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मैली नदियों की पुकार योजनाएं कब करेंगी उद्धार, समय के साथ नालों में बह गईं योजनाएं

सवाल यह उठता है कि करोड़ों रुपये की योजनाएं कहां पूरी हो रही हैं? जब हर वर्ष यमुना में अमोनिया की मात्रा बढ़ने की स्थिति पैदा होती है तो आखिर इसका स्थायी समाधान क्यों नहीं निकाला गया? इसी की पड़ताल करना आज का मुद्दा है

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 20 Jan 2021 10:01 AM (IST)Updated: Wed, 20 Jan 2021 10:07 AM (IST)
मैली नदियों की पुकार योजनाएं कब करेंगी उद्धार, समय के साथ नालों में बह गईं योजनाएं
न तो यमुना निर्मल हुई और न ही निर्बाध जलापूर्ति ही हो पाई।

नई दिल्‍ली, जेएनएन। हमारे मौलिक सिद्धांतों की नींव बेहद कमजोर होती जा रही है। तभी तो प्रकृति के अनमोल वरदानों के बारे में बचपन से पढ़ते, गुनते, समझते आए हैं फिर भी उन स्रोतों का हरण, हनन इस कदर कर रहे हैं कि जल धरातल में समाता जा रहा है। मैली नदियां अस्तित्व बचाने को कराह रही हैं। खुद ही बिगाड़ कर अब हम सिस्टम की ओर सुधार की टकटकी लगाए हैं। सिस्टम भी सुधार के मोटे बजट के साथ सशक्त योजनाओं की बुनियाद तो खड़ा कर रहा है लेकिन मैली यमुना और हरनंदी हर रोज गवाही दे देती हैं कि उनके हित में कुछ नहीं हो रहा है।

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वच्छ जल का मौलिक अधिकार और प्रत्येक व्यक्ति को उन्हें राज्यों द्वारा सुनिश्चित कराने जैसी की गई टिप्पणी हर किसी की आंखें खोलने वाली हैं। आखिर स्वच्छ पेयजल क्यों नहीं मिल पा रहा है? नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के लिए सरकार की तरफ से कई योजनाएं चलाई गईं, लेकिन सब फाइलों में ही गवाही दे रही हैं। न तो यमुना निर्मल हुई और न ही निर्बाध जलापूर्ति ही हो पाई। 

समय के साथ नालों में बह गईं योजनाएं : दिल्ली-एनसीआर में पीने के पानी का मुख्य स्रोत यमुना और हरनंदी नदी ही हैं। 11 इन नदियों से पानी को शोधित कर पीने योग्य बनाकर शहरों में सप्लाई किया जाता है, लेकिन प्रदूषण और गंदगी का अलम यह है कि अब जल शोधन मशीनें भी पानी को साफ और स्वच्छ नहीं कर पातीं। नदियों को साफ करने के लिए कई बार योजनाएं बनीं जो धरातल से दूर ही रहीं। दोषियों पर कार्रवाई की बातें भी हुईं, मगर वह भी निष्प्रभावी है। कब कब क्या क्या बनी योजनाएं, नए सिरे से क्या हो रही है व्यवस्था, कहां है गतिरोध जानेंगे आंकड़ों की जुबानी :

यमुना में प्रदूषण रोकने की महत्वाकांक्षी परियोजना

इंटरसेप्टर सीवर लाइन

  • लंबाई- 59 किलोमीटर
  • निर्माण शुरू हुआ - वर्ष 2011
  • परियोजना पूरी करने की निर्धारित
  • अवधि- तीन साल

क्या है योजना

तीन प्रमुख नाले (नजफगढ़, शाहदरा व सप्लीमेंट्री ड्रेन) के समानांतर इंटरसेप्ट सीवर लाइन व सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) का निर्माण परियोजना पर लागत-1963 करोड़ रुपये

  • 10 साल बाद स्थिति- 99 फीसद
  • लक्ष्य- यमुना में 70 फीसद प्रदूषण कम करना

ओखला में सीवरेज शोधन संयंत्र का नवीनीकरण निर्माण- 564 एमएलटी

(मिलियन गैलन डेली)

  • निर्माण शुरू हुआ- जुलाई 2019
  • लागत- 665.78 करोड़ रुपये
  • निर्माण पूरा करने का समय- 42 माह (करीब साढ़े तीन साल)

कोंडली के तीन पुराने एसटीपी का जीर्णोद्धार

  • बजट : 239.11 करोड़ रुपये

    रिठाला एसटीपी-1 का जीर्णोद्धार व एसटीपी-2 का निर्माण

    बजट : 211 करोड़ रुपये

छतरपुर में सीवरेज पंपिंग स्टेशन और नौ विकेंद्रीकृत एसटीपी निर्माण की योजना

बजट : 65.24 करोड़ रुपये

लुभावनी योजनाएं

यमुना एक्शन प्लान तीन के तहत जापान इंटरनेशन कापरेशन एजेंसी (जिका) द्वारा जारी लोन- 2000 करोड़ रुपये

यमुना एक्शन प्लान तीन के लिए जिका द्वारा लोन देने का वादा- 4000 करोड़ रुपये

परियोजना- 36 एसटीपी का निर्माण और जीर्णोद्धार

दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश शामिल हैं इस परियोजना में

गाजियाबाद में समय बीत गया पर लक्ष्य नहीं हुआ पूरा

100 नाले हरनंदी नदी को कर रहे हैं गंदा

एक नदी के बराबर प्रदूषित पानी निकलता है इन नालों से सिर्फ योजनाएं ही बनती रहीं

साल 2000 में हरनंदी की सफाई को लेकर प्रशासन ने समिति का गठन किया

समिति में निगम, प्रदेश जल निगमर्, ंसचाई विभाग व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी किए गए शामिल

तीन साल में साफ करने का रखा गया लक्ष्य

समय सीमा बीत जाने के बाद भी लक्ष्य अधूरा

वर्ष 2005 और 2010 में भी नहीं हो सका योजनाओं पर अमल

ये हैं प्रस्तावित योजनाएं

हरनंदी के किनारे बसे शहरों में लगाए जाएंगे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट

बायोरेमेडिएशन के जरिए नदी में छोड़े जा रहे हैं कीड़े, जो अपशिष्ट पदार्थ खाते हैं

उत्तर प्रदेश जल निगम नदी को स्वच्छ बनाने के लिए डीपीआर बना रहा है।

88 करोड़ की बनाई जा रही है डीपीआर उत्तर प्रदेश जल निगम द्वारा

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