AAP-कांग्रेस गठबंधन में फंसा पेंच, शरद पवार-संजय सिंह मुलाकात भी नहीं खिला सकी गुल
सूत्रों के मुताबिक आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के बीच दिल्ली में गठबंधन के मुद्दे पर शरद पवार मध्यस्थतता की भूमिका निभा सकते हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। Lok Sabha Election 2019: लोकसभा चुनाव 2019 के मद्देनजर पहले चरण के लिए होने वाले मतदान का नामांकन तक शुरू हो गया है, लेकिन दिल्ली के साथ-साथ बिहार में भी कांग्रेस पार्टी का साथी दलों से गठबंधन नहीं बन पाया है। इस बीच दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी पार्टी (AAP) के साथ कांग्रेस के गठबंधन को लेकर अब राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है।
एक तरफ जहां आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता देरी हो जाने की बात कह कर कांग्रेस से गठबंधन की बात से मना कर रहे हैं, वहीं इसके ही कुछ नेता अब भी प्रयास में लगे हुए हैं। इसी कड़ी में AAP से राज्यसभा सदस्य संजय सिंह ने मंगलवार को पूर्व केंद्रीय मंत्री व कद्दावर नेता शरद पवार से मुलाकात की। बताया जा रहा है कि संजय सिंह ने पवार से गठबंधन के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से बात करने का अनु्रोध किया है। यह अलग बात है कि इस बारे में संजय सिंह ने मीडिये के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया और न ही AAP का कोई नेता जवाब देने को तैयार है।
वहीं, संजय सिंह ने कहा कि कांग्रेस पार्टी कभी कुछ बोलती है और कभी कुछ। ऐसे में हमने अपने सातों प्रत्याशी उतार दिए हैं और हम पूरे दमखम के साथ चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे। उन्होंने कहा कि आज देश में हालात ठीक नहीं हैं। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कहते हैं कि यह चुनाव जिता दो, 50 साल तक देश में चुनाव नहीं होंगे। वहीं भाजपा के एक अन्य सांसद साक्षी महाराज कहते हैं 2019 का चुनाव मोदी को जिता दो। इसके बाद कोई चुनाव नहीं होगा। आखिर देश में यह सब हो क्या रहा है। इन भाजपा वालों को जनता के वोट की ताकत का भी अहसास नहीं है। संजय सिंह ने कहा कि इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए हमारा प्रसास था कि सभी विपक्षी दल एक होकर चुनाव लड़ें और भाजपा को हराएं। मगर कांग्रेस की स्थिति साफ नहीं है।
अपने अहंकार को बचाए रखने में कांग्रेस की दिलचस्पी
गोपाल राय वहीं मंगलवार को प्रेसवार्ता के दौरान आप के दिल्ली प्रदेश संयोजक एवं कैबिनेट मंत्री गोपाल राय ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से जिस तरह कांग्रेस हर घंटे में चार बयान देती है, बार-बार अपना पक्ष बदलती है, उसको देखकर एक बात साबित हो गया है कि कांग्रेस के लिए देश सर्वोपरि नहीं है। जिस तरह से दिल्ली में गठबंधन को लेकर कांग्रेस के नेताओं के बयान आ रहे हैं, उससे यह निष्कर्ष निकलता है कि कांग्रेस देश को मोदी और शाह की तानाशाही से बचाने में कम दिलचस्पी रखती है और अपने अहंकार को बचाए रखने में ज्यादा। AAP ने देश को मोदी और शाह द्वारा अघोषित आपातकाल की स्थिति से बचाने के लिए महागठबंधन में शामिल होने का फैसला लिया था। इसी संदर्भ में कांग्रेस के साथ सैकड़ों मतभेद होने के बावजूद दिल्ली में उसके साथ गठबंधन करने के बारे में सोचा था। परंतु जिस तरह से कांग्रेस का ढुलमुल रवैया रहा है उसने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और दिल्ली में भाजपा के खिलाफ उठ रहे जन आंदोलन को अधर में लटकाने का काम किया है। कांग्रेस ने जिस तरह से अपना पक्ष तय करने में समय खराब किया है और अभी तक कोई निर्णय नहीं ले पाई है यह बड़ा ही आश्चर्यजनक है।
गौरतलब है कि दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (DPCC) अध्यक्ष शीला दीक्षित AAP के साथ गठबंधन के खिलाफ हैं और बताया जा रहा है कि इस बाबत दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को खत भी लिखा है। इसमें उन्होंने AAP से गठबंधन को लेकर असहमति जताते हुए कहा है कि यह लोकसभा चुनाव में नुकसान का सबब हो सकता है।
बिहार-बंगाल में भी गठबंधन नहीं!
भाजपा को हराने के लिए कांग्रेस देशभर में गठबंधन की नीति पर काम कर रही है, लेकिन दो बड़े राज्यों पश्चिम बंगाल और बिहार में भी अभी तक पार्टी को कामयाबी नहीं मिल पाई है। उत्तर प्रदेश में भी स्पष्ट है कि गठबंधन कर चुकी सपा-बसपा कांग्रेस के साथ हाथ नहीं मिलाएंगी। वहीं, बिहार में राजद एवं पश्चिम बंगाल में वाम दलों के साथ लगातार रस्साकशी ही चल रही है। अगर यहां भी पार्टी को कामयाबी नहीं मिली तो इस सबका असर दिल्ली में भी देखने को मिल सकता है। पार्टी के आला नेताओं का कहना है कि यदि कहीं गठबंधन नहीं होता है तो फिर महज दिल्ली की सात सीटों के लिए भी गठबंधन करने का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा।