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सितंबर 2018 तक राजधानी में पंजीकृत वाहनों की संख्या करीब 1.10 करोड़ है। इनमें से 38 लाख वाहन 10 व 15 साल पुराने वाहनों की सूची में आ गए हैं।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली-एनसीआर का वायु प्रदूषण बारिश की बूंदों से भी नहीं थमा। ऐसे में अगर पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एवं संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) दिल्ली में निजी वाहनों पर रोक लगाती है तो दिल्ली की रफ्तार थम जाना भी तय है। इस प्रतिबंध के साथ दिल्लीवासियों का सामान्य रह पाना असंभव होगा।
सितंबर 2018 तक राजधानी में पंजीकृत वाहनों की संख्या करीब 1.10 करोड़ है। इनमें से 38 लाख वाहन 10 व 15 साल पुराने वाहनों की सूची में आ गए हैं। बचे हुए 72 लाख वाहनों में 30 फीसद कारें व 66 फीसद दोपहिया वाहन हैं। ऑटो, टैक्सी और अन्य व्यावसायिक वाहनों की संख्या महज चार फीसद है। इस तरह करीब 48 लाख दोपहिया एवं करीब 25 लाख कारें हैं। दोपहिया तो पेट्रोल चालित ही हैं। कारों में लगभग 10.5 लाख सीएनजी, 2.5 लाख डीजल चालित एवं करीब 12 लाख पेट्रोल चालित हैं।
आंकड़ों के अनुसार करीब 30 लाख यात्री रोजाना बसों से सफर करते हैं और लगभग 29 लाख मेट्रो से चलते हैं। जबकि तकरीबन 60 लाख यात्री बेहतर सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था के अभाव में निजी वाहनों का सहारा लेने के लिए विवश हैं। ऐसे में अगर निजी वाहनों पर ही रोक लगा दी जाती है तो यह सभी 60 लाख यात्री तो सड़क पर आ जाएंगे। इन अतिरिक्त यात्रियों को ढोने की क्षमता न डीटीसी एवं कलस्टर बस सेवा की है और न ही दिल्ली मेट्रो की। चूंकि ओला और उबर कंपनी की भी ज्यादातर टैक्सियां डीजल चालित हैं, लिहाजा उनका भी कोई सहारा नहीं मिल पाएगा।
अब अगर दिल्ली के प्रदूषण की गर्भ में जाएं तो 38 फीसद प्रदूषण की वजह सड़कों की धूल, 11 फीसद औद्योगिक इकाइयों, 12 फीसद घरेलू, छह फीसद कंक्रीट है। सिर्फ 20 फीसद प्रदूषण ही वाहनों से फैलता है। अभिप्राय यह कि निजी वाहनों पर रोक से बमुश्किल 20 फीसद प्रदूषण ही छंट पाएगा जबकि परेशानी सौ फीसद से भी ज्यादा होना तय है। इसीलिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) भी ईपीसीए के तर्क से सहमति नहीं जताता।