Podcast: मुश्किल दौर में दिल के करीब आये पॉडकास्ट, कई विधाओं में तैयार हो रहे कंटेंट
चीन और अमेरिका के बाद भारत पॉडकास्ट श्रोताओं का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। कोरोना काल में इसकी लोकप्रियता और भी बढ़ गयी है। इस दौरान 42 फीसद अधिक लोगों ने ‘स्पॉटीफाई’ ‘गाना’ एवं ‘जियो सावन’ जैसे प्लेटफॉर्म पर समय बिताया।
[अंशु सिंह] रेडियो से भारतवासियों का गहरा जुड़ाव रहा है और कहानी सुनना उनकी आदत में शुमार। इसलिए एफएम आने पर भी श्रोताओं ने उसे सिर आंखों पर बिठाया। अब वही वर्ग पॉडकास्ट की ओर रुख कर रहा है,क्योंकि इसने हर उम्र के लोगों के दिलों को स्पर्श किया है। उस पर अपना प्रभाव छोड़ा है। रेडियो की तरह पॉडकास्ट भी किसी साथी-सा आभास कराता है। कहीं रहें,कुछ भी करें, वह संग रहता है। तभी तो हाल के वर्षों में इनके क्रिएटर्स एवं इनसे संबंधित प्लेटफॉर्म की संख्या कई गुना बढ़ गई है। ऑडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म स्पॉटीफाई द्वारा किये गये एक सर्वे के अनुसार, गुणवत्तापूर्ण कंटेंट को प्राथमिकता दिये जाने के कारण पॉडकास्ट श्रोताओं की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। इनमें युवाओं की संख्या अपेक्षाकृत अधिक है।
देश को जानने की इच्छा के कारण सुरभि अक्सर पत्र-पत्रिकाओं के साथ यूट्यूब पर ट्रैवल वीडियोज की खाक छानती रहती हैं। एक दिन उन्हें किसी ने ‘द मुसाफिर स्टोरीज’ पॉडकास्ट की जानकारी दी कि कैसे वहां जाने-माने घुमक्कड़ अपने यात्रा संस्मरण सुनाते हैं। बड़ा दिलचस्प होता है उन्हें सुनना। सुरभि ने बिना देर किये उस सलाहकार की बात मान ली औऱ आज यह इनका पसंदीदा पॉडकास्ट बन चुका है। उनके जैसे हजारों श्रोता इस पॉडकास्ट के दीवाने हैं। दिलचस्प यह है कि इसे शुरू करने वाले स्वयं घुमक्कड़ी के शौकीन रहे हैं। बेंगलुरु के सैफ उमर और फैजा भी भारत को जानने का इरादा रखते थे,जिसके लिए २०१६ में दोनों ने ‘द मुसाफिर स्टोरीज’ पॉडकास्ट की शुरुआत की। सैफ का कहना है कि अमेरिका में दफ्तर आते-जाते पॉडकास्ट ही उनका साथी होता था। वे‘अमेच्योर ट्रैवलर’,‘ट्रैवल विद रिक स्टीव्स’,‘द ट्रिप’ जैसे पॉडकास्ट सुना करते थे। भारत लौटने पर जब उसकी कमी खलने लगी, तो उन्होंने खुद ही एक ट्रैवल पॉडकास्ट शुरू करने का फैसला कर लिया। मेरियम थॉमस तो इस बात पर गर्व करती हैं कि उन्होंने २०१५ में भारत का पहला इंडी म्यूजिक पॉडकास्ट-‘मेड इन इंडिया’ लॉन्च किया था, जिसमें देश-विदेश के लब्ध प्रतिष्ठित संगीतकारों के साक्षात्कार होते थे। संगीत से जुड़ी कहानियां होती थीं। पॉडकास्टर्स का मानना है कि देश में कहानियों के प्रति जो प्रेम रहा है, कहानी सुनाने (स्टोरी टेलिंग) की सदियों पुरानी परंपरा रही है, उसी ने ही यहां पॉडकास्ट को इतना लोकप्रिय बनाया है।
बढ़ रहा देसी पॉडकास्टर्स का कुनबा
भारत में पॉडकास्ट के पदार्पण की बात करें, तो इसकी शुरुआत २००५ में एपल द्वारा आइट्यून्स लॉन्च किये जाने से हुई थी। हालांकि तब ज्यादातर कंटेंट अंग्रेजी या विदेश भाषाओं में होते थे और एक खास वर्ग ही उन्हें सुन पाता था। स्टोरी टेलर,मल्टीमीडिया जर्नलिस्ट,सोनोलॉग प्रोडक्शन हाउस की संस्थापक एवं देश की पहली पीढ़ी की पॉडकास्टर छवि सचदेव बताती हैं,‘पहले श्रोताओं को विदेशी कंटेंट पर निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन अब भारतीय पॉडकास्टर्स ने देसी कंटेंट क्रिएट करने शुरू कर दिये हैं। जैसे अमित वर्मा,अनुपम गुप्ता ऐसे पॉडकास्टर्स हैं, जिन्होंने विविध विषयों पर पॉडकास्ट किये हैं और १०० से अधिक एपिसोड्स तैयार करने में सफल रहे हैं। हां,ऐसा करने में उन्हें कुछ समय लगा। अमित वर्मा का ‘द सीन ऐंड द अनसीन’पॉडकास्ट देश का सबसे लोकप्रिय साप्ताहिक पॉडकास्ट माना जाता है,जिसके हर महीने डेढ़ लाख से अधिक डाउनलोड होते हैं। इनके अलावा,कुछ मीडिया संस्थानों के पॉडकास्ट भी पसंद किये जा रहे हैं। सेलिब्रिटी पॉडकास्टर्स में नेहा धूपिया के‘नोफिल्टर नेहा’में श्रोताओं की खासी दिलचस्पी देखी जाती है।‘ २००८ से पॉडकास्ट कर रहीं छवि ने अपने उम्दा कंटेंट से श्रोताओं के दिलों में एक खास जगह बनायी है। वह वर्कशॉप के माध्यम से पॉडकास्ट के बारे में लोगों को जागरूक भी करती हैं। विकास से जुड़े मुद्दों एवं सामाजिक क्षेत्र से संबंधित पॉडकास्ट करना उन्हें पसंद है। वह स्वयं के अलावा अन्य कंपनियों, कॉरपोरेट्स, स्वयंसेवी एवं सांस्कृतिक संगठनों के लिए विविध विषयों (मनोरंजन,सामाजिक,विकास से जुड़े मुद्दों) पर कंटेंट क्रिएट करती हैं। वह ऐसे पॉडकास्ट करती हैं,जिसका समाज पर व्यापक प्रभाव हो। वह बदलाव का आधार बने। इसलिए अब वह हिंदी समेत क्षेत्रीय भाषाओं में बच्चों के लिए स्टोरी टेलिंग पॉडकास्ट करने पर विचार कर रही हैं।
कई विधाओं में तैयार हो रहे कंटेंट
समय बदल चुका है। भारतीय श्रोताओं को देश में ही हर विधा और विषय मनोरंजन, पौराणिक, व्यापारिक, पर्यावरणीय, ऐतिहासिक, यात्रा, कहानी, मोटिवेशनल एवं सेल्फ हेल्प से जुड़े कंटेंट आदि) के पॉडकास्ट सुनने को मिल रहे हैं। स्पॉटीफाई पर जहां कला एवं मनोरंजन,शिक्षा, लाइफस्टाइल एवं स्वास्थ्य संबंधी पॉडकास्ट लोकप्रिय हैं,वहीं जियो सावन पर कॉमेडी,फिल्म एवं टेलीविजन के साथ स्टोरी टेलिंग पॉडकास्ट की अधिक उपलब्धता देखने को मिलती है। इसके अलावा,आज एंकर एवं स्पीकर जैसे प्लेटफॉर्म ने घर बैठे अपने स्मार्टफोन से पॉडकास्ट को रिकॉर्ड,एडिट एवं शेयर करना आसान बना दिया है। छवि को पूरी उम्मीद है कि पॉडकास्ट का भविष्य सुनहरा है। आने वाले समय में इस पर हर किसी के लिए कंटेंट उपलब्ध होगा। यहां तक कि बड़े खिलाड़ियों के मार्केट में उतरने के बावजूद छोटे पॉडकास्टर्स के अस्तित्व को कोई खतरा नहीं होगा। सेलिब्रिटी के साथ-साथ आम पॉडकास्टर्स का अपना श्रोता वर्ग होगा। वह कहती हैं,‘कंटेंट, प्रोड्यूसर्स एवं श्रोताओं के मामले में भारतीय पॉडकास्ट इंडस्ट्री के विकास की यात्रा लंबी होने वाली है। प्राइसवाटरहाउसकूपर्स की एक रिपोर्ट से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आने वाले वर्षों (२०२३) में पॉडकास्ट श्रोताओं की संख्या करीब १७.६१ करोड़ के आसपास पहुंच जाएगी, फिर उसी अनुरूप राजस्व प्राप्ति की दर भी बढ़ेगी। दरअसल,पॉडकास्टिंग की पूरी प्रक्रिया इतनी लोकतांत्रिक है कि आला दर्जे के पॉ़डकास्टर्स को भी उनके श्रोता मिल ही जाएंगे। हां,पॉडकास्ट को मोनेटाइज करना एक चुनौती हो सकता है। सुखद यह है कि आज अंग्रेजी एवं हिंदी के साथ ही अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में पॉडकास्ट का बाजार विकसित हो रहा है। इससे महानगरों के अलावा छोटे शहरों के पॉडकास्टर्स को भी नयी पहचान मिल सकेगी।‘
युवा पीढ़ी का बढ़ा रुझान
प्राइस वॉटर हाउस कूपर्स की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि चीन एवं अमेरिका के बाद भारत पॉडकास्ट श्रोताओं का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है। कोरोना काल में इसकी लोकप्रियता औऱ भी बढ़ गयी है। बताते हैं कि इस दौरान ४२ फीसद अधिक लोगों ने ‘स्पॉटीफाई’, ‘गाना’ एवं ‘जियो सावन’ जैसे प्लेटफॉर्म पर समय बिताया। दुनिया की सबसे बड़ी म्यूजिक एवं पॉडकास्ट स्ट्रीमिंग सर्विस ‘स्पॉटीफाई’के ‘एंकर’ प्लेटफॉर्म पर बीते वर्ष २५०० से अधिक पॉडकास्ट जुड़े। इतना ही नहीं, पिछले एक साल में कंपनी ने स्थानीय क्रिएटर्स के ३० से ज्यादा पॉडकास्ट भी लॉन्च किये। इसी प्रकार,‘जियो सावन’ का कंटेंट भी २०० गुना तक बढ़ गया। श्रोताओं की बात करें, तो युवा पीढ़ी की पॉडकास्ट में दिलचस्पी तेजी से बढ़ी है। वे मनोरंजन, स्वयं में सुधार लाने वाले एवं ज्ञानवर्धक, प्रेरणादायी (मोटिवेशनल) पॉडकास्ट्स से लेकर ट्रैवल, म्यूजिक पॉडकास्ट में विशेष रुचि ले रहे हैं। स्पॉटीफाई के एक सर्वे के अनुसार, ७६ फीसद मिलेनियल्स एवं जेन जेड ऐसे पॉडकास्ट सुनना पसंद कर रहे हैं, जिससे उनका तनाव एवं बेचैनी दूर हो सके। युवा क्रिएटिव कंटेंट राइटर सौरभ बताते हैं,‘मैं १४ वर्ष से नौकरी कर रहा था। लेकिन तीन महीने पहले अचानक सब बदलने (नौकरी जाने) से थोड़ा अकेलापन-सा लगने लगा। पॉडकास्ट सुनने का आदी था, तो वही मेरा अजीज साथी बना। मैं घंटों पार्क में बैठ अपने पसंदीदा पॉडकास्टर्स को सुनता। उसी से कुछ नया करने की प्रेरणा भी मिली।‘ पॉडकास्टर्स की यही तो खूबी है कि श्रोता उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं,मानो उनके साथ कितनी घनिष्ठता हो।
तकनीक से आसान हुआ पॉडकास्ट करना
2016 में पॉडकास्ट की दुनिया में कदम रखने वाले बालगाथा डॉट कॉम के संस्थापक अमर व्यास कहते हैं कि उन्होंने तकरीबन 20 हजार रुपये के निवेश से पॉडकास्ट करना शुरू किया था। वह छह से अधिक भाषाओं में बच्चों को रोचक एवं देसज बाल कहानियां सुनाते हैं। आने वाले दिनों में वह बिजनेस पॉडकास्ट लॉन्च करने की योजना भी बना रहे हैं। बताते हैं अमर,‘आज टेक्नोलॉजी ने पॉडकास्ट क्रिएट करने के खर्च को कई गुना कम कर दिया है। वनप्लस, एपल या अच्छी गुणवत्ता वाले एंड्रॉयड फोन से आसानी से पॉडकास्ट किये जा सकते हैं, क्योंकि इनके रिकॉर्डिंग एप एवं माइक्रोफोन की क्वालिटी अच्छी होती है। मुख्य ध्यान शांत वातावऱण में रिकॉर्डिंग पर देना होता है,जिसके लिए पास में अच्छा हेडफोन होना जरूरी है। एडिटिंग की बात करें, तो उस पर थोड़ा खर्च जरूर आएगा।‘ इसके अलावा, इन दिनों पॉडकास्ट को ट्रैक करने की सुविधा भी मौजूद है। इससे श्रोताओं की संख्या की जानकारी मिल सकती है। किस श्रेणी के शोज सुने या पसंद किये जा रहे हैं, यह भी पता चल सकता है। ऐसे में अगर किसी का पॉडकास्ट लोकप्रिय हो जाता है,तो विज्ञापनदाता स्वयं पॉडकास्टर से संपर्क करते हैं। अमर की मानें, तो कई बार पॉडकास्ट करने वाले प्लेटफॉर्म भी खर्च वहन करने को राजी हो जाते हैं। ज्यादा एपिसोड्स तैयार होने से स्पॉन्सरशिप तक मिलने लगती है। हां,पॉडकास्टर के रूप में स्वतंत्र करियर बनाने का प्रश्न है, तो इसके लिए संयम रखना होगा। कुछ भी यकायक नहीं होगा। अपनी ओर से कोशिश करते रहना होगा।
देश में तैयार हुआ पॉडकास्ट इकोसिस्टम
पॉडकास्ट को लेकर देश में जागरूकता विगत वर्षों में तेजी से बढ़ी है। पहले मार्केट में छोटे खिलाड़ी थे। गिने-चुने पॉडकास्टर्स थे। सावन ने जरूर कुछ पॉडकास्ट को अधिकृत किया था। मार्केट में जगह बनाने की कोशिश की थी,लेकिन उसे उतनी तरजीह नहीं मिली। स्पॉटीफाई एप के आने के बाद से परिदृश्य बदला है। उसने पॉडकास्ट को प्रमोट करना शुरू किया, जिससे इसके क्रिएटर्स प्रेरित हुए। लोगों को इस नयी विधा में प्रशिक्षित करने के लिए वर्कशॉप होने लगे। पॉडकास्ट की एक्सेसिबिलिटी में बढ़ोत्तरी हुई और फिर इन सबने मिलकर एक इकोसिस्टम तैयार किया, जो न सिर्फ पॉडकास्ट प्लेटफॉर्म, उसके क्रिएटर, बल्कि श्रोताओं (कंज्यूमर) के लिए भी फायदेमंद रहा। सबसे बड़ा प्रभाव तो लॉकडाउन के दौरान देखने को मिला, जब बड़ी संख्या में लोगों ने पॉडकास्ट करना शुरू किया और श्रोताओं ने चाव से चुना। मैं पॉडकास्ट को परिवर्तन का सूत्रधार मानती हूं।
हिंदी समेत क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार हो रहे कंटेंट
लोगों को सुनने की उत्सुकता एवं जरूरत थी, लेकिन उनके पास माध्यम नहीं थे। गुणवत्ता वाले कंटेंट तैयार नहीं हो रहे थे। ज्यादातर कंटेंट अंग्रेजी व हिंदी में थे। क्षेत्रीय भाषाओं में सामग्री कम थी। टेक्नोलॉजी की बात करें,तो पहले पॉडकास्ट से जुड़े एप एपल डिवाइस पर ही संचालित किये जा सकते थे। आज एंड्रॉयड फोन पर भी एप उपलब्ध हैं। इससे हिंदी के साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में पॉडकास्ट करना आसान हुआ है। श्रोताओं को विविधतापूर्ण सामग्री मिल रही है। वहीं, पहले जहां पॉडकास्ट के ट्यूटोरियल्स एवं मैनुएल्स अंग्रेजी में ही होते थे, वहीं अब क्रिएटर्स एवं प्रोड्यूसर्स के लिए वह हिंदी में भी उपलब्ध हैं। इसके अलावा, कई ऐसे प्लेटफॉर्म्स लॉन्च हुए हैं जहां कोई भी पॉडकास्टर अपना कंटेंट पब्लिश कर सकता है। इस तरह, आज देश में क्रिएटर्स, प्लेटफॉर्म्स एवं श्रोता सभी हैं। यही कारण है कि पॉडकास्ट श्रोताओं की तरह क्रिएटर्स की संख्या दिनोदिन बढ़ रही है। वे विभिन्न विषयों एवं अलग-अलग भाषाओं में कंटेंट क्रिएट कर रहे हैं।
पॉडकास्ट से बाल कहानियां
मैं अपने छह साल के बच्चे के लिए कहानियां तलाश रही थी, लेकिन ऐसी कम ही कहानियां मिलीं, जिनके साथ मैं उसे बढ़ते देखना चाहती थी। तभी खुद पॉडकास्ट करने का विचार आया। मैंने बच्चों के लिए ऐसी कहानियां लिखनी शुरू कीं, जो आधुनिक दुनिया के अनुरूप हों और जिनके साथ वे सहजता से जुड़ सकें। पिछले एक वर्ष के दौरान बच्चों की काफी अच्छी व सटीक प्रतिक्रिया भी मिली है। स्पॉटीफाई, एंकर, एपल आइट्यून, गूगल एवं अन्य चैनल्स पर मेरे पॉडकास्ट सुने जा सकते हैं। इस समय १४० से अधिक एपिसोड्स उपलब्ध हैं। मैंने बेटे के साथ मिलकर रामायण के कुछ किस्सों को नये अंदाज में तैयार किया है। एक नया प्रयोग था यह। हम दोनों को मजा आया।
'ट्विटर स्पेसेज' का सफल प्रयोग
पॉडकास्ट की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ट्विटर ने अपने नये ऑडियो आधारित नेटवर्किंग प्रोजेक्ट 'स्पेसेज' के लिए पॉडकास्ट एप 'ब्रेकर' का अधिग्रहण किया है। इससे 'ट्विटर स्पेसेज' में एक साथ १० लोगों को जोड़ा जा सकता है। ब्रेकर एप के सॉफ्टवेयर की मदद से एप्पल फोन के यूजर्स किसी भी पॉडकास्ट को सर्च कर, उसे सुन सकते हैं। बीते वर्ष दिसंबर में ट्विटर ने 'स्पेसेज' को लॉन्च किया था। यह एक प्रकार का ऑडियो चैट रूम है जिसमें लोग वॉयस नोट के जरिये अपने विचार, भावनाएं, आदि सबके साथ साझा कर सकते हैं। इसके अलावा, होस्ट एक लिंक के जरिये कम से कम दस लोगों को अपने स्पेसेज में आमंत्रित कर सकता है, जिससे वे सारी चर्चा सुन सकते हैं। अभी आइ फोन के यूजर्स इसका प्रयोग कर सकते हैं। वहीं, आने वाले समय में एंड्रॉयड यूजर्स के लिए भी यह सुविधा उपलब्ध होगी।