मरीजों व तीमारदारों को सिखाए जा रहे मेडिकल वेस्ट प्रबंधन के गुर, ताकि संक्रमण के प्रसार पर लगे ब्रेक
सरकार प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग तीनों लगातार प्रयास कर रहे है और अच्छी बात ये है कि प्रयास के सकारात्मक नतीजे भी सामने आ रहे है। उम्मीद है कि 2021 में कोरोना संक्रमण के प्रसार पर काफी हद तक विराम लगेगा।
मनीषा गर्ग, पश्चिमी दिल्ली। कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार, प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग तीनों लगातार प्रयास कर रहे है और अच्छी बात ये है कि प्रयास के सकारात्मक नतीजे भी सामने आ रहे है। उम्मीद है कि 2021 में कोरोना संक्रमण के प्रसार पर काफी हद तक विराम लगेगा पर दूसरी तरफ बायो मेडिकल वेस्ट के उचित प्रबंधन को लेकर जारी बरती जा लापरवाही भविष्य के लिए बड़े खतरे का कारण बनती जा रही है।
इस खतरे को समझते हुए डाबड़ी स्थित दादा देव मातृ एवं शिशु चिकित्सालय एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका अदा करते हुए ओपीडी में इलाज के लिए आने वाले मरीजों व उनके तीमारदारों को मास्क, दस्ताने, फेस शिल्ड, दवाओं के खाली पैकेट का उचित प्रबंधन कैसे करें इस बावत जागरूक किया जा रहा है। अस्पताल में बायो मेडिकल वेस्ट प्रबंधन कमेटी के सदस्य मरीजों को समझा रहे है कि वे कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए मास्क, दस्ताने, फेस शिल्ड का प्रयोग करें लेकिन प्रयोग के बाद उसे यहां-वहां या आम कचरे में न डालें।
इसके बजाय प्रयोग के बाद उन्हें दो से तीन टुकड़ों में काटने के बाद अखबार में ठीक ढंग से लपेटे और तीन दिन के लिए रख दे। तीन दिन बाद उसे आम कचरे में डाल सकते है। क्योंकि इन तीन दिनों के बीच संक्रमण का प्रभाव खत्म हो जाता है और अखबार में लिपटे होने के कारण कर्मचारी सीधे उसके संपर्क में आने से बचते है। यदि इस आदत को अपनाया जाए तो न सिर्फ संक्रमण के प्रसार को रोका जा सकता है बल्कि एचआईवी, हेपेटाइटिस के खतरे को भी कम किया जा सकता है।
विशेषज्ञों के मुताबिक अब इसे जानकारी का अभाव कहे या लापरवाही कि घर-घर से निकलने वाला बायो मेडिकल वेस्ट जैसे मास्क, दस्ताने, फेस शिल्ड, दवाओं के पैकेट आम कचरे के साथ मिलकर डलाव घरों पर पहुंच रहे है। सड़क पर आते-जाते लोग कहीं भी मास्क व दस्तानों को फेंक चलते बनते है। ये रवैया बिल्कुल गलत है। उस मास्क व दस्ताने पर संक्रमण के अंश होते है और उनके संपर्क में आकर सफाई कर्मचारी व बेसहारा पशु भी संक्रमण की चपेट में आ सकते है।
इसके अलावा हाेम आइसोलेशन खत्म होने के बाद निगम की जिम्मेदारी है कि वह उस व्यक्ति के घर से मेडिकल वेस्ट को एकत्रित कर उसका उचित प्रबंधन करें। लेकिन संक्रमितों की संख्या बढ़ने के कारण निगम अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह ठीक ढंग से नहीं कर रहा है। जिसके कारण वो मेडिकल वेस्ट भी आम कचरे के साथ मिलकर डलाव घरों व लैंडफिल साइटों पर पहुंच रहा है। कोरोना महामारी से अलग हटके बात करें तो अधिकांश घरों में लोग बीमार है और उनका इलाज चल रहा है। वे भी मेडिकल वेस्ट को अलग रखने के बजाय आम कूड़े में डालकर कर्मचारी को सौंप देते है। लैंडफिल साइट पर पहुंचकर वहां कूड़े को खाद में तब्दील कर पेड़-पौधों में इस्तेमाल किया जा रहा है।
इसके अलावा सफाई कर्मचारी व बेसहारा पशु सीधे इस मेडिकल वेस्ट के संपर्क में आ रहे है। जिसका उनके स्वास्थ्य पर नाकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। कूड़े का कुछ अंश नालों में जा रहा है और नाले का वही पानी शोधित होकर लोगों के घरों व खेतों की सिंचाई में इस्तेमाल हो रहा है। कूड़े व पानी में मिलकर ये बायो मेडिकल वेस्ट संक्रमण को बढ़ावा दे रहे है, जिससे एचआईवी, हेपेटाइटस जैसी घातक बीमारी के मामले भविष्य में बढ़ सकते है और सर्वव्यापी महामारी बन सकती है। बायो मेडिकल वेस्ट का उचित प्रबंधन न करना कानून अपराध है। स्वास्थ्य कर्मचारियों के साथ लोगों को इसके प्रबंधन के लिए जागरूक किया जाना चाहिए।
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