नौवें सिख गुरु गुरु तेगबहादुर ने धर्म की रक्षा के लिए शीश कटा दिया लेकिन केस नहीं और झुके नहीं, पढ़िये पूरी कहानी
आज से 346 वर्ष पहले उन्होंने अपने बलिदान से उस वक्त मुगलों द्वारा किए जा रहे बड़े पैमाने पर मतांतरण के खिलाफ देशवासियों को खड़ा कर दिया। उसका परिणाम यह हुआ कि पूरा देश इस्लामीकरण से बच गया। इस बलिदान के लिए उन्हें हिंद दी चादर भी कहा जाता है।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। देश के हर भाग से जबरन, धोखे और लोभ से मतांतरण की खबरें आ रही हैं। इससे चिंतित लोग और संगठन इसके खिलाफ कानून बनाने की मांग कर रहे हैं, लेकिन नौवें सिख गुरु गुरु तेगबहादुर ने मुगल बादशाह औरंगजेब के सामने चांदनी चौक में सीना तानकर कहा-शीश कटा सकते हैं, लेकिन केश नहीं। उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए शीश कटा दिया, पर झुके नहीं। आज से 346 वर्ष पहले उन्होंने अपने बलिदान से उस वक्त मुगलों द्वारा किए जा रहे बड़े पैमाने पर मतांतरण के खिलाफ देशवासियों को खड़ा कर दिया। उसका परिणाम यह हुआ कि पूरा देश इस्लामीकरण से बच गया। इस बलिदान के लिए उन्हें 'हिंद दी चादर' भी कहा जाता है।
जहां गुरुजी ने बलिदान दिया, उस जगह पर गुरुद्वारा सीसगंज साहिब शान से खड़ा है। आज गुरु तेग बहादुर का शहीदी दिवस है। कोरोना संक्रमण का मामला न होता तो अल सुबह से यहां से प्रभात फेरी व नगर कीर्तन निकलना शुरू हो जाता। मत्था टेकने और गुरुजी को नमन करने दूर-दूर से संगत आती, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। दिशानिर्देशों का पालन करते हुए संक्षिप्त आयोजन होंगे। वैसे, मंगलवार को चांदनी चौक स्थित गुरुद्वारा सीसगंज साहिब व सामने स्थित भाई मतीदास चौक पर गुरु तेगबहादुर के शिष्य भाई मतिदास, भाई सतीदास और भाई दयाला जी का शहीदी दिवस मनाया गया।
बता दें कि गुरु तेग बहादुर के बलिदान से पहले औरंगजेब के आदेश पर इन तीनों शिष्यों की भी क्रूर तरीके से हत्या की गई थी। धर्म की रक्षा में ये शिष्य अंततक डटकर खड़े रहे। एक शिष्य को आरी से बीच से कटवा दिया गया। दूसरे को रूई से बांधकर आग लगा दी गई। वहीं, तीसरे शिष्य को उबलते पानी में फेंककर मारा गया था। शिष्यों को मारने के पीछे सोच थी कि गुरुजी डर जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इतिहासकारों के मुताबिक गुरु तेग बहादुर धर्म की रक्षा के लिए पहले से बलिदान को तैयार थे। इसीलिए उन्होंने औरंगजेब से सीधे लोहा लिया।
मुगल बादशाह कश्मीरी पंडितों को जबरन मुसलमान बनाने पर तुला हुआ था। डरा धमका कर तथा जो मतांतरण के लिए तैयार नहीं होते थे, उनकी वह हत्या करा रहा था। ऐसे में कश्मीरी पंडित कृपा राम की अगुवाई में गुरु तेग बहादुर के पास आकर रक्षा की गुहार लगाई। गुरुजी ने उनकी इफाजत का जिम्मा ले लिया। औरंगजेब चाहता था कि गुरु तेग बहादुर की हत्या के बाद उनके शीश को लाल किले पर टांगकर पूरे देश में दहशत फैलाई जाए, पर गुरु के शिष्य भाई जेता जी उनका शीश उनके पुत्र व दसवें सिख गुरु गुरु गोबिंद सिंह के पास लेकर सकुशल पहुंच गए।
वहीं, भाई लक्खी साह बंजारा उनका धड़ अपने घर ले जाकर दाह संस्कार किया। जहां गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब खड़ा है। सीसगंज गुरुद्वारे के प्रबंधन से जुड़े कृपाल ¨सह ने बताया कि प्रशासन ने आयोजन की मंजूरी नहीं दी है। इसलिए गुरुद्वारा रकाबगंज तक नगर कीर्तन या प्रभात फेरी नहीं निकाली जाएगी।