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दिल्ली की हवा को काला कर रहे एनसीआर के कोयला संयंत्र, जानिए क्‍या कहत हैं विशेषज्ञ

संयंत्रों से जो धुआ निकलता है उसमें खतरनाक गैसें भी निकलती हैं। दिल्ली के अपने तो ऐसे तीनों संयंत्र काफी पहले ही बंद हो चुके हैं लेकिन दादरी झज्जर व पानीपत में चल रहे हैं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Tue, 21 Jul 2020 07:05 AM (IST)Updated: Tue, 21 Jul 2020 07:05 AM (IST)
दिल्ली की हवा को काला कर रहे एनसीआर के कोयला संयंत्र, जानिए क्‍या कहत हैं विशेषज्ञ
दिल्ली की हवा को काला कर रहे एनसीआर के कोयला संयंत्र, जानिए क्‍या कहत हैं विशेषज्ञ

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। कोयले से चलने वाले एनसीआर के ऊर्जा उत्पादन संयंत्र भी राजधानी की हवा को काला कर रहे हैं। इन संयंत्रों के धुएं से निकलने वाली खतरनाक गैसें हवा में जहर घोल रही हैं। विडंबना यह भी कि दिल्ली के अपने तो ऐसे तीनों संयंत्र काफी पहले ही बंद हो चुके हैं, लेकिन दादरी, झज्जर व पानीपत में अभी भी चल रहे हैं। न तो इन्हें काेयले से गैस में तब्दील किया गया है अौर न ही नई तकनीक पर लाया गया है। आइआइटी कानपुर के विशेषज्ञों ने भी इस पर चिंता जताई है।

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लॉकडाउन के पहले और इस दौरान की हवा पर हुई स्टडी 

जानकारी के मुताबिक इन संयंत्रों से जो धुआ निकलता है, उसमें सल्फर डाइऑक्साइड व नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसी खतरनाक गैसें भी निकलती हैं। यह गैसें वायुमंडल में समाहित होकर स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर डालती हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए आइआइटी कानपुर ने लॉकडाउन के पहले और इसके दौरान दिल्ली की हवा का अध्ययन किया। अध्ययन के लिए सल्फर, लेड, सेलेनियम, और आर्सेनिक जैसे तत्वों का चयन किया गया क्योंकि इनकी मदद से ही इसका सही अनुमान मिल पाता कि पीएम 2.5 में कोयला संचालित ऊर्जा उत्पादन संयंत्रों का योगदान कितना है। अध्ययन में सामने आया कि दिल्ली के पीएम 2.5 में इन संयंत्रों का योगदान आठ फीसद तक है। हालांकि लॉकडाउन के दौरान इसमें महत्वपूर्ण गिरावट दर्ज की गई लेकिन लॉकडाउन के अंत तक यह वापस अपने पूर्व स्तर के करीब आ गया।

दिल्‍ली के तीनों संयंत्र बंद

जानकारों के मुताबिक दिल्ली के वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के ही लिए यहां के तीनों कोयला संचालित बिजली संयंत्र राजघाट पावर हाउस, इंद्रप्रस्थ गैस लिमिटेड और बदरपुर थर्मल पावर स्टेशन पहले ही बंद किए जा चुके हैं, लेकिन एनसीआर में यह अभी भी ऊर्जा उत्पादन कर रहे हैं। 2015 में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने अधिसूचना जारी कर देश भर के लिए यह आदेश निकाला था कि 2017 तक तो या तो काेयला संचालित संयंत्र बंद कर दिए जाएं या गैस में तब्दील हो जाएं या फिर इन्हें फ्लू गैस सल्फराइजेशन (एफजीडी) तकनीक से चलाया जाए। मालूम हो कि यह तकनीक इन संयंत्रों के धुएं से हानिकारक गैसें समाप्त कर देती है। लेकिन पहले इस समय सीमा को 2020-21 तक बढ़वा लिया गया और अब जबकि यह समय सीमा भी खत्म हाेने को है तो फिर से समय मांगने की कवायद शुरू हो गई है।

सीपीसीबी लगा सकता है जुर्माना

हालांकि कोयला आधारित संयंत्र संचालकों द्वारा 2020 की समयसीमा का पालन नहीं किए जाने पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने उन पर भारी जुर्माना लगाने को कहा है। लेकिन जिस हिसाब से यह संयंत्र बिजली उत्पादन करते हैं, उसके मुकाबले यह जुर्माना नहीं के बराबर है। कुल ऊर्जा लागत का सिर्फ 0.12 से 3.28 फीसद तक का जुर्माना नगण्य है। काउंसिल एट एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के फैलो कार्थिक गणेसन कहते हैं, तय मानकों का अनुपालन नहीं करने के लिए कोई ख़ास जुर्माना नहीं लगाया जा रहा। जब तक केंद्र से स्पष्ट नीति निर्देश नहीं आएंगे, तब तक सख्ती हो पाना मुश्किल है।

हमने अपने अध्ययन की विस्तृत रिपोर्ट सीपीसीबी को सौंप दी है। दिल्ली के साथ-साथ देश भर की हवा में भी सुधार के लिए सख्ती जरूरी है। संभावना है कि सीपीसीबी इस स्थिति को लेकर जल्द ही अहम दिशा निर्देश जारी करेगा।

प्रो. एस एन त्रिपाठी, विभागाध्यक्ष, सिविल इंजीनियरिंग, आइआइटी कानपुर


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