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प्रदूषण व बाजारों में नियमों की अवहेलना के चलते बढ़ा कोरोना संक्रमण का खतरा

आमतौर पर प्रदूषण स्तर बढ़ने के कारण अस्पताल में अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है पर चिकित्सकों की माने इस बार कोरोना संक्रमण के डर के कारण लोग घर पर रहकर ही अपना इलाज करने पर अधिक जोर दे रहे है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 05 Nov 2020 10:00 PM (IST)Updated: Fri, 06 Nov 2020 08:55 AM (IST)
प्रदूषण व बाजारों में नियमों की अवहेलना के चलते बढ़ा कोरोना संक्रमण का खतरा
प्रदूषण स्तर बढ़ने के कारण अस्पताल में अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है।

नई दिल्ली, मनीषा गर्ग। प्रदूषण स्तर बढ़ने के कारण अस्थमा के मरीजों के साथ-साथ कोरोना संक्रमितों और कोरोना संक्रमण से स्वस्थ हो चुके दोनों ही तरह के मरीजों की भी परेशानी काफी बढ़ गई है। दूसरी तरफ बाजारों में नियमों की अवहेलना व बढ़े प्रदूषण स्तर के कारण कोरोना संक्रमितों की संख्या में एकाएक काफी उछाल दर्ज किया जा रहा है। आलम यह है कि कोरोना संक्रमितों की संख्या में हुई बढ़ते के कारण क्षेत्र के सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में आने वाले मरीजों की संख्या कम हो गई है।

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आमतौर पर प्रदूषण स्तर बढ़ने के कारण अस्पताल में अस्थमा के मरीजों की संख्या बढ़ जाती है, पर चिकित्सकों की माने इस बार कोरोना संक्रमण के डर के कारण लोग घर पर रहकर ही अपना इलाज करने पर अधिक जोर दे रहे है। इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि ओपीडी में इलाज से पूर्व कोरोना जांच जरूरी है, रिपोर्ट पॉजीटिव आने के डर से लोग घर पर ही रहना उचित समझ रहे हैं। घर में ही अधिकांश लोगों ने पल्स ऑक्सीमीटर व नेबुलाइजर की व्यवस्था कर ली है।

द्वारका सेक्टर-6 स्थित मनीपाल अस्पताल में श्वसन रोग विशेषज्ञ डॉ. पुनीत खन्ना बताते हैं कोरोना संक्रमण से जूझ रहे या ठीक हो चुके लोगों के फेफड़े पहले ही काफी कमजाेर होते हैं, जिसके कारण उन्हें सांस फूलने की समस्या से जूझना पड़ रहा है। प्रदूषण के कारण फेफड़ों को और नुकसान पहुंचता है, जिसके कारण फेफड़ों की कार्यक्षमता प्रभावित हो जाती है।

इसका पहला लक्षण है मरीजों को सांस लेने में काफी तकलीफ होने लगती है और ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है। असल में धूल व प्रदूषण के संपर्क में आने से फेफड़े जकड़ जाते हैं। फेफड़ों की नसेंं प्रभावित होती है, जिसके कारण सांस लेने में तकलीफ होने लगती है। इस कारण शरीर को उचित मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाता है और शरीर में कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढ़ने लगती है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को हार्ट अटैक पड़ सकता है। दमे के मरीज समय-समय पर इनहेलर लेते रहें। विशेषकर रात के समय परेशानी कई गुना बढ़ जाती है। बलगम वाली खांसी और छींक इसके प्रमुख लक्षण है। मधुमेह व उच्च रक्तचाप की समस्या से जूझ रहे मरीजों के लिए भी प्रदूषण परेशानियों को बढ़ा देता है।

डॉ. पुनीत खन्ना बताते हैं कि ऐसे लोग जो चार घंटे से अधिक समय तक बाहर रहते हैं, उनके लिए प्रदूषण ज्यादा अधिक खतरनाक है। विशेषकर यातायात पुलिस, सिविल डिफेंस वॉलेंटियर, रेहड़ी-पटरी वाले, मजदूरों को विशेष सतर्कता बरतने की जरूरत है। काेरोना संक्रमण के डर से अधिकांश लोग कपड़े वाला मास्क का प्रयोग करते हैं, लेकिन ये प्रदूषण से बचाव में ज्यादा मददगार नहीं है। ऐसे में जरूरी है कि जो लोग चार घंटे से अधिक समय तक घर के बाहर रहते हैं वे एन-95 मास्क का प्रयोग करें। दूसरा घर में लोग खिड़कियों को बंद रखें। कार चालक भी खिड़कियों काे खोलकर कार चलाने से बचें। लोग कोशिश करें कि ज्यादा समय तक बाहर न रहें।

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