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पढ़िये- देश के सबसे पुराने फाइटर पायलट की स्टोरी, 100 साल की उम्र में भी जोश हाई है

दलीप सिंह मजीठिया पत्नी जोन के साथ आज भी जौनापुर फार्म हाउस में साथ मॉर्निंग-इवनिंग वॉक करते हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 27 Jul 2020 10:51 AM (IST)Updated: Mon, 27 Jul 2020 11:22 AM (IST)
पढ़िये- देश के सबसे पुराने फाइटर पायलट की स्टोरी, 100 साल की उम्र में भी जोश हाई है
पढ़िये- देश के सबसे पुराने फाइटर पायलट की स्टोरी, 100 साल की उम्र में भी जोश हाई है

नई दिल्ली [अरविंद कुमार द्विवेदी]। भारत के सबसे उम्रदराज फाइटर पायलट स्क्वाड्रन लीडर दलीप सिंह मजीठिया सोमवार को 100 वर्ष के हो गए। कोरोना महामारी के कारण उनका 100वां जन्मदिन घर के सदस्यों के बीच बेहद सादगी से मनाया जाएगा। उनकी पत्नी जोन अपना 99वां जन्मदिन मना चुकी हैं। अभी दोनों अपने जौनापुर फार्म हाउस में साथ-साथ मॉर्निंग-इवनिंग वॉक करते हैं। योग करने के दौरान प्राणायाम भी करते हैं। अपनी फिटनेस व जिंदादिली के बलबूते यह दंपती अभी युवा जैसा लगता-दिखता है।

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1940 में भरी थी पहली उड़ान

दलीप सिंह ने पांच अगस्त 1940 को दो ब्रिटिश प्रशिक्षकों के साथ लाहौर के वॉल्टन एयरफील्ड से टाइगर मोथ एयरक्राफ्ट में अपनी पहली ट्रेनिंग के लिए उड़ान भरी थी। इसके दो सप्ताह बाद उन्होंने अपनी पहली सोलो उड़ान भरी थी। तब वह सिर्फ 20 साल के थे। वह बताते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा (म्यांमार) के मोर्चे पर हॉकर हर्रिकेन उड़ाना उनके जीवन का सबसे अहम अभियान था। ईस्ट इंडिया कंपनी में अपनी सेवा देते हुए उन्होंने बर्मा के मोर्चे पर उड़ान भरी थी। यह मोर्चा जितना कठिन था, उतनी ही रोमांचक भी। इसमें उनका मुकाबला जापान के फाइटर जीरो से था। दलीप सिंह कहते हैं कि उन्होंने वायुसेना के लिए वेस्टलैंड वैपिटी, आइआइए, हॉकर ऑडैक्स और हार्ट समेत तमाम विमान उड़ाए, लेकिन सबसे प्यारा हर्रिकेन था। यह उस समय का दुनिया का सबसे एडवांस एयरक्राफ्ट था। इसने ब्रिटेन की लड़ाई जीती थी।

सैनिक से की थी शादी

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उन्हें ब्रिटिश कॉमनवेल्थ ऑक्यूपेशन फोर्सेज (बीसीओएफ) के लिए चुना गया। उनकी पोस्टिंग बीसीओएफ के ऑस्ट्रेलिया स्थित मुख्यालय में हुई। वहीं पर उनकी मुलाकात जोन से हुई। जोन वहां नेवी में थीं और जोन के पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में थे। 18 फरवरी, 1947 को दलीप सिंह ने गोरखपुर स्थित घर में जोन से शादी कर ली। उनकी दो बेटियां मीरा सिंह व किरण हैं।

वायुसेना से रिटायर होकर बने प्राइवेट पायलट

अगस्त 1947 में वायुसेना से रिटायर होने के बाद दलीप सिंह अपने खुद के प्लेन उड़ाने लगे। दरअसल, युद्ध खत्म होने से कुछ पहले अमेरिकियों ने भारत में अपने कुछ विमान बेच दिए। उनके चाचा ने एक 9 सीटर व एक 4 सीटर विमान खरीद लिया। पायलट का लाइसेंस था ही, इसलिए गोरखपुर से लखनऊ आना हो या दिल्ली या फिर पंजाब, दलीप ने दोनों प्लेन देश भर में उड़ाए। नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री के अनुरोध पर उन्होंने 23 अप्रैल, 1949 को काठमांडू घाटी में अपना प्लेन उतारा। यहां पर किसी विमान की यह पहली लैंडिंग थी। दलीप कहते हैं वहां के लोगों को अचरज हो रहा था। उससे पहले शायद वहां के लोगों ने प्लेन देखा भी नहीं था। प्लेन देखने के लिए वहां भीड़ लग गई थी। हालांकि आज वहां एयरपोर्ट बना है। वह कहते हैं कि आज भारतीय वायुसेना में मेरा कोई बैचमेट नहीं है। लेकिन, मुझे लगता है कि मैं आज भी भारतीय वायुसेना का हिस्सा हूं।


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