पढ़िए- क्यों और कैसे विदेश में जन्मा यह शख्स बन गया था दिल्ली का पहला सीएम
सच तो यह है कि दिल्ली अपने एक दौर के शिखर नेता को भूल ही गई। ताज्जुब की बात है कि दिल्ली के कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने तक ने उन्हें याद नहीं किया।
नई दिल्ली, जेएनएन। चलती, भागती और दौड़ती जिंदगी में बहुत कुछ पीछे छूटता जा रहा है। इसी भागदौड़ में दिल्ली वालों ने अपने मुख्यमंत्री की जयंती तक को भूला दिया। जी हां, दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश का 16 जून को उनका 100 वां जन्मदिन था। यह हैरानी की बात है कि इस तारीख पर न तो कोई सरकारी आयोजन हुआ और न ही लोगों ने उन्हें याद दिया। सच तो यह है कि दिल्ली अपने एक दौर के शिखर नेता को भूल ही गई। ताज्जुब की बात है कि दिल्ली के कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं ने तक ने उन्हें याद नहीं किया।
अजब इत्तेफाक था ब्रह्म प्रकाश का दिल्ली का पहला सीएम बनना
उस दौर के बड़े कांग्रेस नेताओं की मानें तो चौधरी ब्रह्म प्रकाश का दिल्ली का पहला मुख्यमंत्री बनना अजब इत्तेफाक था। दिल्ली विधानसभा का चुनाव अक्टूबर 1951 में हुआ। परिणाम आने के बाद कांग्रेस विधायकों ने ‘तेज प्रेस’ वाले लाला देशबंधु गुप्ता को अपना नेता चुन लिया था, लेकिन मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही उनकी एक हादसे में मृत्यु हो गई। इसके बाद चौधरी ब्रह्म प्रकाश की सीएम बनाया गया, जो 17 मार्च 1952 से 12 फरवरी 1955 तक मुख्यमंत्री रहे।
ब्रह्म प्रकाश को पहला सीएम बनाने में नेहरु जी की भूमिका
बताया जाता है कि ब्रह्म प्रकाश को मुख्यमंत्री की कुर्सी दिलवाने में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु की भूमिका थी, क्योंकि वे कांग्रेस के काफी कनिष्ठ नेताओं में थे. ऐसे में उनका सीएम बनना नेहरू की वजह से संभव हआ था। बताया जाता है कि वे कभी भी किसी विशेष वाहन से नहीं, बल्कि आम लोगों की तरह बसों में सफर करते थे। और चलते-चलते लोगों से उनकी समस्याएं भी सुन लिया करते थे। इस तरह के नेताओं की आज तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते। वे मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद चार बार सांसद रहे। वे तब भी डीटीसी बसों में यात्रा करने से परहेज नहीं करते थे। उन्हें बड़ा ओहदा कभी बदल नहीं सका था।
दिल्ली में अपना घर तक नहीं बना पाए पहले सीएम
आज के नेतागण को देखेंगे तो सरकारी बंगलों का मोह सर्वोच्च अदालत की फटकार के बाद भी नहीं छूटता है। एक चमचमाती जीवन शैली के आदी हो चुके होते हैं। लेकिन ब्रह्म प्रकाश उस वक्त में राजधानी में अपना एक आशियाना तक नहीं बना पाए थे। जो दिल्ली का शेर-ए-दिल्ली हो उसके पास छत नहीं थी। वे अब लगभग लुप्त हो गई नेताओं की उस पीढ़ी से ताल्लुक रखते थे जो पढ़ती-लिखती थी। वे कनॉट प्लेस में हर दूसरे दिन आकर कोई किताब अवश्य लेते थे।
सरनेम लिखना नहीं था पसंद
अब नए सिरे से मुख्यमंत्री का चयन होना था। नेताओं के लिए पिता तुल्य ब्रह्म प्रकाश के बारे में बहुत से लोगों को लगता है कि वे जाट समाज से होंगे। पर वे यादव थे। वे अपनी जाति को कभी अपने नाम के साथ नहीं जोड़ते थे। उन्होंने उपर्युक्त जानकारी इस नाचीज लेखक को 1987 में एक साक्षात्कार के दौरान दी थी। साक्षात्कार इंडिया इंडिया सेंटर (आइआइसी) में हुआ था। वे आइआइसी में ही बैठा करते थे। वहां पर ही उनके मित्र आ जाते थे। तब तमाम देशविदेश के मसलों पर लंबी चर्चाएं हो जाती थी। अगर उनके साथ कोई दोस्त नही होते तो वे आइआइसी के पुस्तकालय में चले जाते। वहां पर लगातार अध्ययन जारी रहता।
कांग्रेस के बहुत से नेताओं की पौध तैयार की उन्होंने
कांग्रेस के एचके एल भगत, जगदीश टाइटलर, ब्रज मोहन, सज्जन कुमार और राम बाबू शर्मा जैसे दर्जनों नेताओं ने उनकी शार्गिदी में ही सियासत की दुनिया में जगह बनाई थी। दिल्ली कांग्रेस में उनकी स्थिति पिता तुल्य वाली रही थी।
अचानक टूट गया कांग्रेस से नाता
लंबे समय तक कांग्रेस में रहने के बाद वे 1980 के दशक में लोकदल से जुड़ गए थे। केंद्र में मोरारजी देसाई की सरकार के गिरने के बाद बनी चरण सिंह की सरकार में वे केंद्रीय खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्री भी रहे। उनकी 1993 में मृत्यु हो गई थी। बहरहाल, दिल्ली ने अपने पुराण पुरुष को भुलाकर अपनी बेदिली का ही परिचय दिया।
उनकी बोली, देहाती पहनावा और व्यवहार कुछ ऐसा था कि लोग खिंचे चले आते थे। ठेठ बोली में मिठास ऐसी की दिल्ली देहात के वो अगुआ बन गए थे। जी हां, हम बात कर रहे हैं दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश की। जिन्होंने सत्याग्रह आंदोलन एवं भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई थी। पंडित जवाहरलाल नेहरू जी के लाडले रहे। सबसे खास बात दिल्ली के कोने-कोने में उनके प्रशंसक रहे।
नैरोबी की तर्ज पर करना चाहते थे दिल्ली का विकास
अपने कार्यकाल में चौधरी ब्रह्म प्रकाश ने जहां दिल्ली में विकास कार्यों की नींव रखी वहीं उनकी दूरदर्शिता सहकारिता कमेटियों के निर्माण के रूप में सामने आई। केन्या से उनके लगाव का नतीजा था कि वो दिल्ली शहर का विकास नैरोबी की तर्ज पर करना चाहते थे। राजनीतिक गलियारों में उनकी धमक थी। उनके कार्यों का ही नतीजा था कि सन् 2001 में भारत सरकार ने इन पर डाक टिकट निकाला।
मुगल-ए-आजम भी कहते थे ब्रह्मप्रकाश को
1956 में दिल्ली विधानसभा को भंग कर इसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित कर दिया गया। दिल्ली विधानसभा की बात होते ही लोग 1993 में गठित विधानसभा को पहली विधानसभा मानते हैं। जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है। वर्ष 1991 में 69वें संविधान संशोधन के अनुसार दिल्ली को 70 सदस्यों की एक विधानसभा दे दी गई जिसमें 12 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित थीं। ब्रह्म प्रकाश को शेर-ए-दिल्ली, मुगले आजम जैसे उपनाम भी मिले।
केन्या जन्मभूमि, दिल्ली कर्मभूमि
बकौल आरवी स्मिथ, चौधरी ब्रह्म प्रकाश का जन्म केन्या में हुआ था। 16 साल की उम्र में मां-बाप संग दिल्ली आए थे। उनकी जिंदगी में केन्या के परिवेश का काफी प्रभाव रहा। वहां मुस्लिम आबादी ज्यादा थी। उनके संस्कार ही उन्हें जाति, धर्म के बंधनों से ऊपर रखते थे। यहां दिल्ली में काफी समय तक उनके नाम का गलत उच्चारण होता था। खासकर, अंग्रेजी में स्पेलिंग संबंधी गलतियां होती थीं। उच्चारण भी प्रकाश की जगह परकाश करते थे।
दिल्ली देहात के अगुआ
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आंदोलनों में दिल्ली देहात ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। इस कड़ी में आबादी पर नजर
डालें तो पता चलता है कि दिल्ली में रहने वाले लोगों में 1901 में 48.6 फीसद, 1911 में 43.7 फीसद, 1921 में 37.7 फीसद और 1941 में 29.7 फीसद लोग गांव के निवासी थे।
जू की जगह होता लायंस पार्क
ब्रह्म प्रकाश जिम कॉर्बेट से बहुत प्रभावित थे। जिम कॉर्बेट के पूर्वज आयरलैंड के हरित चारागाह छोड़ हिंदुस्तान आकर बस गए थे। बाद में जिम कॉर्बेट केन्या जाकर बस गए। उनकी मृत्यु भी वहीं हुई। बचपन में ही एक बार ब्रह्म प्रकाश, कॉर्बेट की कब्र पर भी गए थे। वो उनके कार्यों से काफी प्रभावित थे। इसी तरह धौलपुर के एक ब्रिटिश परिवार ने भी उन्हें काफी प्रभावित किया था। इनका नाम था जार्ज एडमसन। ये भी बाद में केन्या जाकर बस गए थे। इन्होंने वहां लायंस (शेर) पार्क बनवाया था। इन्हें लायंस प्रोटेक्टर के रूप में भी जाना जाता है। ब्रह्म प्रकाश दिल्ली चिड़ियाघर को लायंस पार्क की तर्ज पर विकसित करना चाहते थे।
जब अंग्रेजों का किया बखान
आरवी स्मिथ के मुताबिक, आजादी के बाद के दिनों में ब्रह्म प्रकाश एक सभा में शामिल हुए थे। लोग, अंग्रेजों
की बहुत बुराई कर रहे थे। इस पर ब्रह्म प्रकाश ने कहा कि, यह सच है कि अंग्रेजों की दास्ता से मुक्ति जरूरी
थी। हमें गुलामी में नहीं रहना है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि अंग्रेजों ने भारत में रेल समेत कई विकास की सुविधाएं दीं। प्रत्येक जिले में सिर्फ तीन पोस्ट पर अंग्रेज नियुक्त होते थे। पहला डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, दूसरा सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस और तीसरा कोतवाल। जबकि इनके मातहत सारे भारतीय होते थे। लेकिन तीन अधिकारी पूरा जिला संभालते थे। उनके इस वक्तव्य की सभा में मौजूद कई लोगों ने विरोध जताया था।
सहकारिता विकास के सूत्रधार
प्रारंभिक स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक सहकारी क्षेत्र में उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। 40 वर्षों तक सहकारिता का उन्होंने मार्गदर्शन किया। वर्तमान में सहकारी दर्शन और ढांचे का विभिन्न स्तरों पर जो विकास हुआ, उसका श्रेय काफी हद तक ब्रह्म प्रकाश को जाता है। सही मायने में वे सहकारिता के अंतरराष्ट्रीय नेता थे। उन्होंने दिल्ली किसान बहुउद्देशीय सहकारी समिति, दिल्ली केंद्रीय सहकारी उपभोक्ता होल सेल स्टोर, दिल्ली राज्य सहकारी इंस्टीट्यूट (वर्तमान दिल्ली राज्य सहकारी संघ) का गठन किया। दिल्ली में सहकारिता के विकास के वह मुख्य सूत्रधार और प्रेरणा के जरिया थे।
(लेखक विवेक शुक्ला साहित्यकार भी हैं)
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