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दिल्ली में एक जगह ऐसी भी, यहां छोले-कुलचे चाहिए तो मसाले का नंबर बताइए

छोले कुलचे तो आपने बहुत जगह खाए होंगे पर लेकिन वेस्ट गुरु अंगद नगर के छोले कुलचों की बात ही कुछ और है।

By Edited By: Published: Thu, 07 Jun 2018 09:00 PM (IST)Updated: Fri, 08 Jun 2018 11:12 AM (IST)
दिल्ली में एक जगह ऐसी भी, यहां छोले-कुलचे चाहिए तो मसाले का नंबर बताइए
दिल्ली में एक जगह ऐसी भी, यहां छोले-कुलचे चाहिए तो मसाले का नंबर बताइए

नई दिल्ली (शुजाउद्दीन)। छोले-कुलचे तो आपने बहुत जगह खाए होंगे, लेकिन लक्ष्मी नगर के वेस्ट गुरु अंगद नगर के छोले-कुलचों की बात ही कुछ और है। कुलचे तो एक जैसे ही है, लेकिन छोले की कई वेरायटी मौजूद हैं और सभी को मसाले के हिसाब से नंबर दिया गया है। यानी आप जब छोले का नंबर बताएंगे, तभी आपको आपकी पसंद के छोले-कुलचे मिल पाएंगे।

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नंबर की जानकारी के बगैर अगर आपने गलती से 120 नंबर चुन लिया और तेज मिर्च वाला जायका पसंद नहीं है तो फिर आपका सारा स्वाद बिगड़ सकता है। वहीं, हरी मिर्च और टमाटर के लिए अलग कोड है। हरी मिर्च चाहिए तो कैप्सूल कहकर अपनी मांग रखनी पड़ेगी और टमाटर चाहिए तो मक्खन देने के लिए कहना पड़ेगा।

1980 से ठेले पर छोले-कुलचे बेच रहे सुरेश छोले की वेरायटी को लेकर पूर्वी दिल्ली में काफी चर्चित हैं। इसलिए सुबह 11 बजे से ही उनके ठेले पर कतार दिखने लगेगी। जब छोले समाप्त होने वाले होते हैं और अगर कोई पूछ ले कि छोले हैं तो सुरेश जवाब देते हैं कि आखिरी ओवर चल रहा है। पारी समाप्ति की ओर है। उनका यह अंदाज भी लोगों को भाता है और लोग अपने स्वाद के अनुसार छोले का नंबर बताकर छोले लेते हैं।

38 साल से एक ही जगह लगा रहे ठेला विक्रेता सुरेश ने बताया कि वह 38 साल से एक ही जगह पर ठेला लगा रहे हैं। शुरुआत में उन्होंने एक ग्राहक से मजाक में कहा था कि कितने नंबर मसाले वाले छोले चाहिए। यह ट्रायल था। उसके बाद उन्होंने छोले की हर वेरायटी पर नंबर डाल दिया और आज लोग इस तरकीब को पसंद भी कर रहे हैं। यहां 0, 60, 90 और 120 नंबर वाले छोले मिलते हैं। इस ठेली ने उन्हें काफी पहचान दिलाई और उनके जीवन को बदलकर रख दिया।

नौकरी नहीं मिली पर हौसले ने दिलाई प्रसिद्धि

सुरेश ने बताया कि उन्होंने 10वीं कक्षा तक पढ़ाई की है। इसके बाद नौकरी की तलाश में दर-दर ठोकरें खा रहे थे। जब कहीं नौकरी नहीं मिली तो उन्होंने छोले-कुलचे का ठेला लगाया। उन्हें छोला बनाना नहीं आता था, लेकिन वक्त सबकुछ सिखा देता है। वक्त बीतने के साथ ही वह अच्छे तरीके से छोले-कुलचे बनाने लगे और देखते ही देखते वह पूर्वी दिल्ली में मशहूर हो गए। इसलिए किसी को जीवन से निराश नहीं होना चाहिए।


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