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कमीशन का खेल या NCERT फेल?, निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने के लिए बाध्य करते हैं निजी स्कूल

सरकारी स्कूल आज भी एनसीईआरटी की किताबें ही खरीदते हैं। अब सवाल ये हैं कि क्या निजी प्रकाशकों की किताबें एनसीईआरटी के मुकाबले ज्यादा बेहतर है या निजी स्कूल कमीशन के फेर में उनकी किताबें स्कूलों में लगवाते हैं?

By Mangal YadavEdited By: Published: Sat, 03 Apr 2021 05:35 PM (IST)Updated: Sat, 03 Apr 2021 05:35 PM (IST)
कमीशन का खेल या NCERT फेल?, निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने के लिए बाध्य करते हैं निजी स्कूल
कमीशन का खेल या एनसीईआरटी फेल। फाइल फोटो

नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। शिक्षा व्यवस्था किसी भी देश का भविष्य निर्धारित करती है। लेकिन जब शिक्षा के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम में चलाई जाने वाले किताबों पर निजी स्कूल एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) की बजाय निजी प्रकाशकों की किताबें खरीदने की मनमानी करते हैं तो अभिभावकों का परेशान होना लाजिमी है। देशभर में सीबीएसई (केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड) से संबंधित हर स्कूल के अलग कोर्स और किताबें हैं।

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इन स्कूलों में पहली से आठवीं कक्षा तक एनसीईआरटी की किताबें लगवाने के बजाय निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें लगवाई जाती है। एनसीईआरटी की किताबों का अधिकतम मूल्य अगर 50 से 150 रूपए हैं तो वहीं निजी प्रकाशकों की किताबें 300 से 600 रूपये तक की होती हैं।

वहीं, सरकारी स्कूल आज भी एनसीईआरटी की किताबें ही खरीदते हैं। अब सवाल ये हैं कि क्या निजी प्रकाशकों की किताबें एनसीईआरटी के मुकाबले ज्यादा बेहतर है या निजी स्कूल कमीशन के फेर में उनकी किताबें स्कूलों में लगवाते हैं?

एनसीईआरटी की किताबें उबाऊ और सामग्री की कमी

मयूर विहार फेज-1 स्थित एक निजी स्कूल की प्रधानाचार्या के मुताबिक एनसीईआरटी की किताबें पुराने ढर्रे पर चली आ रही है, किताबें काफी उबाऊ भी हैं और उनमें सामग्री की भी कमी है। किताब में केवल संक्षिप्त सवाल होते है, जो छात्र को प्रैक्टिस करने के लिए कम पड़ते हैं। वहीं, द्वारका स्थित एक निजी स्कूल की प्रधानाचार्या के मुताबिक उनके स्कूल में वो फिलहाल कुछ किताबें विदेशी प्रकाशकों की इस्तेमाल कर रही हैं। उनके मुताबिक निजी प्रकाशकों की किताबें 21वीं सदी के छात्रों के हिसाब से हैं।

राजेंद्र नगर स्थित सलवान पब्लिक स्कूल के एक शिक्षक के मुताबिक एनसीईआरटी की कुछ किताबें कई बार बाजार में ही उपलब्ध नहीं होती या देरी से मिलती है। वहीं, निजी प्रकाशकों की किताबें आसानी से उपलब्ध हो जाती है इसलिए स्कूल निजी प्रकाशकों पर ज्यादा निर्भर रहते हैं। राजधानी के ज्यादातर निजी स्कूलों की निजी प्रकाशकों की किताबें इस्तेमाल करने को लेकर लगभग यही तर्क है।

प्रतियोगी और बोर्ड परीक्षा के लिए एनसीईआरटी बेहतर

इन सभी निजी स्कूलों में कक्षा नौवीं से 12वीं के छात्रों के लिए एनसीईआरटी की किताबें ही इस्तेमाल होती है। इस पर निजी स्कूलों की तर्क है कि बोर्ड की परीक्षाओं में ज्यादातर सवाल एनसीईआरटी की किताबों से ही आते हैं।

करोल बाग स्थित दिल्ली सरकार के एक सरकारी स्कूल के प्रधानाचार्य हंस राज मोदी बताते हैं कि उनके स्कूल में सभी छात्रों के लिए एनसीईआरटी की किताबें ही इस्तेमाल होती हैं। अगर किसी विषय में एनसीईआरटी की किताब नहीं है तो स्कूल छात्रों को सपोर्ट मटेरियल उपलब्ध कराता है। उनके मुताबिक स्कूल के सभी छात्र बोर्ड के साथ-साथ प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एनसीईआरटी का ही इस्तेमाल करते हैं क्योंकि जितना अच्छा कान्सेप्ट (संकल्पना) एनसीईआरटी की किताबें से समझ आता है उतना शायद ही किसी निजी प्रकाशक की किताबों से आए।

स्कूलों का बंधा होता है कमीशन

दिल्ली अभिभावक संघ की अध्यक्ष अपराजिता गौतम के मुताबिक शासन प्रशासन के कड़े निर्देशों के बावजूद ज्यादातर निजी स्कूल एनसीईआरटी की किताबों को अपनी सूची में शामिल करने से परहेज कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि स्कूल से ही दुकान का पता बताया जाता है कि कहां से निजी प्रकाशक की किताब खरीदनी है और किताब में लिखे दाम पर ही किताब खरीदनी पड़ती है। क्योंकि स्कूलों की कमीशन बंधा होता है। उनके मुताबिक किताब वितरण के जो ठेके दुकानों को दे रखे थे उसमें भी मनमर्जी चलाई जाती है, स्कूलों को जहां से कमीशन कम हुआ वहां से हटाकर दूसरी जगह आवंटित कर दिया जाता है। वहीं, फेसबुक, ट्वीटर पर एनसीईआरटी बनाम निजी प्रकाशकों की किताबों को लेकर मुद्दा उठा रहे शिक्षाविद और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर निरंजन कुमार के मुताबिक आज सबसे ज्यादा परेशान निम्न मध्यम वर्गीय परिवार है। वो जैसे तैसे अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाता हैं उस पर भी स्कूलों ने निजी प्रकाशकों की महंगी किताबों को खरीदने का जो दबाव बनाया है वो अभिभावकों के लिए सही नहीं है। उनके मुताबिक स्कूलों का काम सिर्फ शिक्षा देना होना चाहिए न कि शिक्षा के नाम पर व्यापार करना।

एनसीईआरटी सचिव मेजर हर्ष कुमार ने बताया कि एनसीईआरटी की किताबें देश के प्रतिष्ठित शिक्षाविद और प्रोफेसर काफी शोध के बाद छात्रों के लिए किताबें तैयार करते हैं। इन्हें तैयार करने में भी लंबा समय लगता है। एनसीईआरटी की किताबें देशभर के 22 से ज्यादा राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में चलती हैं और ये देशभर के छात्रों को ध्यान में रखकर तैयार की जाती है। आज सभी प्रतियोगी परीक्षाओं में छात्र इन्हीं किताबों से पढ़कर उत्तीर्ण होते हैं। इसका दाम बी निजी प्रकाशकों के मुकाबले बहुत कम होता है। निजी स्कूलों को इन किताबों को आठवीं तक की कक्षा में जरूर शामिल करना चाहिए।


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