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Safdarjung Tomb: पढ़िये- दिल्ली के इस 'प्रधानमंत्री' के बारे में, जिसके नाम पर बना है मकबरा

Safdarjung Tomb सफदरजंग का जन्म 1708 में ईरान के निशापुर में हुआ था। उसकी मृत्यु 1754 में सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) में हुई। उसका पुरा नाम अब्दुल मंसूर मुकीम अली खान मिर्जा मुहम्मद सफदरजंग था। यहां पर पर्यटक खूब आते हैं।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 19 Nov 2020 11:31 AM (IST)Updated: Thu, 19 Nov 2020 11:31 AM (IST)
Safdarjung Tomb: पढ़िये- दिल्ली के इस 'प्रधानमंत्री' के बारे में, जिसके नाम पर बना है मकबरा
यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत राष्ट्रीय स्मारक है।

नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। यूं तो राजधानी दिल्ली में बहुत कुछ देखने के लिए है, मगर सफदरंज का मकबरा भी किसी मायने में अन्य स्मारकों से कम नहीं है। यहां खासियत यह है कि इस मकबरे में कई मंडप हैं, जिन्हें अलग अलग नामों से जाना जाता है। इनमें तीन प्रमुख हैं। एक जंगल महल (पैलेस ऑफ वुड्स) है दूसरा मोती महल (पर्ल पैलेस) और तीसरा बादशाह पसंद (किंग्स फेवॅरिट) है। यह भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अंतर्गत राष्ट्रीय स्मारक है।

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नाम को लेकर कोई भ्रम है और अगर आप सोच रहे हैं कि सफरदजंग कोई बादशाह था, तो आप गलत हैं। दरअसल, वह मुगल बादशाह मुहम्मद शाह का प्रधानमंत्री था। सफदरजंग का जन्म 1708 में ईरान के निशापुर में हुआ था। उसकी मृत्यु 1754 में सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) में हुई। उसका पुरा नाम अब्दुल मंसूर मुकीम अली खान मिर्जा मुहम्मद सफदरजंग था। वह एक कुशल प्रशासक था। वह अपने जीवन काल में कश्मीर, आगरा, अवध आदि प्रांतों का सुबेदार रहा। बाद में वह मुगलिया सल्तनत के अधीन पूरे देश का प्रधानमंत्री बना, मगर यह स्मारक वर्षों से उपेक्षित रहा है।

इस स्मारक का संरक्षण का कार्य ताे लंबे समय से हुआ ही नहीं, देख रेख का भी अभाव रहा। इस बीच अब इस हालात बदल रहे हैं। कुछ समय पहले ही यहां लाइटिंग की व्यवस्था शुरू की गई है। अब आप इसे रात में भी 9 बजे तक देख सकते हैं। लगाई गईं लाइटों में यह स्मारक देखते ही बनता है। अब इनके फव्वारे भी चलाए जाएंगे। मकबरे के चारों ओर चार फव्वारे बने हैं, मगर सालों से बंद पड़े हैं। जिन्हें अब ठीक कराकर चलाया जाएगा। जिसमें सबसे पहले प्रवेश द्वार के सामने वाले फव्वारे को ठीक कराने के बाद चालू कराया भी गया है। इसके बाद तीन अन्य फव्वारे भी चालू किए जाएंगे।

सफदरजंग का मकबरा उसकी स्मृति में 1754 में अवध के नवाब शुजाउद्दौला खां ने बनवाया था। वह सफदरजंग के बेटा था। इसमें सफदरजंग और उसकी बेगम की कब्र बनी हुई है। ये मकबरा एक सफेद समाधि है जो मुगल वास्तुकला का सुंदर नमूना है। यह भले ही और मकबरों की तरह भव्य नहीं है। लेकिन यहां दूर दूर तक फैली हरियाली पर्यटकों का मन मोह लेती है। मकबरे का मुख्य द्वार मकबरे का मुख्य द्वार करीब दो मंजिला है। जिस पर अरबी शिलालेख को देखा जा सकता है। एएसआइ के दस्तावेजों में यह जानकारी मिलती है कि बनाए जाने के समय इस मकबरे के लिए जब पत्थरों की कमी पड़ी तो निजामुद्दीन स्थित अब्दुर्रहीम खानखाना के मकबरे से पत्थर निकाल कर इस मकबरे में लगा दिए गए।

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