Hindi Diwas 2020: कवि गोविंद व्यास ने बताया कैसे मिलेगा हिंदी को बढ़ावा, अभी तक हुई उपेक्षा की शिकार
दिल्ली की भूमिका तो इतनी महत्वपूर्ण है कि राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने मेरे पिताजी पंडित गोपाल प्रसाद व्यास को कहा था कि हिंदी जब दिल्ली में चलेगी तभी देश में चलेगी।
नई दिल्ली। हिंदी दिवस आते ही विभिन्न सरकारी विभागों में हिंदी पखवाड़े के बैनर नजर आने लगते हैं। महात्मा गांधी ने कहा था कि हिंदी राष्ट्र के फलक पर सर्वाधिक चमकने वाली भाषा है। लेकिन, वर्तमान में हिंदी की जो स्वीकार्यता हमारे देश में होनी चाहिए वह है नहीं। सरकारी स्तर पर इसके उत्थान के लिए न तो ठोस प्रयास हुए और न ही सरकारी महकमों में इसे आगे बढ़ाने की इच्छाशक्ति ही नजर आई। यही कारण है कि हिंदी आम जनमानस की भाषा भी नहीं बन पाई। हिंदी की मौजूदा स्थिति के मद्देनजर संजीव गुप्ता ने हिंदी भवन, दिल्ली के अध्यक्ष एवं जाने माने लेखक-कवि गोविंद व्यास से लंबी बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश..
हिंदी के सामने मौजूदा समय में क्या चुनौतियां हैं?
हिंदी भाषा चुनौतियों से तो तभी से घिरी हुई है, जब से इसे भारतीय संविधान में राजभाषा का दर्जा मिला। आज भी कमोबेश वही स्थिति है। सरकारें आती-जाती रहीं, लेकिन किसी ने भी हिंदी को प्राथमिक तौर पर अंगीकार नहीं किया। हिंदी 70 फीसद से ज्यादा लोगों के बीच बोली-समझी जाती है। विश्व में तीसरे नंबर की भाषा है, अंग्रेजी से भी अधिक बोली जाती है। बावजूद इसके राजनीतिज्ञों ने वोट पाने के लिए तो इसका खूब फायदा उठाया, लेकिन इसे बढ़ावा देने के नाम पर पीछे हट गए।
पूर्णतया वैज्ञानिक भाषा होने के बावजूद इसे स्वीकार्यता नहीं मिल पा रही। निजी स्कूलों और सरकारी दफ्तरों में भी हिंदी को औपचारिकता के तौर पर जगह दी जाती है। अनुवाद की भाषा बनाकर छोड़ दिया गया है। हिंदी को सम्मान दिलाने के लिए जनांदोलन शुरू करने की जरूरत है। रोजगार से जुड़ेगी तभी हंिदूी आगे बढ़ेगी ।
हिंदी को बढ़ावा देने में दिल्ली की भूमिका को आप कैसे देखते हैं?
दिल्ली की भूमिका तो इतनी महत्वपूर्ण है कि राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन ने मेरे पिताजी पंडित गोपाल प्रसाद व्यास को कहा था कि हिंदी जब दिल्ली में चलेगी, तभी देश में चलेगी। इसी भावना से प्रेरित होकर लालबहादुर शास्त्री और व्यास जी ने यहां हिंदी भवन की स्थापना की थी। हिंदी का यदि दिल्ली में वर्चस्व रहता है तो इसे आगे बढ़ने से रोकना मुश्किल होगा। वर्चस्व से मतलब दुकानदारों के बीच इसके बोलने से नहीं, बल्कि सरकारी तंत्र में नीचे से ऊपर तक इसकी पैठ होने से है।
तकनीक के आधार पर हिंदी को मजबूत करने के लिए क्या किए जाने की आवश्यकता है?
तकनीकी रूप से हिंदी सक्षम है, लेकिन उसे बढ़ावा नहीं मिला। अंग्रेजी को विश्व स्तरीय बना दिया गया, जबकि हिंदी गिने-चुने लोगों तक सिमटकर रह गई। बहुत से लोगों ने हिंदी में बहुत काम भी किया। उनके काम को स्वीकृति तो मिली, लेकिन प्रोत्साहन नहीं मिला। मसलन, अरविंद कुमार ने समानांतर कोष तैयार किया, विजय मल्होत्र ने कंप्यूटर के क्षेत्र में, कामिल बुल्के ने भी काफी काम किया, लेकिन इन्हें प्रोत्साहित नहीं किया गया। अगर प्रोत्साहन मिलने लगे तो दूसरे लोग भी इस दिशा में आगे बढ़ेंगे और हिंदी की तकनीकी क्षमता को साबित करने में सहायक साबित होंगे।
दिल्ली में कार्यरत हिंदी को बढ़ावा देने वाले संस्थानों को और क्या करना चाहिए?
सच तो यह है कि सभी खानापूर्ति करते हैं। कई बैंक ऐसे हैं जो अपना 90 फीसद काम हिंदी में ही होने का दावा करते हैं, लेकिन यहां हस्ताक्षर तक हिंदी में नहीं किए जाते। डेबिट-क्रेडिट तक अंग्रेजी में ही लिखा जाता है। नगर निगम और सरकार का कामकाज भी अंग्रेजी में ही होता है। हमारे पास जितनी भी चिट्ठियां आती हैं, सब अंग्रेजी में आती हैं। अगर विरोध जताएं तो साथ में उसका अनुवाद भेज दिया जाता है। हालांकि लोग तो कोशिश करते हैं, शादी समारोह, दिवाली- नववर्ष वगैरह के ग्रीटिंग कार्ड भी हिंदी में बनाए और भेजे जाने लगे हैं। लेकिन, राजनीतिक दृढ़ इच्छाशक्ति भी बहुत जरूरी है। जहां हिंदी पेट से जुड़ी है वहां इसकी उपयोगिता कहीं अधिक है।
किशोरवय में हिंदी के प्रति प्रेम बढ़ाने के लिए क्या प्रयास किए जाने की आवश्यकता है?
इसके लिए सबसे आसान तरीका यह है कि उन्हें हिंदूी की लोकप्रियता से परिचित कराया जाए। हिंदी की कविताएं, पहाड़े, गिनती, कहानियां पढ़ने को दी जाएं।
हिंदी भवन की भविष्य की क्या योजनाएं हैं। समय के साथ ये खुद को कैसे बदल रहा है?
हिंदी भवन ने दो शोध कक्ष बना दिए हैं, वह भी वातानुकूलित। लोग आएं और यहां पढ़ें। हमारे पास लगभग 15 हजार पुस्तकें हैं। सारे हिंदुस्तान के हिंदी अखबार हमारे यहां आते हैं। भारतीय भाषाओं के सभी साहित्यकारों के ठहरने की व्यवस्था हिंदूी भवन में की गई है, जो प्रतीकात्मक शुल्क पर उपलब्ध है। पुस्तकों के विमोचन समारोह यहां आयोजित किए जाते हैं। हर साल एक अहिंदी भाषी, जिसने अपने प्रांत में हिंदी के लिए अलख जगाई हो, उसको एक लाख रुपये का पुरस्कार प्रदान किया जाता है। कोरोना काल से बाहर निकलने पर कुछ और भी योजनाएं हैं, जिन्हें शुरू किया जाना है।
Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो