसे ये पैसे की फिजूलखर्ची बताकर विरोध करेंगे'।
दूसरा विरोध क्रांतिकारियों की तरफ से हुआ लार्ड हार्डिंग हाथी पर बैठकर दिल्ली में घुसा, तो रासबिहारी बोस, अमीचंद, बसंत कुमार विश्वास आदि ने बम फेंक दिया, जिससे वायसराय घायल हो गया। तीसरा विरोध फिर आॢकटेक्चर आदि को लेकर हुआ। किंग जार्ज पंचम और क्वीन मेरी ने किंग्जवे कैंप में नई दिल्ली की आधारशिला रखी, लेकिन आॢकटेक्ट लुटियंस और बेकर को वो जगह पसंद नहीं आई। हाॄडग चाहता था कि नई राजधानी मुगलों की दिल्ली का जवाब होना चाहिए, उससे ज्यादा दूर नहीं होनी चाहिए। तालकटोरा के एलाइनमेंट को लेकर कुछ समस्या आई और मालचा दूर लगा तो रायसीना हिल को तय किया गया और रातोंरात सोभा सिंह से बैलगाड़ी में रखकर आधारशिला मंगवाई गई।
हार्डिंग चाहता था नई राजधानी की इमारतों में भारतीयता दिखे, जबकि हार्डिंग पेपर्स में जानकारी मिलती है कि लुटियंस इटेलियन आर्किटेक्चर से काफी प्रभावित था, उसने ताजमहल तक को 'बिश' बता दिया था। फिर भी हाॄडग के दवाब में लुटियंस को मांडू, आगरा, फतेहपुर सीकरी आदि जगह जाना पड़ा। उसने केवल संसद भवन के लिए मुरैना के 64 योगिनी मंदिर के स्वरूप को पसंद किया। डिजाइन के मामले में हार्डिंग को स्विंटन जैकब पसंद था, लेकिन लुटियंस और बेकर
ने उसे इतना परेशान कर दिया कि इस रिटायर्ड इंजीनियर ने उनकी टीम मे शामिल होने से ही मना कर दिया था।
...और हाई प्वाइंट से वायसराय हाउस छिप गया
सबसे बड़ा झगड़ा हुआ हरबर्ट बेकर और एडवर्ड लुटियंस में, वायसराय हाउस (राष्ट्रपति भवन) को लेकर। बेकर को काम दिया गया था राष्ट्रपति भवन से पहले सचिवालय की दोनों बिल्डिंग यानी नार्थ ब्लाक और साउथ ब्लाक बनाने का। बेकर ने तय किया कि मुख्य भवन 400 गज पीछे होना चाहिए और बिना लुटियंस को जानकारी दिए उसने वायसराय को भी राजी कर लिया। इन दोनों इमारतों और बीच की सड़क के हाई प्वाइंट पर होने के चलते वायसराय हाउस छिप गया। लुटियंस की बेकर से बिगड़ गई, लुटियंस ने ये भी आरोप लगा दिया कि बेकर ये सब पैसे के लिए कर रहा है।
एक कमेटी भी बनाई गई, लेकिन 1916 में उसने लुटियंस के तर्क को खारिज कर दिया। 1916 में हार्डिंग के जाने के बाद लुटियंस ने कुछ मन की भी चलाई। तो बादशाह होने के बावजूद मुश्किलें शाहजहां को भी कम नहीं आईं, आगरा से राजधानी दिल्ली तो लाया शाहजहां लेकिन परदादा हुमायूं की राजधानी दीनपनाह से दूर ही रहा। शाहजहां ने अपने मीर-ए-इमारत को भेजा, जिसने नई राजधानी के लिए तालकटोरा और रायसीना हिल के इलाके को पसंद किया। लेकिन जब उसके दोनों भरोसेमंद कारीगर उस्ताद हीरा और हामिद ने आकर उस इलाके की मिट्टी की जांच की तो जगह खारिज कर दी। उसमें खनिज थे, पोटेशियम नाइट्रेट काफी था उनकी सलाह पर शाहजहां ने यमुना किनारे सलीमगढ़ फोर्ट के पास की जगह को मंजूरी दे दी। काम शुरू हो गया, शाहजहां ने अपने कई भरोसेमंद लोगों जैसे इज्जत खान, अल्लावर्दी खान आदि को भी उनके साथ निरीक्षण के लिए लगा दिया।
1638 में लालकिले की आधारशिला भी रख दी गई। अचानक उस्ताद हीरा और हामिद दोनों गायब हो गए, जिन लोगों ने वो जगह तय की, वही गायब हो गए तो लोगों के हाथ पांव फूल गए। शाहजहां काफी गुस्सा हो गया, मीर बकर अली खान ने लिखा है कि उनकी गिरफ्तारी के आदेश जारी होने ही वाले थे कि वो प्रकट हो गए, वजह बताई कि आधारशिला के बाद वो काम शुरू करने से पहले थोड़े दिन मिट्टी पर उसका असर देखना चाहते थे, ताकि पता चले कि इमारत कितनी मजबूती
से खड़ी रह पाएगी। शाहजहां को भी समझ आया और उनको माफ कर दिया। ये लोग तो शहंशाह और वायसराय थे, जब आधिकारिक विपक्ष होता ही नहीं था, तब भी उन्होंने विरोध या अड़चनें झेलीं, ऐसे में सेंट्रल विस्टा पर हो रहा विरोध तो मामूली लगता है।