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पढ़िए- मरने के बाद भी तीन लोगों को जिंदगी देने वाले यूपी के जसवंत के बारे में

छत से गिरकर गंभीर हादसे के शिकार हुए 21 वर्षीय जसवंत ने राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल में अंगदान कर तीन लोगों को जीवनदान दिया।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 20 Sep 2019 09:15 AM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 09:16 AM (IST)
पढ़िए- मरने के बाद भी तीन लोगों को जिंदगी देने वाले यूपी के जसवंत के बारे में
पढ़िए- मरने के बाद भी तीन लोगों को जिंदगी देने वाले यूपी के जसवंत के बारे में

नई दिल्ली, जेएनएन। छत से गिरकर गंभीर हादसे के शिकार हुए 21 वर्षीय जसवंत ने राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल में अंगदान कर तीन लोगों को जीवनदान दिया। उनकी दोनों किडनी व लिवर तीन मरीजों को प्रत्यारोपित किए गए। यह आरएमएल अस्पताल में दूसरा कैडेवर डोनर (अंगदान करने वाला) है, जिसके ब्रेन डेड घोषित होने के बाद परिजनों ने अंगदान के लिए स्वीकृति दी है। अस्पताल के डॉक्टरों ने परिवार के जज्बे की तारीफ की। परिजनों ने फेफड़ा दान करने की स्वीकृति भी दी थी, लेकिन दिल्ली के किसी अस्पताल में अभी तक फेफड़े के प्रत्यारोपण की सुविधा नहीं है। इस वजह से फेफड़े का इस्तेमाल नहीं हो सका। 

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बता दें कि एम्स व मैक्स अस्पताल के पास फेफड़ा प्रत्यारोपण का लाइसेंस है। एम्स भी जल्द ही फेफड़ा प्रत्यारोपण शुरू करने की बात कह चुका है। आरएमएल अस्पताल के अनुसार राष्ट्रीय अंग और ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (नोटो) ने मैक्स अस्पताल से संपर्क किया था, लेकिन उनके पास प्रत्यारोपण के लिए कोई मरीज नहीं था। इसलिए फेफड़ा प्रत्यारोपण नहीं हो सका। आरएमएल अस्पताल के डॉक्टर कहते हैं कि जसवंत भले ही अब इस दुनिया में नहीं रहे, लेकिन उनके अंगों से तीन लोग जिंदगी जी सकेंगे।

अस्पताल के अनुसार, वह मूलरूप से उत्तर प्रदेश के झांसी के रहने वाले थे। वह झंडेवालान मंदिर के पास एक फूल की दुकान में काम करते थे। 17 सितंबर को छत से गिर गए थे। इस कारण उनके मस्तिष्क में गंभीर चोट लगी थी। बताया जा रहा है कि वह घटना से दो दिन पहले ही रोजगार के लिए दिल्ली पहुंचे थे। उनके गिरने का कारण स्पष्ट नहीं हो सका है। हालांकि पता चला है कि उन्हें कोई दवा ली थी, जिसके बाद यह हादसा हुआ। इसके बाद आरएमएल अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया। जहां डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर का सहारा दिया। अस्पताल के न्यूरो सर्जन डॉ. एलएन गुप्ता ने कहा कि उनके मस्तिष्क में इतनी गंभीर चोट लगी थी कि सर्जरी भी संभव नहीं थी। उन्हें बचाने की पूरी कोशिश की गई लेकिन कामयाबी नहीं मिली।

बुधवार को मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया। दोपहर 3:35 बजे जसवंत ब्रेन डेड हो गए थे। मानव अंग प्रत्यारोपण कानून के तहत डॉक्टरों ने छह घंटे बाद दोबारा क्लीनिकल जांच की लेकिन ब्रेन काम नहीं कर रहा था। इसलिए डॉक्टरों ने रात 9:35 बजे उन्हें ब्रेन डेड घोषित कर दिया।

डॉक्टरों व अंग प्रत्यारोपण संयोजकों द्वारा प्रेरित किए जाने पर ब्रेन डेड घोषित युवक के बड़े भाई ने अंगदान करने की स्वीकृति दी। डॉक्टरों के अनुसार परिजनों ने कॉर्निया के अलावा अन्य सभी महत्वपूर्ण अंगों (दोनों किडनी, लिवर, दिल व फेफड़ा) दान करने की स्वीकृति दी थी, लेकिन अंगदान की प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही युवक को गंभीर दिल का दौरा पड़ा।

इस वजह से दिल का इस्तेमाल प्रत्यारोपण में नहीं हुआ। डॉक्टरों ने 45 मिनट तक सीपीआर (कार्डियक पल्मोनरी रिससिटेशन) देकर स्थिति संभाली। तब जाकर रात 10:45 बजे दोनों किडनी व लिवर को सुरक्षित निकाला जा सका। इसके बाद एक किडनी आरएमएल अस्पताल में ही रविंद्र (45) नामक मरीज को प्रत्यारोपित की गई। वह दो साल से डायलिसिस पर थे। इसके अलावा लिवर व दूसरी किडनी को एम्स ले जाकर दो मरीजों को प्रत्यारोपित किया गया।

RML में 245 मरीजों की किडनी प्रत्यारोपित

आरएमएल अस्पताल में अब तक 245 मरीजों की किडनी प्रत्यारोपण हो चुकी है। इसमें ज्यादातर लाइव डोनर प्रत्यारोपण हुए हैं। इसी क्रम में अब अस्पताल लिवर प्रत्यारोपण भी शुरू करने की तैयारी में है। इससे मरीजों को काफी सहूलियत मिलेगी। इसके लिए अस्पताल के डॉक्टर यकृत व पित्त विज्ञान संस्थान (आइएलबीएस) में प्रशिक्षण भी ले रहे हैं। अस्पताल प्रशासन को उम्मीद है कि अगले साल अस्पताल में लिवर प्रत्यारोपण की सुविधा भी शुरू हो जाएगी। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. वीके तिवारी ने यह जानकारी दी।

सरकारी क्षेत्र के अस्पतालों में लिवर प्रत्यारोपण की सुविधा पर्याप्त नहीं है। मौजूदा समय में दिल्ली में एम्स व आइएलबीएस में ही इसकी सुविधा है। आइएलबीएस में भी लिवर प्रत्यारोपण के लिए करीब 12 लाख का पैकेज है। इसके अलावा दवाओं पर अलग से खर्च आता है। दिल्ली सरकार के जीबी पंत अस्पताल में भी कुछ साल पहले एक मरीज का लिवर प्रत्यारोपण हो चुका है, लेकिन इसके बाद यह कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ सका। इस वजह से गरीब मरीजों के लिए फिलहाल एम्स ही एक विकल्प है। इसलिए आरएमएल अस्पताल में लिवर प्रत्यारोपण शुरू होने से मरीजों को एक और बेहतर विकल्प मिल सकेगा। डॉ. वीके तिवारी ने कहा कि 12-14 डॉक्टरों की टीम आइएलबीएस में भेजी गई है। जहां वे एक साल तक लिवर प्रत्यारोपण का प्रशिक्षण लेंगे। लिवर प्रत्यारोपण के मामले में आइएलबीएस सरकारी क्षेत्र का अग्रणी अस्पताल है।

सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक में प्रत्यारोपण के लिए होंगे दो ओटी

डॉ. वीके तिवारी ने कहा कि अस्पताल में सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक का निर्माण किया जा रहा है। इसमें दो ओटी प्रत्यारोपण के लिए रहेंगे। इसके बनने पर प्रत्यारोपण की सुविधा बढ़ जाएगी। मौजूदा समय में अस्पताल में हर माह सिर्फ एक किडनी प्रत्यारोपण होता है। वहीं एम्स में तीन प्रत्यारोपण होता है। सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक बनकर तैयार होने पर आरएमएल अस्पताल में भी प्रत्यारोपण बढ़ेगा। इस अस्पताल में 233 लाइव डोनर प्रत्यारोपण व सिर्फ 12 ब्रेन डेड कैडेवर डोनर प्रत्यारोपण हुआ है।

डॉक्टर कहते हैं कि अंगदान को लेकर लोगों में अब भी जागरूकता का अभाव है। मरीज के ब्रेन डेड होने पर भी परिजन जल्द अंगदान के लिए तैयार नहीं होते। वे खुद सदमे में होते हैं। इसलिए उन्हें अंगदान के लिए तैयार करना भी आसान नहीं होता। आरएमएल अस्पताल में हर माह करीम 250 लोगों की मौत होती है, जिसमें तीन से चार ब्रेन डेड घोषित ऐसे मरीज होते हैं जो अंगदान के लिए योग्य होते हैं। अस्पताल में अब तक करीब 60 ब्रेन डेड मरीजों के अंगदान के लिए परिजनों की काउंसलिंग हो चुकी है, जिसमें से सिर्फ पांच मरीजों के परिजन अंगदान के लिए तैयार हुए। इसमें से दो का ही अंगदान हो सका। तीन मरीजों के अंगदान से पहले ही मौत हो गई। इसलिए डॉक्टर कहते हैं कि अंगदान को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता जरूरी है। कई बार लोग धार्मिक अंधविश्वास में अंगदान से मना कर देते हैं। जबकि अंतिम समय में अंगदान कर कई मरीजों की जिंदगी बचाई जा सकती है।

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