श्रद्धांजलि नामवर सिंह : साहित्यकारों ने कहा- तारीफ भी करते थे और साथ में कमियां भी बताते थे
¨हदी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर ¨सह के निधन पर शहर का साहित्य जगत शोक में है। साहित्यकारों ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद करते हुए उन्हें भाव भीनी श्रद्धांजलि दी है। गुरुग्राम में रहने वाले साहित्यकारों ने कहा कि वे ¨हदी आलोचना के सूर्य रहे हैं। उन्हें ¨हदी जगत हमेशा याद रखेगा। उन्होंने जाना साहित्य जगत के लिए एक बड़ी खाई उत्पन्न् हुई है। गुरुग्राम में रहने वाले वरिष्ठ साहित्यकारों ने डा. नामवर ¨सह को इन शब्दों में याद किया।
गुरुग्राम, जेएनएन। हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष नामवर सिंह के निधन पर साइबर सिटी का साहित्य जगत शोक में है। साहित्यकारों ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को याद करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। गुरुग्राम में रहने वाले साहित्यकारों ने कहा कि वे हिंदी और आलोचना के सूर्य रहे हैं। उन्हें हिंदी जगत हमेशा याद रखेगा। गुरुग्राम में रहने वाले वरिष्ठ साहित्यकारों ने डॉ. नामवर सिंह को इन शब्दों में याद किया।
साहित्य जगत ने प्रज्ञावान पुरुष खोया
आचार्य सीके पांडेय निशांत केतु ने बताया कि नामवर सिंह प्रज्ञावान पुरुष थे। सुबुद्ध आलोचक थे। उन्होंने रचनात्मक मौलिक रचनाएं कम की हैं, आलोचनाएं ज्यादा लिखी। उनका जाना साहित्य जगत के लिए एक बड़ी क्षति है। उनकी एक बड़ी विशेषता रही है कि वे उत्तेजना में कभी नहीं बोलते थे, बहुत ही शांत भाव से अपने विचार व्यक्त करते थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शिष्य थे। अपने गुरु से विचारधारा में भिन्नता होते हुए भी उन्होंने शिष्य का कर्तव्य बहुत अच्छी तरह निभाया। वे एक विचारधारा से प्रभावित थे। वे बहुत अच्छे आलोचक थे और ज्यादा अच्छे आलोचक होते अगर विचारधारा के प्रभाव में नहीं होते। मेरी उनसे कई बार मंचों पर मुलाकात हुई है।
बिहार राष्ट्रभाषा परिषद के एक कार्यक्रम में हम दोनों साथ थे। एक बार भोजपुरी सम्मेलन में वे आए थे और उन्होंने भोजपुरी में भाषण दिया था। उनकी एक लाइन मुझे याद है- उन्होंने कहा था कि भोजपुरी का विरोध करने वालों का भोजपुरी भाषी कचूमर निकाल देंगे।
डॉ. चंद्रकांता ने बताया कि मेरे लिए तो यह एक व्यक्तिगत क्षति है डॉ. नामवर सिंह का जाना साहित्य जगत में एक बड़ा विवर पैदा कर गया है। उन्होंने मेरी कई कृतियों की समीक्षा की है। वे तारीफ भी करते थे और साथ में कमियां भी बताते थे। आज के तथाकथित समीक्षकों में यह बात नहीं जो खामियां भी गिनाएं और खूबियां भी बताएं। मेरे लिए वह बहुत आत्मीय रहे हैं, उनका जाना मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति है। साहित्य जगत के लिए कृष्णा सोबती के बाद डॉ. नामवर सिंह का जाना साहित्य जगत की एक बहुत बड़ी क्षति है।
आमतौर बड़े नाम वाले लोगों से मिलना, उनसे चर्चा करना आसान नहीं होता। वे सर्व सुलभ थे। वे बड़े समीक्षक तो थे मगर मेरी नजर वे बड़े व्यक्ति थे, जिन्होंने अपनी व्यक्तिगत विचारधारा को समीक्षा पर हावी होने नहीं दिया। वे खुद कम्युनिस्ट विचारधारा को मानते थे मगर उनकी समीक्षा में व्यक्तिगत विचारधारा को हावी नहीं होने देते थे। वह आसानी से मिलते थे, चर्चा करते थे। मेरी कई गलतियों को उन्होंने बताया मगर तारीफ भी करते थे। एक आम लेखक उनसे आसानी से मिल सकता था।
डॉ. नंदलाल मेहता ने बताया कि दूसरी विचारधारा के लोगों को भी बहुत गंभीरता से सुनते थे। नामवर सिंह का चले जाना हिंदी साहित्य जगत की एक अपूरणीय क्षति है। हालांकि वामपंथी विचारधारा के थे मगर उनका सभी विश्वविद्यालयों में सम्मान था। मैं उनसे कई बार मिला हूं। वे मुझे गुरुग्राम वाले मेहताजी के नाम से बुलाते थे। विश्व पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन की अपनी पुस्तक नई कविता के प्रतिमान उन्होंने मुझे अपने हस्ताक्षर के साथ दी थी। मैं अपने शिक्षक शशि भूषण सिंगला को प्रणाम करके आ रहा था, पीछे से
उन्होंने मुझे बुलवाया मुझे चाय पिलाई। उनकी अपनी विचारधारा थी मगर वे दूसरों की बात को भी बड़े ही ध्यान से सुनते थे। एक बार मीरा पर उनका बहुत ही मार्मिक व्याख्यान मैंने सुना थे। वे बहुत ही अच्छे वक्ता थे। वे किसी भी प्रसंग को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से जोड़ देते थे। वे अपनी वामपंथी विचारधारा के थे मगर जड़ता के शिकार नहीं थे। वे जिनकी आलोचना करते, उन किताबों बहुत ही बारीकी से अध्ययन करते थे। हिंदी साहित्य जगत के लिए उनका जाना एक अपूरणीय क्षति है।
वागीश सुरुचि के कार्यक्रम में दो बार व्याख्यान का जिक्र
मदन साहनी ने बताया कि प्रख्यात आलोचक डॉ. नामवर सिंह का निधन हिंदी साहित्य जगत के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। सुरुचि कला एवं साहित्य परिवार के दो कार्यक्रमों में उन्होंने हिस्सा लिया था। गुरुग्राम के लोग उनके भाषण को अभी भी नहीं भूले हैं। वे कुशल वक्ता थे। हिंदी भाषा में समालोचना के उनके जैसा कोई विद्वान नहीं है। उन्होंने साहित्य के विभिन्न विधाओं के भेद को जितना समझा है, उतना किसी ने नहीं। उपन्यास, कहानी, व्यंग्य की बारीकियों को समझने और परखने के कारण उन्हें याद किया जाता रहेगा। अपनी खुद की रचनाएं उन्होंने कम की है। वे एक कुशल वक्ता थे, गुरुग्राम के कार्यक्रमों में उन्होंने गुरुग्राम के लोगों के बीच अपनी छाप छोड़ी।
हिंदी जगत का बड़ा नुकसान
डॉ. मुक्ता ने बताया कि हिंदी के प्रख्यात आलोचक और साहित्यकार नामवर सिंह का निधन हिंदी साहित्य जगत यह एक बड़ा नुकसान है। उन्होंने हिंदी साहित्य में आलोचना को एक नया आयाम और नई ऊंचाई दी है। मैंने कई कार्यक्रमों में उनको सुना है। वे बहुत ही अच्छे वक्ता थे। बहुत ही नपा-तुला और सोच समझ कर बोलते थे। विषय की गंभीरता को समझते थे। साहित्य हर विधा को वो जिस तरह समझते हैं, वैसा कोई और नहीं।