अब कोरोना के खिलाफ जंग में बायोसेफ्टी आटोप्सी लैब की दरकार, जानिए क्या है बायोसेफ्टी आटोप्सी लैब, कैसे करेगा काम
देश में कोरोना से मृत्यु दर कम होने के बावजूद करीब सवा तीन लाख लोग जान गंवा चुके हैं। यदि बायोसेफ्टी आटोप्सी लैब विकसित हो तो कोरोना से होने वाली मौत के असल कारणों का पता लगाकर इस घातक वायरस पर जोरदार प्रहार किया जा सकता है।
नई दिल्ली, [रणविजय सिंह]। देश में कोरोना से मृत्यु दर कम होने के बावजूद करीब सवा तीन लाख लोग जान गंवा चुके हैं। तीसरी लहर का खतरा भी बना हुआ है। ऐसे में कोरोना के खिलाफ जंग में बायोसेफ्टी आटोप्सी लैब की सख्त दरकार है। पिछले साल कोरोना का संक्रमण शुरू होने के बाद से ही इसकी जरूरत महसूस की जा रही है। इसलिए एम्स में बायोसेफ्टी आटोप्सी लैब विकसित करने की योजना भी है लेकिन यह मामला एक साल से भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) में लंबित है।
डाक्टर कहते हैं कि यदि बायोसेफ्टी आटोप्सी लैब विकसित हो तो कोरोना से होने वाली मौत के असल कारणों का पता लगाकर इस घातक वायरस पर जोरदार प्रहार किया जा सकता है। मौजूदा समय में देश में एक भी ऐसा आटोप्सी लैब नहीं है जहां बेहद सुरक्षित तरीके से किसी घातक वायरस से संक्रमित मरीज का पोस्टमार्टम किया जा सके। विदेश में भी इस तरह की ज्यादा सुविधा नहीं है। कोरोना का संक्रमण शुरू होने पर कुछ देशों के चिकित्सा संस्थानों में इस तरह की लैब विकसित की गई हैं। दरअसल, कोरोना से मृत व्यक्तियों के शवों के पोस्टमार्टम के दौरान शरीर के आंतरिक हिस्से से निकलने वाले फ्लूड से संक्रमण होने का खतरा होता है।
इस वजह से पोस्टमार्टम आसान नहीं होता। ऐसे मामलों में पोस्टमार्टम के लिए बायोसेफ्टी आटोप्सी लैब की जरूरत होती है। एम्स के फारेंसिक मेडिसिन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. सुधीर गुप्ता ने कहा कि आइसीएमआर व विश्व के चिकित्सा समुदाय को बायोसेफ्टी आटोप्सी लैब विकसित करना चाहिए। इससे कोरोना से मृत व्यक्तियों के शवों के परीक्षण और शोध से यह समझने में मदद मिलेगी कि मरीजों में मौत के असल कारण क्या रहे? उन कारणों का पता लगाकर तीसरी लहर आने पर इलाज का प्रोटोकाल तैयार किया जा सकेग।
क्या होता है बायोसेफ्टी ऑटोप्सी लैब
दुनिया के कई शोध में यह बात सामने आई है कि लैब आधारित संक्रमण आटोप्सी लैब में काम करने वाले कर्मचारियों में अधिक होता है। बायोसेफ्टी आटोप्सी लैब में ऐसी आशंका नहीं रहती। इस वजह से शव के आंतरिक हिस्से का सुरक्षित तरीके से परीक्षण कर मौत के कारणों का पता लगाया जा सकता है। वर्ष 2003 में चीन में सार्स का संक्रमण होने पर बीएलएल-3 (बायोसेफ्टी लेवल-3) आटोप्सी लैब तैयार की गई थी। लैब में स्वच्छ हवा के प्रवेश और निकास के सिस्टम में उच्च दक्षता पार्टिकुलेट एयर फिल्टर (हेफा फिल्टर) लगाए गए थे। लिहाजा लैब को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि बाहर से संक्रमण अंदर न प्रवेश करने पाए और लैब के अंदर से भी संक्रमण बाहर न जाने पाए। आटोप्सी के लिए बिल्कुल अलग कमरा होता होता है, जो बंद रहता है।