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जब बंद हो गए सारे दरवाजे तब जीने का सलीका ही बदल कर अनिता ने लिख दी नई तकदीर

बस का पिछला चक्का अनीता के शरीर के ऊपर से गुजर गया।जिंदगी में तूफान मच गया और फिर निराशा से खुद को निकाल कर नई तकदीर लिख दी। अब दूसरों को भी जीने का राह दिखा रही हैं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sun, 29 Dec 2019 05:22 PM (IST)Updated: Sun, 29 Dec 2019 05:49 PM (IST)
जब बंद हो गए सारे दरवाजे तब जीने का सलीका ही बदल कर अनिता ने लिख दी नई तकदीर
जब बंद हो गए सारे दरवाजे तब जीने का सलीका ही बदल कर अनिता ने लिख दी नई तकदीर

नोएडा [मीरा सिंह]। परिस्थिति बदलना जब मुमकिन ना हो तो मन की स्थिति बदल लीजिए सब कुछ अपने आप बदल जाएगा। एडवोकेट अनीता गुप्ता को देखने के बाद ये पंक्तियां बिल्कुल उपयुक्त लगती हैं। वर्ष 2005 में बस का पिछला चक्का अनीता के शरीर के ऊपर से गुजर गया। जान तो किसी तरह बच गई, लेकिन डॉक्टरों ने कह दिया कि अब हाथ पैर काम नहीं करेंगे। एक झटके में सारे सपने चकनाचूर हो गए।

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कई सारे ऑपरेशन के बाद आईं घर

कई सारे ऑपरेशन के बाद घर आर्ईं, लेकिन 2009 में स्लिप डिस्क की वजह से रीढ़ की हड्डी के तीन टुकड़े हो गए। इन सब से जीकर आगे बढ़ ही रही थीं कि शादीशुदा जीवन में आए उथल-पुथल ने उन्हें इतना तोड़ दिया कि आत्महत्या करने की ठान ली। लेकिन, कहते हैं न डूबते को तिनके का सहारा होता है।

दोस्‍त ने दिखा दी जीने की राह

एक दोस्त ने हौसला देते हुए कहा कि आपका दर्द तो कोई कम नहीं कर सकता, लेकिन जीवन खत्म करने से बेहतर है दिव्यांगों और जरूरतमंदों की मदद करो। इस बात को गांठ बांध जरूरतमंदों की मदद के लिए उनके हाथ ऐसे बढे़ कि आज वह अनगिनत लोगों का सहारा बन गई हैं। यमुना स्पोट्र्स कांप्लेक्स में रहने वाली अनीता पूर्वी दिल्ली स्थित कड़कड़डूमा कोर्ट एडवोकेट हैं, लेकिन काम से इतर वह समाज सेवा का भी काम कर रही हैं।

भीख नहीं रोजगार दो

इस अभियान के तहत दिव्यांगों और भीख मांगने वाले लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए उन्हें रोजगार उपलब्ध कराती हैं। कॉपी, कलम, पानी की बोतल, जूस, बिस्कुट इत्यादि खरीदकर दिव्यांगों को देती हैं और उनसे अपना रोजगार बढ़ाने को कहती हैं ताकि वे अपनी जरूरतें पूरी कर सकें।

अब तक हजारों दिव्‍यांगों को करा दे चुकी है रोजगार

अब तक हजारों दिव्यांगों को वह रोजगार मुहैया करा चुकी हैं। हाल ही में प्रगति मैदान में आयोजित व्यापार मेले में अनीता ने दिव्यागों का एक स्टॉल लगवाया, जहां उन्होंने अपने हुनर से चूड़ी, इयर्र रिंग्स, घर के सजावटी सामान इत्यादि बनाकर उसकी बिक्री की। दिव्यांगों को खुद से जोड़ने के लिए वह फेसबुक और वाट्सएप के जरिये संदेश देती हैं कि जो भी दिव्यांग अपने हुनर के लिए मंच तलाश रहे हैं उनसे संपर्क कर सकते हैं। हर राज्य के सदस्य अनीता से जुड़े हुए हैं। वे सब इस मुहिम को देश के अलग-अलग राज्यों में आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं।

वरिष्ठ नागरिकों को नया जीवन

अनीता कहती हैं एक जज होने के नाते मैं वरिष्ठ नागरिकों को उनके बच्चों से खर्चा दिलवाने में मदद तो करती हूं, लेकिन उनकी वास्तविक समस्या क्या है इसे जानने की जरूरत है। दरअसल लोग अपनी पूरी जिंदगी बच्चों की देखभाल में निकाल देते हैं। इस दौरान वे अपनी इच्छाएं व सपनों को भूल जाते हैं। सीनियर सिटीजन रीक्रिएशन सेंटर में ऐसे लोगों को मंच प्रदान किया जाता है जहां वे अपने हुनर को लोगों के सामने रखते हैं। जिन्हें गाना गाने, डांस करने, कविता या कहानी लिखने का शौक है वे इस मंच पर अपने सपनों को आकार देते हैं। योग, सेव वाटर, पर्यावरण संरक्षण इत्यादि के लिए भी काम करती हैं।

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