21वीं सदी की नई शिक्षा नीति को मिली सराहना, कई प्रधानाचार्यों ने बताया - 'क्रांतिकारी कदम'
नई शिक्षा नीति एक क्रांतिकारी कदम है। कई प्रधानाचार्यों के मुताबिक 34 सालों बाद इस नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद स्कूली शिक्षा व्यवस्था में कई अहम बदलाव भी देखने को मिलेंगे।
नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। देश में स्कूली शिक्षा क्षेत्र में परिवर्तनकारी सुधारों के लिए अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 लागू होगी। 21वीं सदी की इस नई शिक्षा नीति की सराहना करते हुए राजधानी दिल्ली के प्रधानाचार्यों ने कहा कि केंद्र सरकार ने छात्रों के हित को ध्यान में रखते हुए इस नई शिक्षा नीति के ढांचे को बनाया और लागू किया है। भारतीय शिक्षा व्यवस्था में यह एक क्रांतिकारी कदम है। उनके मुताबिक 34 सालों बाद इस नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद स्कूली शिक्षा व्यवस्था में कई अहम बदलाव भी देखने को मिलेंगे। इस नीति के तहत छात्रों की बुनियादी और न्यूमरेसी की समझ बढ़ेगी। वहीं, अतिरिक्त पाठ्यक्रम गतिविधियों को भी मुख्य पाठ्यक्रम में शामिल करने से बच्चे के व्यक्तित्व का भी विकास होगा। अब वो सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं डूबा रह जाएगा। प्रधानाचार्यों के मुताबिक लोग जिस 21वीं सदी के भारत की कल्पना करते थे अब वो सपना सही मायने में पूरा होने जा रहा है।
सीखने पर ज्यादा ध्यान
21वीं सदी की इस शिक्षा नीति से छात्रों में विश्लेषण, प्रदर्शन, संकलन और संचार की करने की क्षमता उभर कर आएगी। इससे सभी अनुसंधान आधारित विश्व की कल्पना कर पाएंगे। व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा मिलने छात्रों में विषय को रटने की पद्धति भी खत्म होगी। वो सीखने पर ज्यादा ध्यान देंगे। इससे छात्रों का समग्र विकास होगा और वो अंकों की दौड़ का हिस्सा नहीं बनेंगे।
डॉ अमिता मुल्ला वॉतल, प्रधानाचार्या, स्प्रिंग डेल्स पब्लिक स्कूल, पूसा रोड
मजबूत होगी बुनियादी समझ
नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषाओं के साथ संस्कृति, ज्ञान और मूल्यों को बढ़ावा देनी की जो बात है वो वाकई काबिले तारीफ है। बचपन से बच्चों की पढ़ाई को लेकर शैक्षणिक ढांचा तैयार करने की बात कही है उससे कहीं न कहीं बुनियादी समझ मजबूत होगी और उनको कौशल भी सीखने को मिलेगा। छठवीं कक्षा से ही कौशल सीखने से न सिर्फ आगे चलकर देश को आत्मनिर्भर बनने में मदद मिलेगी बल्कि छात्रों के व्यक्तित्व का भी विकास होगा। शिक्षा नीति में यह बदलाव सकारात्मक है।
ज्योति अरोड़ा, प्रधानाचार्या, माउंट आबू स्कूल रोहिणी
स्थानीय भाषा सीखाने से बढ़ेगी रचनात्मक क्षमता
बहुत ही सराहनीय और काबिलेतारीफ कदम उठाया सरकार ने। इस नई शिक्षा नीति से छोटी कक्षा से ही बच्चें की बुनियादी शिक्षा मजबूत होगी और उन्होेंने कितना सीखा यह भी पता चलेगा। इससे प्रधानाचार्य और शिक्षकों को भी पता चलेगा की छात्र को किस विषय पर मेहनत करने की जरुरत है। साथ ही बच्चों की परीक्षा भी रुचिकर बनेगी। स्थानीय भाषा में सीखाने की जो बात कही है वो कहीं न कहीं बच्चें की रचनात्मक क्षमता को बढ़ाएगी। शिक्षा में एक तरह से बहुत ज्यादा सुधार होगा।
प्रधानाचार्या, नीता अरोड़ा, श्री वेंकटेशवर इंटरनेशनल स्कूल, द्वारका सेक्टर-18
ऐतिहासिक और क्रांतिकारी परविर्तन देखने का मिलेगा
लगभग तीन दशकों के बाद हमारे देश के शिक्षा स्वरूप में बहुप्रतीक्षित बदलाव का दस्तावेज आया है। इससे एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलेगा। जहां एक तरफ सेवा का भाव जागृत होगा वहीं दूसरी तरफ वैज्ञानिक दृष्टिकोण, रचनात्मकता और चारित्रिक विकास की गति बढ़ेगी। विषयों के चयन में आधार कौशल, बहुभाषीय अध्ययन, राष्ट्रीय रिसर्च फाउंडेशन, राष्ट्रीय तकनीकि आयोग, राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, और छात्रवृति, संसाधनों और सुविधाओं के लिए राष्ट्रीय कोष जैसे प्रावधान निश्चित तौर पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को शिक्षा क्षेत्र में एक मील का पत्थर साबित करेंगे।
राकेश सेमल्टी, प्रधानाचार्य, राजकीय बालक उच्च माद्यमिक विद्यालय, वेस्ट ज्योति नगर
जरूरत थी बदलाव की
इस नीति में उन दो करोड़ छात्रों का भी ध्यान रखा गया है जो किसी न किसी वजह से शिक्षा की मुख्य धारा से दूर हो गए थे। अब इन छात्रों को भी स्कूली शिक्षा से जोड़ा जाएगा। 10+2 की पुरानी शिक्षा नीति में वाकई बदलाव की जरूरत थी। स्कूली शिक्षा में 5+3+3+4 का ढांचा एक रचनात्मक कदम है। यह एक तरह से छात्रों का समग्र विकास करेगी। छात्र अपनी मातृभाषा के साथ स्थानीय भाषाओं को भी बढ़ावा देना सीखेंगे।
प्रधानाचार्य, उत्तम सिंह, जिंदल पब्लिक स्कूल, द्वारका