Move to Jagran APP

बंग-भंग दिवसः कुछ यूं बनता चला गया दिल्ली-बंगाल का रिश्ता, मराठों के हाथ से अंग्रेजों ने छीन ली थी सत्ता

यूं तो सदियों से दिल्ली-बंगाल का नाता रहा है 1803 में अंग्रेजों ने मराठों के हाथ से दिल्ली छीन ली और बंगाल से सत्ता चलाने लगे। यूं भी मुगल बादशाह शाह आलम का राज लाल किले से पालम तक ही था।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sat, 16 Oct 2021 12:00 PM (IST)Updated: Sat, 16 Oct 2021 12:22 PM (IST)
बंग-भंग दिवसः कुछ यूं बनता चला गया दिल्ली-बंगाल का रिश्ता, मराठों के हाथ से अंग्रेजों ने छीन ली थी सत्ता
कुछ यूं बनता चला गया दिल्ली-बंगाल का रिश्ता

नई दिल्ली [विष्णु शर्मा]। यूं तो सदियों से दिल्ली-बंगाल का नाता रहा है, 1803 में अंग्रेजों ने मराठों के हाथ से दिल्ली छीन ली और बंगाल से सत्ता चलाने लगे। यूं भी मुगल बादशाह शाह आलम का राज लाल किले से पालम तक ही था, फिर दिल्ली में अंग्रेजी रेजीडेंट की नियुक्ति के बाद बंगाल रेग्यूलेशन एक्ट 1805 लागू कर दिया गया। दिल्ली बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा बन गई और 1835 में ‘नार्थ-वेस्ट प्राविंस’ का, 1858 में दिल्ली पंजाब की एक डिवीजन बना दी गई और 1912 तक जब कलकत्ता (अब कोलकाता) से राजधानी दिल्ली लाई गई, अलग से उसे एक प्रांत बना दिया। 1835 तक विलियम वेंटिक ने कलकत्ता(अब कोलकाता) तक ग्रांट ट्रंक रोड का काम भी पूरा कर दिया था।

loksabha election banner

1857 तक जो तीन बैंक दिल्ली में काम करने लगे थे, उनमें से एक था ‘बैंक आफ बंगाल’। धीरे-धीरे बंगाल-दिल्ली का सैकड़ों साल पुराना कनेक्शन फिर से जुड़ने लगा था। सबसे दिलचस्प बात है कि 1951 में जब दिल्ली में पहली बार सेल्स टैक्स लागू किया गया तो बंगाल फाइनेंस (सेल्स टैक्स) एक्ट 1941 ही लागू किया गया था।

बंग-भंग आंदोलन के बाद क्रांतिकारी गतिविधियां बंगाल के बाद अगर सबसे तेज हुईं तो दिल्ली और पंजाब में। दिल्ली को अंग्रेज ‘उपद्रवी’ कैटगरी में रखते थे। दिल्ली गजेटियर में प्रभा चोपड़ा लिखती हैं, ‘अंग्रेज मानते थे कि जब तक लाल किले की तोपों का मुंह चांदनी चौक की तरफ है, तब तक शांति है, जिस दिन ये तोपें हटाई गईं, दिल्ली में होने वाला प्रतिरोध काबू में नहीं आएगा’। इसी चांदनी चौक में बंगाली क्रांतिकारियों रासबिहारी बोस व बसंत कुमार विश्वास ने दिल्ली के क्रांतिकारियों के साथ मिलकर वायसराय लार्ड हार्डिग पर बम फिंकवाया था। जिन बंगाली क्रांतिकारियों से परेशान होकर राजधानी दिल्ली लाई गई उन्होंने दिल्ली में भी बम से स्वागत किया।

ब्रिटिश मिलिट्री रेजीमेंट ‘बंगाल इंजीनियर्स’ ने 1828 में कुतुबमीनार की तब बड़ी मरम्मत की थी, जब भूकंप ने इसको काफी नुकसान पहुंचा दिया था। जब चौरी-चौरा कांड के बाद गांधीजी ने असहयोग आंदोलन वापस लिया तो दिल्ली में एक अधिवेशन बुलाकर इस फैसले को मंजूरी दिलाने की कोशिश की गई थी, तो वो बंगाल के ही कार्यकर्ता थे, जिन्होंने सबसे ज्यादा विरोध किया। सबसे दिलचस्प ये कि 1917 में कलकत्ता (अब कोलकाता) अधिवेशन में ही तय हुआ कि 1918 में दिल्ली में पहला अधिवेशन होगा, मालवीयजी अध्यक्ष थे।

1961 में दिल्ली में बंगाली बोलने वाले थे 28,136 और तब बंगाली दिल्ली की चौथी बड़ी भाषा थी। बंगाली दिल्ली में कई चरणों में बसे, 1864 में जब कलकत्ता (अब कोलकाता)-दिल्ली ट्रेन से जुड़े, 1911 में जब राजधानी दिल्ली आई, 1947 में और फिर 1971 युद्ध के पहले और बाद में। दिल्ली-बंगाल के एक प्राचीन हाइवे के बारे में जानकारी 1966 में दक्षिणी दिल्ली में मिले अशोक के शिलालेख से भी मिलती है।

‘सिटीज इन साउथ एशिया’ में जिक्र है कि राजशाही के मजमूदार ने 1894 में पहली दुर्गा पूजा शुरू ती थी, जो बाद में बंद हो गई। नियमित शुरुआत 1909-10 में चांदनी चौक के रोशनपुरा मंदिर में बिना मूर्ति के हुई थी, केवल मंगल घाट (गंगाजल भरा पात्र) था, इसे कश्मीरी गेट दुर्गा पूजा के नाम से जाना जाता है। 1912 में काशी से एक दुर्गा प्रतिमा लाई गई। 1926 से दिल्ली ने अपनी प्रतिमा बनाना शुरू कर दिया। आजादी से पहले मंदिर मार्ग पर काली बाड़ी भी बंगालियों का संस्कृति केंद्र बन गया था।

पोस्ट-टेलीग्राफ, रेलवे आदि के बंगाली कर्मचारियों ने दिल्ली में पहला ठिकाना तिमारपुर को बनाया था। करोल बाग, गोल मार्केट भी बंगालियों के पसंदीदा ठिकाने थे। फिर पूर्वी बंगाल से शरणार्थी दिल्ली आए, उनके लिए चितरंजन पार्क बसा, जिसे अब मिनी बंगाल माना जाता है, 2147 लोगों को प्लाट दिए गए और फिर वो बंगालियों का गढ़ बनता चला गया। उससे पहले ही यहां बंगालियों के बसने के निशान मिलते हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.