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Delhi Fire Incident: जिम्मेदारों की आंखों पर घूस की पट्टी, आखिर कब बंद होगी ऐसी लापरवाही?

कभी अवैध फैक्ट्री में लापरवाही की आग से 11 की मौत हो गई कभी 43 लोग जिंदा जल गए। करोल बाग के होटल अर्पित पैलेस में आग लगने से भी 17 लोग मरे थे। सब जिम्मेदार सामने हैं तो कार्रवाई क्यों नहीं हो पा रही? ऐसी खतरनाक अवैध इकाइयों व कारोबारी गतिविधियों को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए क्यों नहीं हो रहे ठोस उपाय?

By Jagran News Edited By: Abhishek Tiwari Published: Thu, 22 Feb 2024 03:48 PM (IST)Updated: Thu, 22 Feb 2024 03:48 PM (IST)
अलीपुर स्थित शीला बुआ माता वाली गली में इसी फैकट्री में हुई थी आग की घटना। जागरण

जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। हाल ही में राजधानी के रिहायश क्षेत्र में अवैध फैक्ट्री में आग लगी और 11 लोगों की मौत हो गई। कोई नहीं बता पाएगा इनका क्या कुसूर था और इसके पीछे कौन जिम्मेदार है? लेकिन आप इसकी चिंता क्यों करेंगे?

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आपका सीधा कोई सरोकार नहीं। आपके लिए ये जानना भी जरूरी है कि अनदेखी की यही प्रवृत्ति है कि गली-गली में मौत का कारोबार हो रहा है। और उसकी अनदेखी करके हम अपना ही काल बुला रहे हैं। गलती आपकी भी नहीं, सिस्टम ही ऐसा है, शिकायत लेकर जाएं तो कोई सुनता नहीं। नगर निगम के बाबू से ऊपर के अधिकारी तक सबकी चुप्पी है।

पुलिस की खामोशी हर माह पहुंचने वाली वसूली से हो जाती है। प्रशासन ने गैर जिम्मेदार तरह से हो रहे इस अवैध कारोबारों पर चुप्पी रहना अपना सिद्धांत बना लिया है। प्रदूषण नियंत्रण से नोटिस आएगा, कुछ दिन बाद उसकी भी खानापूरी हो जाती है। बड़ा सवाल यही है कि सभी जिम्मेदारों की आंखों पर आखिर कब तक घूस की पट्टी बंधी रहेगी?

आखिर क्यों नहीं रोकी जाती अवैध गतिविधियां?

शहर की रिहायश के भीतर कहीं से भी जीवन के लिए घातक साबित होने वाले उद्योग लगते रहेंगे, जिनमे खतरनाक पदार्थों का उपयोग होता है? बड़ी संख्या में लोगों के लिए जानलेवा ऐसी अवैध औद्योगिक या कारोबारी गतिविधियों को आखिर क्यों नहीं रोका जा रहा?

सब जिम्मेदार सामने हैं तो कार्रवाई क्यों नहीं हो पा रही? ऐसी खतरनाक अवैध इकाइयों व कारोबारी गतिविधियों को प्रभावी ढंग से रोकने के लिए क्यों नहीं हो रहे ठोस उपाय? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है।

रिहायशी इलाकों में मिलीभगत का कारोबार

कभी अवैध फैक्ट्री में लापरवाही की आग से 11 की मौत हो गई, कभी 43 लोग जिंदा जल गए। करोल बाग के होटल अर्पित पैलेस में आग लगने से भी 17 लोग मरे थे। होटल में ठहरे कई अतिथि सोते रह गए, जहरीले धुएं से उनका दम घुट गया। रिहायशी क्षेत्रों में संचालित अवैध औद्योगिक व कारोबारी गतिविधियों के चलते खतरनाक साबित हो रहा यह अंतहीन सिलसिला जारी है...।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में जिंदगी छीनने वाले अवैद्य उद्योग-फैक्ट्री, नाकारा व भ्रष्ट दिल्ली नगर निगम, दिल्ली राज्य औद्योगिक एवं बुनियादी ढांचा विकास निगम (डीएसआइआइडीसी), उद्योग विभाग के साए तले पनपते हैं। दिल्ली छोटे उद्योगों का बड़ा केंद्र है, वर्ष 1996 में दिल्ली सरकार ने उद्योगों के पुनर्वास की योजना घोषित की थी जिसमें औद्योगिक इकाइयों को दिल्ली के रिहायशी क्षेत्रों से हटा पुनर्स्थापित करना था।

रिहायशी इलाकों क्यों चल रहे उद्योग?

वर्ष 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से रिहायशी इलाकों से प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को हटाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी मांगी, सभी को तुरंत स्थानांतरित करने का आदेश दिया लेकिन रेंगती सरकार निष्क्रिय रही। दो दिसंबर 2002 को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से छह सप्ताह के भीतर कार्रवाई रिपोर्ट मांगी, 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी प्रदूषणकारी व खतरनाक इकाइयों को शहर में काम नहीं करने का आदेश दिया।

छुटपुट कार्रवाई हुई लेकिन राजनीतिक दबाव के चलते इसमें शिथिलता रही, जमीनी स्थिति यह रही कि लेनदेन के माध्यम से ये उद्योग न केवल बने रहे बल्कि और अधिक पनपे हैं। अवैध एवं खतरनाक हजारों औद्योगिक व कारोबारी इकाई, जहरीली हवा से हलकान दिल्लीवासियों के लिए खतरा बने हुए हैं। दिल्ली सरकार ने कुछ औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए, कुछ को सरकार से औद्योगिक क्षेत्रों में सस्ते प्लाट इस शर्त पर मिले कि वे वहां से चले जाएंगे लेकिन लेनदेन व अधिकारियों की मिलीभगत से वे रिहायशी क्षेत्र में टिके हुए हैं।

रिहायशी क्षेत्र में इमारतों में अवैद्य उद्योग, फैक्ट्री, दुकानें व विभिन्न व्यावसायिक गतिविधि चलती हैं। गलियां संकरी हैं, रही-सही कसर माल ढोने वाले टेंपो-ट्रक, पटरी, रेहड़ी, रिक्शा व अतिक्रमण पूरी कर देता है। इन इमारतों में पार्किंग नहीं होती लिहाजा मालिक, कर्मचारी, ग्राहकों के निजी वाहन तथा स्थानीय निवासियों के वाहन कॉलोनी की सड़क या गली में खड़े होते हैं।

ट्रैफिक पुलिस भी आंखें बंद के रहती है। बिल्डिंग मैटरियल वालों का सामान भी गली में फैला होता है, गलियों में तारों का जंजाल है, इमारत एक-दूसरे से जुड़ी होती हैं। फैक्ट्री और आसपास के घर भी आग की चपेट में आ जाते हैं, दुर्घटना की स्थिति में संकरी जगह पर दमकल कैसे पहुंचे! औद्योगिक दुर्घटनाओं में हर वर्ष सैकड़ों लोग मारे जाते हैं और दिव्यांग हो जाते हैं।

नवंबर 2010 में हुई थी 71 लोगों की मौत 

दुर्भाग्य यह है कि कानूनी कार्रवाई नहीं होती इसलिए डर नहीं है। नवंबर 2010 में ललिता पार्क इलाके में हुए हादसे में 71 लोगों की मौत हुई, निगम व दिल्ली सरकार एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे। मैं निगम की निर्माण समिति का चेयरमैन था, मैंने कहा पांच मंजिला अवैद्य इमारत कैसे बन गई, एई-जेई समेत पांच अफसरों पर कार्रवाई की।

निगम ने जांच समिति बनाई, मेरे हटने के बाद सभी को बहाल कर दिया गया। एक दशक बाद समिति ने सेवानिवृत हो चुके एक जेई पर 21,000 रुपये का जुर्माना लगा मामला बंद कर दिया। अवैद्य निर्माणों के चलते वयस्क ही नहीं, बच्चे व बुजुर्गों को भी जान गंवानी पड़ी है फिर भी प्रति लेंटर उगाही से दिल्ली भर में बेतहाशा अवैद्य निर्माण हुए, जो अब भी जारी हैं।

सरकार इमारत कितनी पुरानी है, ढांचा कितना मजबूत है, वायरिंग कितनी पुरानी है क्योंकि पुरानी तार अधिक भार सह नहीं सकती, निकासी व सुरक्षा मानकों की जांच के बिना उनके अस्थायी संरक्षण हेतु दिल्ली विशेष अधिनियम को लगातार विस्तार देती रही है, कट-आफ-डेट बढ़ाती रहती है।

विशिष्ट क्षेत्रों में समस्याओं को समझने के लिए स्थानीय स्तर पर योजना बनाने की आवश्यकता है, लोकल प्लान के बाद जोनल प्लान बने, नियोजन निचले स्तर से शुरू होना चाहिए और फिर इसे अंतिम मास्टर प्लान तक जोड़ना चाहिए।

इमारत फायर-प्रूफ बने, इसकी फायर सर्विस से जांच हो। पानी की निजी टंकी बिल्डिंग के ऊपर होती है, आग लगने की स्थिति में वहां तक पहुंचना या उसका उपयोग संभव नहीं होता। ऐसे में अंडरग्राउंड पानी का टैंक ऊंची इमारत व भीड़-भीड़ वाले क्षेत्र में अनिवार्य हो। दिल्ली नगर निगम निर्माण समिति के पूर्व अध्यक्ष जगदीश ममगांई से जागरण संवाददाता निहाल सिंह से बातचीत पर आधारित है।

सब चलता है की प्रवृत्ति से निकलना होगा...

निश्चित रूप से दिल्ली के अलीपुर क्षेत्र में हुई घटना भयावह और दुखदाई है। न सिर्फ अलीपुर बल्कि औद्योगिक नगरी फरीदाबाद, गुरुग्राम, सोनीपत सहित एनसीआर के अन्य जिलों में ऐसी ही घटनाएं सामने आ सकती हैं और पूर्व में भी ऐसी घटनाएं हुई हैं।

जहां तक रिहायशी इलाकों में अवैध रूप से संचालित हो रही इस तरह की फैक्ट्री और उस पर भी जानमाल के नुकसान का कारण बनने वाले ज्वलनशील रसायनिक पदार्थों के इस्तेमाल को न रोकने की बात है तो इसके लिए राजनीतिक दखल, प्रशासनिक अधिकारियों का अपनी जिम्मेदारी के प्रति उदासीन रहना और उन लोगों का जिन्होंने ऐसी फैक्ट्री लगाई हैं, उनका भविष्य के खतरों के प्रति सचेत न होना, जागरूकता का अभाव आदि सभी तंत्र जिम्मेदार हैं।

यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी अपने संबोधन में एक बार कहा था कि भारतीय जनमानस में अधिकांश रूप से सब चलता है की प्रवृत्ति रहती है। यह प्रवृत्ति ठीक नहीं है। सब चलता है की जगह कानून के दायरे के तहत, नियमों का पालन करते हुए ठीक-ठीक चलना चाहिए का सोच विकसित करना चाहिए।

कई बार प्रशासनिक अधिकारियों के समक्ष जागरूक लोग या प्रभावित लोग रिहायशी क्षेत्र में चल रही ऐसी फैक्ट्रियों के खिलाफ शिकायत लेकर आते हैं, तब अधिकारी कार्रवाई के लिए अधीनस्थ संबंधित अधिकारियों को निर्देश भी देते हैं और कार्रवाई करने के लिए मौके पर टीम पहुंचती भी है तो राजनेताओं के फोन आ जाते हैं कि अभी कुछ नहीं करना। तब स्टाफ बिना कार्रवाई के या नाम मात्र की कार्रवाई कर औपचारिकता निभा वापस लौट आता है। और अपने वरिष्ठ अधिकारियों को रिपोर्ट देता है।

अब यहां पर होना यह चाहिए कि वरिष्ठ अधिकारी मामले को समझते हुए जिस राजनेता ने कार्रवाई रुकवाई है, उसके साथ संवाद स्थापित कर यह बताने की कोशिश करे कि आज अगर प्राथमिक स्तर पर पुख्ता कार्रवाई न की गई तो भविष्य में यह शासन-प्रशासन के लिए नासूर बन जाएंगे और जानमाल के नुकसान का बड़ा कारण बनेंगे।

ऐसे संवाद में राजनेताओं को पूरी स्थिति स्पष्ट हो जाती है और फिर अनावश्यक रूप से दखलंदाजी नहीं करते, वहीं दूसरी ओर अधिकारियों का अगर यह रवैया रहेगा कि उसे क्या लेना-देना, राजनेता को बेवजह क्यों नाराज किया जाए या उसे अपने तबादले का डर रहेगा तो फिर ऐसी ही स्थितियां पैदा होंगी। अब यहां पर ढिलाई देना ही एक तरह से वहां फैक्ट्री चलाने की अनुमति देने के समान है और यहीं से भ्रष्टाचार पनपता है, हावी हो जाता है।

सामूहिक प्रयास जरूरी...

आज अगर इंदौर शहर का नाम स्वच्छता के मामले में देशभर में नंबर एक पर आता है तो निश्चित रूप से इसमें सभी के सामूहिक प्रयास हैं। इसमें राजनेताओं की सकारात्मक भागीदारी भी होगी, इसमें प्रशासनिक अधिकारियों की इच्छा शक्ति भी रहती है और स्थानीय निवासियों में जागरूकता के साथ हर कदम पर सहयोग का भी समावेश होता है।

यही दृष्टिकोण कहें या नजरिया कहें, वो रिहायशी क्षेत्र में खुलने वाली फैक्ट्री के प्रति होना चाहिए। बुराई को शुरू होने से पहले ही अगर रोक दिया जाए या रोग का पता लगने पर प्राथमिक स्तर पर उपयुक्त दवा देकर मरहम पट्टी कर दी जाए तो फिर नासूर नहीं बनेगा।

मेरे स्वयं के कार्यकाल में एक बार ऐसी स्थिति आई थी, जब मैं फरीदाबाद नगर निगम में संयुक्त आयुक्त था और एक रिहायशी क्षेत्र में बड़ी भैंस डेरी चल रही थी, जिसमें गोबर को सीवर लाइनों में बहाया जा रहा था, उससे सीवर लाइन जाम हो रही थी। ऐसी शिकायत लेकर पड़ोसी आए थे। अब जिसकी डेयरी थी, उसने क्षेत्र के विधायक से फोन करा दिया। तब तो टीम लौट आई, पर बाद में मैंने संबंधित विधायक से संवाद कर उन्हें परेशानियों से अवगत कराया।

विधायक ने स्थिति को समझा और फिर कार्रवाई करने से नहीं रोका। जब शासन-प्रशासन के जनप्रतिनिधियों-अधिकारियों में जनहित में सोचने, एक्शन लेने और निर्णय लेने की क्षमता विकसित होगी तो ऐसी खतरनाक कारोबारी गतिविधियों पर प्रभावी कार्रवाई करने के ठोस उपाय भी निकल कर आएंगे और उनको अमली जामा भी पहनाया जा सकेगा।

तब कोई गतिरोध नहीं होंगे। पुन: एक बार यह कह कर हम अपने विचारों को विराम देंगे कि सब चलता है के विकारों को दरकिनार ठीक व सही चलना चाहिए का नजरिया अपनाना होगा, ताकि अलीपुर जैसी घटना की पुनरावृत्ति न हो। हरियाणा सरकार में उद्योग एवं वाणिज्य के विशेष सचिव(पूर्व) डॉ.एसएस दलाल से जागरण संवाददाता सुशील भाटिया से बातचीत पर आधारित है।

जांच की गाड़ी में अनदेखी का 'पंक्चर'

दिल्ली के अलीपुर क्षेत्र में हाल ही में एक पेंट फैक्ट्री में आग लगने से 11 लोगों की मौत हो गई। ये फैक्ट्री रिहायशी इलाके में अवैध रूप से संचालित की जा रही थी। सिर्फ एक यही नहीं राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ऐसी तकरीबन सवा लाख से अधिक अवैध फैक्ट्री चल रही हैं।

अवैध पहियों पर कार्रवाई की गाड़ी

ये अवैध औद्योगिक इकाइयां कानून के विरुद्ध हैं ही, इनमें रसायन जैसा ज्वलनशील पदार्थ भी उपयोग होता है। पूरे एनसीआर क्षेत्र में जिम्मेदारी सभी की निर्धारित है। विभाग में अधिकारी तय हैं लेकिन जांच, कार्रवाई की गाड़ी औपचारिकता के दरवाजे पर ही खड़ी रह जाती है। 

दिल्ली में कहां हैं अवैध फैक्ट्रियां

  • नई दिल्ली : बलजीत नगर, करोल बाग, पहाड़ गंज
  • पश्चिमी दिल्ली : तिहाड़ गांव, ख्याला, बिंदापुर, रणहौला
  • पूर्वी दिल्ली : मंडोली, सबोली, सोनिया विहार, वेलकम, सीलमपुर, करावल नगर, हर्ष विहार, सीमापुरी और गांधी नगर
  • बाहरी दिल्ली : किराड़ी, बुराड़ी, मुंडका, नरेला, अलीपुर
  • दक्षिणी दिल्ली : संगम विहार, बदरपुर, खानपुर, ओखल
  • अवैध कारोबार : 1 लाख से ज्यादा अवैध फैक्ट्रियां दिल्ली में 40% फैक्ट्रियों में रसायन का होता है उपयोग।
  • जिम्मेदारी : दिल्ली नगर निगम, उद्योग विभाग, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति , जिला प्रशासन, दिल्ली पुलिस

कानून प्रविधान 

  • सीलिंग का प्रविधान : 50 हजार से अधिक का जुर्माना एनजीटी के नियमों का उल्लंघन करने पर।

खानापूरी 

  • 15 हजार संपत्तियों का सर्वे किया गया, तीन हजार संपत्तियां सील की गईं। शेष या तो खाली हो गई थीं या तो बंद हो गई थीं।

इन उत्पादों की फैक्ट्री में होती है रसायन की खपत 

पेंट, पालीथिन बनाना, ज्वैलरी की सफाई, चप्पले बनाना, जैकेट बनाना, पटाखे बनाना, पाइप बनाना, हेयरबैंड बनाना, कंगे बनाना आदि।

दक्षिण हरियाणा में जिम्मेदारी 

  1. हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, औद्योगिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य निदेशालय
  2. नगर निगम
  3. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
  4. अग्निशमन विभाग
जिला अवैध फैक्ट्रियां  रसायन प्रयोग वाली फैक्ट्री कारोबार
गुरुग्राम 2 हजार 450 3 हजार करोड़
फरीदाबाद 10 हजार 600 5 हजार करोड़
गौतमबुद्ध नगर 1500   220  4 हजार करोड़
गाजियाबाद 1100 150 1200 करोड़

कारोबार : अनुमानित है।

एनसीआर में कहां-कहां हैं अवैध फैक्ट्रियां 

  • गुरुग्राम : बेगमपुर खटोला, कादीपुर, बसई, दौलताबाद एवं बजघेड़ा
  • फरीदाबाद : सरुरपुर, नंगला, गाजीपर, एसजीएम नगर, डबुआ कॉलोनी, मुजेसर, पर्वतीया कॉलोनी, सराय ख्वाजा, बल्लभगढ़
  • गौतमबुद्ध नगर : बेहलोलपुर, चोटपुर, छीजारसी, ममूरा, इलाबांस, सलारपुर
  • गाजियाबाद : शहीद नगर, लोनी, भोपुरा, हिंडन विहार, फर्रुखनगर
  • तीन दशक से गुरुग्राम के रिहायशी इलाकों में चल रही हैं फैक्ट्रियां। औद्योगिक क्षेत्र घोषित करने का मामला सरकार के पास लंबित। सभी टैक्स भी जमा कर रहे हैं। आबकारी एवं कराधान विभाग में पंजीकृत भी हैं। अवैध की श्रेणी में फैक्ट्रियां इसलिए आती हैं क्योंकि इलाका औद्योगिक क्षेत्र घोषित नहीं है।

एनसीआर में कार्रवाई हुई 

  • 20 से अधिक वर्कशाप फरीदाबाद में सील की गईं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से 18 से अधिक डाइंग यूनिट सील की गईं।
  • गौतमबुद्ध नगर में जून 2023 में प्रदूषण विभाग की ओर से बहलोलपुर में अवैध रूप से संचावित 16 डाइंग फैक्ट्री पर ताला लगा, वर्ष 2022 में 21 उद्योगों के खिलाफ कार्रवाई के लिए क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से नोटिस भेजा। 50 फैक्ट्री सील की गईं।

अवैध फैक्ट्रियों में हुए हादसे

  • 8 फरवरी 2024 : अलीपुर स्थित एक अवैध केमिकल व पेंट फैक्ट्री में आग लगने से 11 लोगों की मौत।
  • अप्रैल 2023 : बहरामपुर रोड पर संचालित एक फैक्ट्री में आग लगी।
  • मई 2022 : आग लगने की बड़ी घटनाओं में सबसे ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। 14 मई को बाहरी दिल्ली के मुंडका में एक चार मंजिला इमारत में भीषण आग लगने से 27 लोगों की मौत हो गई थी और 12 लोग घायल हो गए थे।
  • जून 2019 में फरीदाबाद, सेक्टर-64 के पास आर्य नगर की आबादी में स्थित गत्ता फैक्ट्री में आग लग गई थी, एक श्रमिक की झुलसने से मौत हो गई थी।
  • वर्ष 2020 : खेड़कीदौला के नजदीक एक फैक्ट्री में आग लगी।
  • 26 अक्टूबर 2021 : सीमापुरी इलाके में एक मकान की दूसरी मंजिल पर आग लगने से एक ही परिवार के चार लोगों की मौत।

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