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कोरोना काल में लोककला को मिला संबल और समर्थन, दर्शक और श्रोता को मिल रहा मानसिक सुकून

लोकगायिका मालिनी अवस्थी का प्लेटफार्म सेव द रूट्स पिछले वर्ष से ही कलाकारों की विपदा दूर करने में जुटा है। कलाकारों के स्वाभिमान को ठेस न पहुंचे इसलिए उनकी कला इंटरनेट मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म पर प्रसारित की जाती है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sun, 06 Jun 2021 02:02 PM (IST)Updated: Sun, 06 Jun 2021 02:02 PM (IST)
कोरोना काल में लोककला को मिला संबल और समर्थन, दर्शक और श्रोता को मिल रहा मानसिक सुकून
लोक कलाकार रामचंद्र की फाइल फोटोः जागरण

नई दिल्ली [मनु त्यागी]। कोरोना महामारी के पहले और दूसरे चरण ने लोक कलाकारों को भी विचलित किया। तब कई संस्थाओं ने सैकड़ों कलाकारों को मानसिक और आर्थिक रूप से संबल दिया और उन्हें तकनीकी दुनिया में प्रवेश कराकर कला को एक नए मुकाम तक पहुंचा दिया... पहले से ही पहचान और प्रसिद्धि के स्तर पर सीमित लोककला पर कोरोना संक्रमण का प्रभाव इसे और संकीर्ण कर चुका है। ऐसे में पुश्तैनी लोककलाओं का यह हुनर कहीं अंधेरे के गर्त में न चला जाए तो रोशनी बनकर हाथ थामा कई संस्थाओं ने। संस्थाओं के माध्यम से यही कला गांवों की गलियों से निकल यूट्यूब की दुनिया में पहुंची। यूट्यूब चैनल्स के माध्यम से इस कला को देखकर देशभर से लोग इनके लिए मदद को आगे आ रहे हैं और इनके दर्शक और श्रोता इस महामारी के काल में मानसिक सुकून की अनुभूति कर रहे हैं।

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ऐसा ही एक हाथ बढ़ाया पद्मश्री डा. किरण सेठ की संस्था सोसायटी फार द प्रमोशन आफ इंडियन क्लासिकल म्यूजिक एंड कल्चर अमंग्स यूथ (स्पिक मैके) ने, जिसने छत्तीसगढ़, झारखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे अलग-अलग राज्यों के तमाम गांवों में कई छिपे प्रतिभाशाली कलाकारों को सामने लाकर एक मंच दिया। इन्हीं में से एक हैं बहरूपिया लोककला की रीति परंपरा को चार पीढ़ियों से लेकर चले आ रहे अकरम खां। देश के विभिन्न उत्सव मेलों में अकरम कभी कृष्ण बनते हैं तो कभी नारद। कोरोना काल ने उन्हें सब्जी का ठेला लगाने पर विवश कर दिया। स्पिक मैके ने एक आस बांधी। अकरम कहते हैं, ‘यूट्यूब वीडियो के माध्यम से मुझे लोगों के समक्ष आने का मौका मिला। इससे आर्थिक मदद के साथ एक मानसिक सुकून भी मिला कि अभी कला को जीना है। आज लोगों की अभिव्यक्ति और लाइक्स बहुत सुकून देते हैं।’

परंपरा को मिला सहारा

स्पिक मैके के सपोर्ट द आर्टिस्ट की संचालिका सुमन डूंगा कहती हैं, ‘बहुत दिन से ऐसे कलाकारों को एक मंच पर जोड़ने की कल्पना थी जो अब साकार होती दिख रही है। अब तक 20 लोक कलाकार जुड़ चुके हैं उनकी आर्थिक मदद भी हो चुकी है। कोशिश है एक माह में 200 कलाकारों को जोड़कर उनकी आर्थिक और मानसिक मदद कर सकें।’ मध्य प्रदेश के रामचंदर गंगोलिया का पूरा परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आ रही परंपरागत मालवी लोक निर्गुण कला को साथ लेकर चल रहा है। आकाशवाणी, इंदौर के माध्यम से जुड़े गंगोलिया कहते हैं, ‘ढाई दशक से मेरी पत्नी, दोनों बेटे और बेटी सभी संयुक्त रूप से प्रस्तुति देते हैं। हमारा जीवनयापन इसी से है। पिछली बार सेव द रूट्स के माध्यम से बहुत सहयोग मिला था, इस बार स्पिक मैके ने संभाला।’ पैका नृत्य में पारंगत झारखंड के घासीराम की कहानी भी ऐसी है। 30 साल से इस कला के माध्यम से बड़े-बड़े दिग्गजों के समक्ष प्रस्तुति दे चुके घासीराम कहते हैं, ‘संस्थाओं की मदद से अब हमें अलग तरह के दर्शक मिल गए हैं, जिनकी प्रतिक्रियाएं गजब का हौसला देती हैं।’

कला की प्रभा

महामारी के इस दौर में कलाकारों के हुनर को लोगों से सम्मान और आर्थिक सहयोग दिला रहा है लाकडाउन लाइव। जिसने पिछले वर्ष छह राज्य बिहार, छत्तीसगढ़, पंजाब, राजस्थान, बंगाल, गुजरात सब जगह के 750 लोक कलाकार खोजकर उनकी कला को लाइव किया। इन्हीं में राजस्थान की मशहूर कलाकार हैं सरस्वती देवी धांधड़ी। महामारी के इस दौर में उनके पति और बेटा दोनों इस दुनिया से चले गए। इनके गायन के माध्यम से ही इनकी मदद हुई। अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त राजस्थान के कथक कलाकार राजेंद्र राव ने हाल ही में लाकडाउन लाइव पर प्रस्तुति दी। राव बताते हैं, ‘लाकडाउन लाइव के जरिए आर्थिक मदद तो हो रही है साथ ही विभिन्न राज्यों के कई कलाकार जुड़ भी पा रहे हैं।’ प्रभा खेतान फाउंडेशन के संचालक संदीप भूतोड़िया बताते हैं कि इस बार लाकडाउन लाइव के साथ ‘राहत’ की शुरुआत हुई है, जहां जरूरतमंद कलाकारों को राशन भी पहुंचाया जा रहा है।

इसी तरह अन्य संस्था संस्कार भारती तो पिछले संक्रमण काल में गांव-गांव तक पहुंचकर हजारों कलाकारों की मदद कर चुकी है और इस बार भी जब कलाकारों ने दोबारा मदद के लिए फोन किया तो फिर से पहल कर दी है। संस्कार भारती के अखिल भारतीय महामंत्री अमीर चंद्र कहते हैं कि इस बार भी त्रिपुरा से शुरुआत हो चुकी है। 100 से अधिक कलाकारों के घर राशन पहुंचा चुके हैं।

बढ़ जाती है हिम्मत

35 बरस से अपने परिवार की कला पंडवानी को लेकर चल रहीं छत्तीसगढ़ की गायिका प्रभा यादव कहती हैं, ‘पिछले बरस कोरोना काल में लगा अब परिस्थितियां साथ नहीं देंगी, बच्चों की भी पढ़ाई छूट गई। जैसे-तैसे उस कठिन दौर को काटा था और इस बार का दौर तो और जटिल था। स्पिक मैके मुझ तक पहुंचा, तो कुछ उम्मीद जगी। एक नए प्लेटफार्म पर घर बैठे ही सैकड़ों लोग प्रस्तुति पर सराहना करते हैं, हिम्मत बढ़ती है और तनाव दूर हो जाता है।’

स्वयं के बाद दूसरों का बनी संबल

लोकगायिका मालिनी अवस्थी का प्लेटफार्म सेव द रूट्स पिछले वर्ष से ही कलाकारों की विपदा दूर करने में जुटा है। कलाकारों के स्वाभिमान को ठेस न पहुंचे इसलिए उनकी कला इंटरनेट मीडिया के अलग-अलग प्लेटफार्म पर प्रसारित की जाती है। नाट्य कलाकार और लेखिका आशीमा भट्ट पिछले वर्ष के अनुभवों के बारे में कहती हैं, ‘मैंने मंच पर सैंकड़ों बार द्रौपदी नाटक का मंचन किया है, लेकिन जब सेव द रूट्स प्लेटफार्म पर प्रस्तुति दी तब देश ही नहीं,विदेश से भी लाखों दर्शक जुड़े। इस बार मैं पिछले अनुभवों से प्रेरित होकर कई एनजीओ के माध्यम से कलाकारों को तनाव से मुक्त रखने की पहल कर रही हूं। इसके माध्यम से ऐसे भी बच्चे जुड़े जो कोरोना संक्रमण के कारण अपने माता-पिता दोनों को खो चुके हैं। मेरी कोई संतान नहीं है, पिछले वर्ष के लाकडाउन ने मुझे जो प्रेरक राह दिखाई उससे आज मुझे भी मां पुकारने वाले मिल गए।’


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