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दिल्ली के लिए भी नासूर बन रहा प्लास्टिक, इन घातक बीमारियों को दे रहा न्योता

दिल्ली, चेन्नई एवं मुंबई से विभिन्न ब्रांड की पानी की बोतलों के लिए गए सैंपल में पाया गया है कि एक लीटर पानी में औसतन 325 प्लास्टिक कण मौजूद रहते हैं।

By Edited By: Published: Mon, 04 Jun 2018 08:52 PM (IST)Updated: Tue, 05 Jun 2018 01:26 PM (IST)
दिल्ली के लिए भी नासूर बन रहा प्लास्टिक, इन घातक बीमारियों को दे रहा न्योता
दिल्ली के लिए भी नासूर बन रहा प्लास्टिक, इन घातक बीमारियों को दे रहा न्योता

नई दिल्ली (संजीव गुप्ता)। यूं तो आज देश और दुनिया दोनों ही 'बीट द प्लास्टिक' थीम पर एकजुट हो रहे हैं, लेकिन दिल्ली-एनसीआर में तो यह प्लास्टिक नासूर बनता जा रहा है। महानगरीय आपाधापी में हवा-पानी ही नहीं, रोजमर्रा के काम में आने वाली ज्यादातर चीजें स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रही हैं। सभी चीजों में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक के कण धीरे-धीरे न केवल हमारे शरीर में पहुंच रहे हैं बल्कि फेफड़ों और आंतों को हानि पहुंचाने के साथ-साथ कैंसर तक का कारक बन रहे हैं।

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विडंबना यह कि दिल्ली में इसके निस्तारण के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं है। कुछ ऐसे हैं हालात टॉक्सिक लिंक की ताजा रिपोर्ट बयां करती है कि टूथपेस्ट, बच्चों के दूध की बोतल, शेविंग क्रीम, जूते, कपडे़, दवाओं के कैप्सूल और बच्चों के खिलौनों में भी प्लास्टिक के छोटे- छोटे अंश होते हैं। जब हम इन्हें उपयोग करते हैं तो सिंथेटिक, पोलीमर, पीवीसी इत्यादि के 1 से 5 मीटर वाले सूक्ष्मकण शरीर के भीतर चले जाते हैं।

ऐसे पहुंचाते हैं नुकसान
यह कण त्वचा से चिपक जाते हैं। घंटों चिपके रहने के कारण इससे त्वचा में खिंचाव होते हैं। इससे एलर्जी भी होती है। आंखों में चले जाएं तो कॉर्निया को नुकसान पहुंचने का भय रहता है। टूथपेस्ट व अन्य खाद्य पदार्थो के जरिये शरीर में पहुंच कर फेफड़ों और आंतों से भी चिपक जाते हैं। पानी की बोतलें और प्लास्टिक के लंच बॉक्स भी असुरक्षित दिल्ली, चेन्नई एवं मुंबई से विभिन्न ब्रांड की पानी की बोतलों के लिए गए सैंपल में पाया गया है कि एक लीटर पानी में औसतन 325 प्लास्टिक कण मौजूद रहते हैं। इसी तरह प्लास्टिक के लंच बॉक्स में जब गर्म खाना डाला जाता है तो उसमें भी प्लास्टिक के अंश शामिल हो जाते हैं।

सड़क पर गाड़ियां चलने से भी उड़ रहे ऐसे कण
रिपोर्ट के मुताबिक सड़क पर जब गाड़ी चलती है तो टायरों की रगड़ से भी माइक्रोप्लास्टिक के कण पैदा होते हैं। यह कण हवा में मिल जाते हैं और सांस के जरिये हमारे शरीर में पहुंचते हैं। दिल्ली में सालाना 750 टन प्लास्टिक कचरा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक देश भर में सालाना 15 लाख 90 हजार टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है जबकि दिल्ली में यह आंकड़ा 750 टन सालाना का है। विडंबना यह कि देश भर में ही सिर्फ 1.5 फीसद प्लास्टिक कचरे का निस्तारण हो पा रहा है, दिल्ली में तो इतनी व्यवस्था भी नहीं है।

प्लास्टिक का एक पूरा परिवार है। मसलन, थर्मो प्लास्टिक, सिंथेटिक, सेमी सिंथेटिक, पोलीमर प्लास्टिक, पीवीसी इत्यादि। सबसे खतरनाक है पीवीसी। प्लास्टिक में पोली वाइनल क्लोराइड गैस होती है जिसे पोलीमराइज्ड करके अनेक उत्पाद बनाए जाते हैं। माइक्रोप्लास्टिक के यह अति सूक्ष्म कण पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इनकी वजह से रोग प्रतिरोधक क्षमता घट रही है, एलर्जी की समस्या बढ़ रही है, कैंसर के नए नए मामले सामने आ रहे हैं एवं श्वांस रोग का संक्रमण भी बढ़ रहा है। -डॉ. टीके जोशी, सलाहकार, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय

प्लास्टिक कचरे से केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान (सीआरआरआइ) ने एक निजी एजेंसी के साथ मिलकर तमिलनाडू में करीब डेढ़ किलोमीटर की सड़क बनाई है। प्लास्टिक से तेल निकाले जाने पर भी काम हो रहा है। हालांकि इस दिशा में बहुत कुछ किया जाना बाकी है। दिल्ली सरकार को भी इस समस्या के लिए गंभीरता अपनानी चाहिए। -डॉ. एसके त्यागी, पूर्व अपर निदेशक, सीपीसीबी


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