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दिल्ली कांग्रेस चीफ पद पर क्यों सोनिया गांधी की पसंद बने कीर्ति आजाद, यहां पढ़ें- पूरी स्टोरी

बताया जा रहा है कि पूर्वांचल के वोटरों को लुभाने के साथ मनोज तिवारी की काट के लिए सोनिया गांधी ने कीर्ति आजाद को दिल्ली कांग्रेस का नया चीफ बनाने का एलान किया है।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 12 Oct 2019 10:37 AM (IST)Updated: Sat, 12 Oct 2019 11:12 AM (IST)
दिल्ली कांग्रेस चीफ पद पर क्यों सोनिया गांधी की पसंद बने कीर्ति आजाद, यहां पढ़ें- पूरी स्टोरी
दिल्ली कांग्रेस चीफ पद पर क्यों सोनिया गांधी की पसंद बने कीर्ति आजाद, यहां पढ़ें- पूरी स्टोरी

नई दिल्ली, जेएनएन। Delhi assembly Election 2020: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के मद्देनजर  कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने शुक्रवार शाम दिल्ली कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद के नाम पर मुहर लगा दी है, हालांकि अभी औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। उम्मीद है एक-दो दिन में घोषणा कर दी जाएगी। बताया जा रहा है कि पूर्वांचल के वोटरों को लुभाने के साथ मनोज तिवारी की काट के लिए सोनिया गांधी ने कीर्ति आजाद को दिल्ली कांग्रेस का नया चीफ बनाने का एलान किया है। आइये जानते हैं कि आखिर क्यों कीर्ति आजाद को बनाया गया दिल्ली कांग्रेस का नया कप्तान।

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1. शीला की कमी पूरी करने की कोशिश

शीला दीक्षित ने बतौर मुख्यमंत्री दिल्ली में 15 साल तक राज करने के दौरान संगठन पर खास नजर रखी। वह खुद पंजाबी समुदाय से थीं, लेकिन उनकी शादी यूपी के रहने वाले परिवार से हुई थी। ऐसे में उन्हें ब्राह्मण समुदाय के साथ पूर्वांचल के लोगों का भी भरपूर समर्थन मिलता था। अब सोनिया गांधी ने उसी कमी को पूरा करने के लिए कीर्ति आजाद को कमान सौंपने की ठानी है। दिल्ली में बड़ी संख्या में पूर्वांचल और बिहार के मतदाता है और उन्हें साधने में कीर्ति आजाद  काफी हद तक सही निर्णय हैं।

2. पूर्वांचल का वोट बैंक रहा महत्वपूर्ण 

कीर्ति आजाद को पार्टी आलाकमान सोनिया गांधी की पसंद बताया जा रहा है। पार्टी का मानना है कि दिल्ली में 30 फीसद वोट पूर्वाचली मतदाताओं के हैं। 70 में से 30 विधानसभा क्षेत्रों में पूर्वाचल के मतदाता चुनाव जीतने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसीलिए भाजपा ने मनोज तिवारी और आम आदमी पार्टी ने गोपाल राय के रूप प्रदेश की कमान पूर्वाचल के नेताओं को दे रखी है। ऐसे में सोनिया गांधी ने भी कीर्ति के रूप में पूर्वाचली कार्ड खेल दिया है।

3. गुटबाजी पर लगेगी रोक

बता दें कि शीला दीक्षित के मुख्यमंत्री रहने के दौरान दिल्ली कांग्रेस में एक या दो गुट ही थे, लेकिन उनके निधन के बाद कांग्रेस कई गुटों में बंटी नजर आ रही है। सोनिया गांधी दिल्ली के नए कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए अजय माकन, जेपी अग्रवाल, अरविंदर सिंह लवली, सुभाष चोपड़ा समेत 50 नेताओं से मुलाकात-चर्चा कर चुकी थीं। शायद उन्हें अंदाजा हो गया होगा कि गुटबाजी काफी तेज है और इनमें से किसी को भी बनाया तो दिल्ली कांग्रेस का और बुरा हाल होगा। ऐसे में किसी भी गुट का नहीं होने के चलते कीर्ति आजाद को दिल्ली कांग्रेस की कमान सौंपी है। 

4. मनोज तिवारी बनाम कीर्ति आजाद

कांग्रेस आगामी विधानसभा चुनाव मनोज तिवारी बनाम कीर्ति आजाद करने की तैयारी में हैं।  बता दें कि दोनों मूलरूप से पूर्वांचल-बिहार के रहने वाले हैं। दिल्ली के इलाकों में पूर्वांचल-बिहार के वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। पिछली बार आम आदमी पार्टी ने इनके बीच पैठ बनाकर सारी सीटों पर कब्जा कर लिया था।  ऐसे में कांग्रेस भी पूर्वांचल-बिहार के वोटरों पर नजर गड़ाए हुए है।

जिससे विधानसभा चुनाव हारे, संभालेंगे उसी की गद्दी

1993 के विधानसभा चुनाव में कीर्ति आजाद गोल मार्केट विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते थे। 1998 में वह इसी सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार शीला दीक्षित से चुनाव हार गए। बदली परिस्थितियों में कीर्ति उन्हीं शीला दीक्षित की गद्दी संभालेंगे, जो उनके निधन से खाली हुई है।

नई पारी खेलने की तैयारी

कीर्ति आजाद 1993 से 1998 तक गोल मार्केट विधानसभा क्षेत्र से भाजपा विधायक रहे हैं। इसके बाद भाजपा के ही टिकट पर बिहार के दरभंगा लोकसभा क्षेत्र से तीन बार सांसद बने। बाद में भाजपा में उपेक्षित महसूस किए जाने के कारण वह फरवरी 2019 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

कीर्ति ने कांग्रेस के टिकट पर धनबाद से सांसद का चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गए थे। अब उन्हें दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर नई पारी खेलने का मौका दिया जाएगा, हालांकि वह कार्यभार कब संभालेंगे, इस बारे में स्थिति अभी स्पष्ट नहीं हो सकी है।

शीला दीक्षित के बाद पद था खाली

20 जुलाई को प्रदेश अध्यक्ष शीला दीक्षित के निधन के बाद खाली हुए पद के लिए पार्टी योग्य नेता की तलाश में थी। इसे लेकर सोनिया के साथ प्रदेश प्रभारी पीसी चाको की कई बार बैठक हुई। सभी पूर्व अध्यक्षों व तीनों मौजूदा कार्यकारी अध्यक्षों के नाम पर भी चर्चा हुई। शत्रुघ्न सिन्हा और नवजोत सिंह सिद्धू का नाम भी उछला, लेकिन प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी के चलते किसी नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी। सोनिया के लिए हालात 1998 के जैसे थे। उस समय भी प्रदेश कांग्रेस भारी गुटबाजी से जूझ रही थी। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की कमान बाहर से बुलाकर शीला दीक्षित को सौंपी गई थी।

कांग्रेस में नए शामिल हुए कीर्ति आजाद का नाम बुधवार शाम को सोनिया गांधी, पीसी चाको और पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल के बीच हुई बैठक में तय हो गया था, लेकिन पूर्व पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ चर्चा नहीं हो पाने के कारण घोषणा नहीं की गई। सोनिया गांधी ने कीर्ति आजाद से फोन पर बात करके उन्हें यह जिम्मेदारी दिए जाने की जानकारी भी दे दी थी।

हालांकि दैनिक जागरण ने गुरुवार के अंक में ‘पूर्व क्रिकेटर संभाल सकते हैं दिल्ली में कांग्रेस की पारी’ शीर्षक से इस संभावना की खबर प्रकाशित की थी। इसके बाद गुरुवार व शुक्रवार को प्रदेश कांग्रेस के तमाम नेता लामबंद होकर चाको व वेणुगोपाल से कीर्ति आजाद के नाम पर विरोध जताते रहे। इनका कहना था कि दिल्ली में विधानसभा चुनाव सिर पर है। बेहतर होगा कि दिल्ली के ही नेता को यह जिम्मेदारी दी जाए। चाको और वेणुगोपाल की तरफ से यह संदेश सोनिया तक पहुंचाया भी गया पर आलाकमान ने इस विरोध को महत्व नहीं दिया। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, शुक्रवार दोपहर बाद चाको ने एक नोट बनाकर आलाकमान के हस्ताक्षर के लिए वेणुगोपाल के पास भेज दिया। इस नोट में प्रदेश अध्यक्ष के लिए दो नाम दिए गए थे। पहला नाम कीर्ति आजाद और दूसरा नाम पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुभाष चोपड़ा का था। सोनिया ने कीर्ति आजाद के नाम पर अपनी मुहर लगा दी।

पीसी चाको (प्रदेश प्रभारी, दिल्ली कांग्रेस) के मुताबिक, आला कमान ने कुछ कारणों से एक-दो दिन के लिए औपचारिक घोषणा रोकने का निर्देश दिया है। उम्मीद है कि जल्द नए अध्यक्ष के नाम की घोषणा कर दी जाएगी। नए अध्यक्ष के तौर पर कीर्ति के नाम के बदले जाने की संभावना नहीं के बराबर है।

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