Move to Jagran APP

दुग्ध उत्पादन व खेती कर ये महिलाएं कमा रहीं लाखों रुपये, ट्रैक्टर वाली कुड़ी के नाम से मशहूर हैं अमनदीप कौर

चाहे खेतों में पसीना बहाना हो या पशुधन को आय का जरिया बनाना ग्रामीण किसान महिलाएं न डरती हैं न झिझकती हैं और न ही जमाने के कुछ कहने की परवाह करती हैं। जैविक खेती कर महिलाएं लाखों रुपये कमा रही हैं।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 06:10 PM (IST)Updated: Fri, 28 Jan 2022 11:43 AM (IST)
दुग्ध उत्पादन व खेती कर ये महिलाएं कमा रहीं लाखों रुपये, ट्रैक्टर वाली कुड़ी के नाम से मशहूर हैं अमनदीप कौर
ट्रैक्टर चलाती पंजाब की अमनदीप कौर व खेती करती यूपी की नीरमती व उनकी बेटी श्रेया

नई दिल्ली [यशा माथुर]। कर्नाटक की आदिवासी महिला प्रेमा दासप्पा कभी मजदूरी करती थीं, लेकिन जब उन्हें सरकार से मुआवजे में तीन एकड़ जमीन मिली तो उस पर कुछ नया करने के उद्देश्य से उन्होंने सुपरफूड माने जाने वाले चिया के बीज उगाए और उन्हें महंगे दामों पर बेचकर मुनाफा कमाया। आज वह दूसरी आदिवासी महिलाओं को भी आर्थिक सशक्तीकरण का पाठ पढ़ा रही हैं। अब वह दूसरे किसानों को भी चिया के बीज बेचती हैं। प्रेमा दो महीनों में औसतन पचास-साठ हजार रुपये कमा लेती हैं। आज उन्हें गर्व है कि वह अपनी पोती को अच्छे स्कूल में पढ़ा रही हैं। प्रेमा दासप्पा की तरह ही इन दिनों ग्रामीण किसान महिलाएं खेती और पशुधन के साथ कुछ नया करने के लिए प्रेरित हैं और वे अपनी बुद्धिमता का बहुत आसानी से खेतों में प्रयोग कर रही हैं।

loksabha election banner

कर रहीं जैविक खेती

मां और बेटी मिलकर जब खेती की बागडोर संभालेंगी तो प्रयोग व अनुभव का मेल होगा और मुनाफा जरूर आएगा। यूपी के प्रयागराज जिले के कौंधियारा ब्लाक के कुल्हडिय़ा गांव में नीरमती और उनकी 21 साल की बेटी श्रेया जैविक खेती से खुशहाली की फसल काट रहीं हैं। वे ब्लैक क्राफ्ट तैयार कर रही है यानी अपने खेतों में काला गेहूं, काली हल्दी, काला आलू तैयार कर साल भर में दो लाख से अधिक का मुनाफा कमा रही हैं। नीरमती और उनकी बेटी श्रेया जैविक तरीके से मशरूम और अन्य सब्जियों की भी खेती कर रही हैं। गांव के एक साधारण किसान मान सिंह पटेल की पत्नी नीरमती और बेटी श्रेया ने पांच वर्ष पहले एक कमरे में चार हजार रुपये की लागत से मशरूम की पैदावार शुरू की थी। जब लागत से पांच गुना मुनाफा कमाया तो उनके इरादे और मजबूत हो गए। अब दोनों मशरूम के साथ काला गेहूं, काला आलू, काली हल्दी, काली भिंडी, लाल मूली, ब्रोकली आदि की खेती कर रही हैं।

नीरमती कहती हैं, पहले तो खेती करने में बहुत परेशानी होती थी, लेकिन जैसे-जैसे कमाई बढ़ी इरादा और जच्बा बढ़ता गया। इस समय हम चार कमरों में मशरूम की पैदावार कर रहे हैं और चार बीघा जमीन में अलग-अलग रसायनमुक्त सब्जियां उगा रहे हैं। स्नातक की पढ़ाई कर चुकीं श्रेया अन्य महिलाओं को भी जैविक खेती करने के लिए प्रेरित करती हैं और इसकी विशेषताएं बताती हैं। मां-बेटी की यह अनूठी पहल लोगों से खूब प्रशंसा पा रही है।

छोटे से कमरे से कारोबार

मशरूम की खेती ने महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता की राह खोल दी है। अब महिलाएं न केवल नई तकनीक से मशरूम की पैदावार कर रही हैं, बल्कि उत्पाद को बेचने के लिए बाजार में अपनी पैठ भी जमा रही हैं। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र से प्रशिक्षण लेने के बाद 250 महिलाएं मशरूम उत्पादन के साथ मशरूम पाउडर भी बना रही हैं। एक किलो मशरूम के उत्पादन में 50 रुपये तक खर्च आता है। इसे बाजार में वे 200 से 250 रुपये की दर से बेचती हैं। इससे वे औसतन हर महीने घर की जिम्मेदारियां निभाने के साथ पांच से छह हजार रुपये आराम से कमा लेती हैं। एक छोटे से कमरे में वे कई प्रकार के मशरूम की पैदावार कर रही हैं। ये मशरूम जल्द ही तैयार हो जाते हैं। मशरूम उत्पादन की करीब 45 दिन की प्रक्रिया होती है। इसके लिए गेहूं, चना, सोयाबीन समेत अन्य अनाजों से निकलने वाला भूसा महत्वपूर्ण होता है। इस भूसे को करीब 12 घंटे भिगोकर रखा जाता है। बीज डालने के बाद प्लास्टिक बैग तैयार कर इसे 15 दिन एक अंधेरे कमरे में रखा जाता है। 15 दिन बाद खुली हवा देने के लिए प्लास्टिक बैग को ब्लेड से काटा जाता है। ताजा हवा के संपर्क में आते ही तीन दिन में मशरूम आने लगते हैं। 45 दिन में तीन बार मशरूम उत्पादन लेने के बाद भूसे को बदल दिया जाता है। इनके उगाए मशरूम प्रोटीन, मिनरल्स, विटामिन डी के अच्छे स्रोत हैं साथ ही, डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्राल कम करने में भी काफी उपयोगी हैं। इसी जिले के कोड़का, भोथली, रैमड़वा, सोमनी, धीरी, सांकरा, बैगाटोला आदि गांवों की महिलाएं दुकानों में जाकर अपने उत्पाद भी बेच रही हैं।

ट्रैक्टर वाली कुड़ी

अपने गांव में ट्रैक्टर वाली कुड़ी के नाम से मशहूर हैं अमनदीप कौर। पंजाब के जिला संगरूर के गांव कनौई की यह युवा किसान बचपन से ही अपने दादा हरदेव सिंह, पिता हरमिलाप सिंह व भाई गगनदीप सिंह को सुबह ही तैयार होकर खेतों में काम करने जाते देखा करती थीं। जब स्कूल से छुट्टी होती तो वह पिता के साथ खेतों में चली जातीं। 22 वर्षीया अमनदीप कौर के पिता ने उन्हें भी ट्रैक्टर और अन्य कृषि उपकरण चलाना सिखाया। वह पिछले छह वर्ष से ट्रैक्टर, रोटावेटर, सुहागा, रीपर के साथ अन्य कृषि मशीनें चला लेती हैं। इतना ही नहीं, अमनदीप कौर डेयरी व्यवसाय के बारे में भी माहिर है। घर में पले दुधारू पशुओं का काम भी स्वयं करती हैं। इसके अलावा, सब्जियों की जैविक खेती भी करती हैं। अमनदीप कहती हैं कि फसलों की मार्केटिंग के लिए दादा जी व पिता जी के साथ अनाज मंडी व सब्जी मंडी भी जाती हूं। मुझे गेंहू व धान के साथ जैविक सब्जियों की बुवाई, कटाई से लेकर पानी कब देना है, दवा व खाद कब व कितनी डालनी है, के बारे में पूरी जानकारी है। खेती के साथ ही अमनदीप की शिक्षा भी जारी है। वह खालसा कालेज, पटियाला से बी-वोकेशनल फूड प्रोसेसिंग एंड इंजीनियरिंग के फाइनल ईयर की पढ़ाई भी कर रही हैं। अमनदीप कहती हैं, एमएससी करने के बाद बड़े स्तर पर आर्गेनिक फार्मिंग कारोबार स्थापित करूंगी। मैैं अन्य युवतियों से भी अपील करूंगी कि वे पिता के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करें।

श्वेत क्रांति का कारोबार

पटियाला की रेणु ने श्वेत क्रांति को अपनाकर न सिर्फ वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाया, बल्कि आत्मनिर्भर भी बनीं। हालांकि दुधारु पशुओं को पालकर और उनका दूध बेचकर जीवन निर्वाह का कार्य उनके परिवार में पहले से ही चलता आ रहा था, लेकिन रेणु कुमारी ने घर की कमजोर वित्तीय हालात के मद्देनजर दसवीं में ही दूध के कारोबार से जुडऩा बेहतर समझा। रेणु कुमारी कहती हैं, मेरे पास दो दर्जन से ज्यादा भैंस और गाय हैं, जिनसे रोजाना 80 से 90 किलो दूध प्राप्त होता है। यह दूध बाजार में रोजाना औसतन चार से साढ़े चार हजार रुपये के बीच में बेचती हूं। जहां तक दूध सप्लाई का संबंध है तो अधिकतर ग्राहक घर पर आकर ही दूध ले जाते हैं। वहीं कई ऐसे ग्राहक हैं, जिनके घर दूध सप्लाई के लिए खुद जाती हैं। वह स्कूटी पर दूध के केन लेकर जाती हैं। रेणु अपने इस कारोबार को आगे और बढ़ाना चाहती हैं। इसके लिए उन्होंने सरकारी स्कीम के तहत ऋण लेकर और ज्यादा भैंस-गाय खरीदने की योजना बनाई है। काम में इस तरह की बढ़ोत्तरी के बाद उसे संभालने की प्लानिंग के बारे उन्होंने कहा कि माता-पिता बुजुर्ग हो गए हैं तो वह इसमें ज्यादा सहायता नहीं कर सकेंगे। ऐसे में वह इस काम की जानकारी रखने वाली महिलाओं को अपने साथ जोडऩे की कोशिश करेंगी। जब वह इस काम से जुड़ी थीं तब उन्हें भाई का सहयोग मिलता था। भाई की अचानक मौत ने उन्हें इस काम में अकेला कर दिया, जिसे उन्होंने हिम्मत बटोरकर आगे बढ़ाया।

पशुपालन से मिल रहा नाम

कृषि के साथ-साथ पशुपालन के कारोबार में भी महिलाएं नाम कमा रही हैं। जालंधर के आदमपुर से सटे गांव लेसड़ीवाल की रहने वाली अमनदीप कौर धालीवाल का नाम सुअर पालन के काम में पंजाब से लेकर नगालैंड तक गूंज रहा है। अमनदीप ने एमएससी (आइटी) और एमसीए करने के बाद बच्चों को पढ़ाने के साथ अपना करियर शुरू किया था और फिर पीएचडी की। 2014 में शादी के बाद उन्होंने पति खुशपाल सिंह संघा के साथ पुश्तैनी जमीन पर कुछ अलग करने की ठानी। 2015 में उनके पति ने सुअर पालन के लिए प्रोत्साहित किया। पति खुशपाल सिंह कनाडा चले गए तो उनकी गैरमौजूदगी में अमनदीप कौर ने खेतों के कामकाज के अलावा सुअर पालन के कारोबार को संभालना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने गुरु अंगद देव वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज यूनिवर्सिटी, गड़वासू, लुधियाना से ट्रेनिंग ली। इसके साथ ही मछली पालन की ट्रेनिंग भी ली। तीन साल तक उन्होंने देश के नामी फार्म हाउस के दौरे किए और 2017 में गांव लेसड़ीवाल में फार्म हाउस बनाया और सुअर पालन का काम शुरू किया। अमनदीप कौर कहती हैं, कारोबार के शुरुआती दौर में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन सुअर पालन को लेकर विभिन्न राज्यों से लोग मेरे पास पहुंचने लगे। हां, कोरोनाकाल में इस कारोबार में बड़ा झटका लगा। दूसरे राज्यों से संपर्क टूट गया और कारोबार ठंडा पड़ गया। करीब 70 लाख रुपये का नुकसान हुआ। इसके बावजूद मैंने हिम्मत नहीं हारी और गड़वासू से और सुअर लाकर दोबारा काम शुरू कर दिया है। अब पंजाब के अलावा हरियाणा, उत्तर प्रदेश और नगालैंड से व्यापारी मेरे फार्म पर पहुंच रहे हैं।

इनपुट: प्रयागराज (यूपी) से वीरेंद्र द्विवेदी, जालंधर (पंजाब) से जगदीश कुमार, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) से रोहित देवांगन, जगराओं (पंजाब) से बिंदु उप्पल


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.