दिव्यांग संगीता ने कई महिलाओं को किया अपने पैरों पर खड़ा, पेश की मिसाल
संगीता परिवार के साथ एक छोटे से घर में रहती हैं। अपने घर में ही वह करीब 15 महिलाओं के साथ मिलकर लहंगे व गाउन के दुपट्टों की सिलाई का काम करती हैं।
नई दिल्ली [रितु राणा]। सफलता और आत्मनिर्भरता दो ऐसी बाते हैं जो सिर्फ कहने भर से ही पूरी नहीं होती। इन्हें हासिल करने के लिए निरंतर मेहनत, प्रयास व दृढ निश्चय करना पड़ता है। इस बात पर खजूरी खास इलाके में रहने वाली संगीता जैन ने अमल किया और अपने साथ-साथ दूसरी महिलाओं को भी आत्मनिर्भरता की राह पर ले गई। अपनी दिव्यांगता को भुलाकर संगीता अन्य दिव्यांग व उपेक्षित महिलाओं का भविष्य संवार रही हैं। संगीता ने अपने घर के आसपास रहने वाली ऐसी महिलाओं का हाथ थामा, जिनका साथ किसी ने नहीं दिया। संगीता ने खुद का काम शुरू किया और अपने आसपास रहने वाली दिव्यांग व गरीब महिलाओं को इस काम से रोजगार कमाने के लिए प्रेरित किया।
संगीता परिवार के साथ एक छोटे से घर में रहती हैं। अपने घर में ही वह करीब 15 महिलाओं के साथ मिलकर लहंगे व गाउन के दुपट्टों की सिलाई का काम करती हैं। संगीता ने बताया कि पांच वर्ष पहले उन्होंने सिलाई का काम शुरू किया था। संगीता ने बताया कि वह दुपट्टों पर लेस लगाकर सिलाई करने के साथ-साथ उनमें लटकन लगाने का काम करती हैं। एक दुपट्टे पर लटकन लगाने के उन्हें पांच रुपये मिलते हैं। एक महिला एक दिन में करीब 300 दुपट्टे आराम से तैयार कर लेती है, जिससे वह महीने में कम से कम आठ हजार रुपये कमा लेती हैं। संगीत ने बताया कि उनकी बहन सीमा को भी उन्होंने अपने साथ काम करने कि लिए प्रेरित किया और आज वह भी अपने पैरों पर खड़ी है।
13 वर्ष पहले संगीता अरशद खान से मिली थी। अरशद में उन्हें एक सच्चा जीवनसाथी दिखा। दोनों का धर्म अलग था, लेकिन उनके दिल के तार ऐसे जुड़े की दुनिया की परवाह न करते हुए दोनों ने शादी कर ली। संगीता व अरशद दोनो दिव्यांग हैं पर आज दोनों अपने पैरों पर खड़े हैं और दूसरों के लिए मिसाल पेश कर रहे हैं। संगीता ने बताया कि अरशद से मिलने से पहले वह अपनी दिव्यांगता को अभिशाप मानती थी। वह शर्म के कारण घर से बाहर नहीं जाती थी, लेकिन जब से उनके जीवन में अरशद आए उनकी दुनिया बदल गई। अब वह दूसरों को भी आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। संगीता और अरशद की एक बेटी भी है, जो बिल्कुल स्वस्थ है।