Move to Jagran APP

महाराष्ट्र की कमल ने पांच हजार महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में की मदद, राष्ट्रपति द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित

चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार देने वाली कमल कुम्हार ने प्रमाणित कर दिया है कि बर्तनों की तरह अपने जीवन को भी दे सकते हैं आकार। कुम्हार और किसानी का काम करने वाली कमल आज हैं एक सीरियल एंटरपे्रन्योर।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 21 May 2022 02:53 PM (IST)Updated: Sat, 21 May 2022 02:54 PM (IST)
महाराष्ट्र की कमल ने पांच हजार महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में की मदद, राष्ट्रपति द्वारा नारी शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित
महाराष्ट्र की कमल ने सूक्ष्म उद्यम में अब तक पांच हजार महिलाओं को स्वावलंबी बनाने में मदद की है।

सीमा झा। नौकरी तलाशने के बहाने कंधे पर पर्स लटकाए हुए पूरे गांव घूम आती हैं। लोग क्या कुछ नहीं कहते इसके बारे में, लेकिन इसे तो कोई फर्क ही नहीं पड़ता? सास-ससुर और सगे संबंधियों के ऐसे ताने, उनके कान सुनने से मना कर देते थे। कमल के मुताबिक, पत्थर को कुछ कहो तो वह टस से मस होता है क्या? मैं भी अपने संघर्ष के दिनों में पत्थर बन गई थी। वह उन दिनों को याद करती हैं जब वर्ष 1993 में लातूर, महाराष्ट्र में भूकंप ने तबाही मचा दी थी। इसी वर्ष उनकी शादी भी हुई थी। बहुत छोटी उम्र में गरीब किसान के यहां शादी हुई।

loksabha election banner

कमल को खेती करना पसंद नहीं था। इसलिए अक्सर घर से निकल जाया करतीं। जिले के अधिकारियों के दफ्तर जाकर सरकार की ग्रामीण विकास से जुड़ी योजनाओं के बारे में पता करती रहतीं। वह ऐसा काम चाहती थीं, जिससे कि कुछ पैसे मिलें। उन्हें जो पहला काम मिला, वह घर-घर जाकर सर्वे करने का था। हर दिन नंगे पांव, कड़ी धूप में कई-कई किलोमीटर का दौरा कर महिलाओं से उनके घर की माली हालत व तथ्यों को जुटाने का यह काम उनके लिए एकदम नया था, पर कमल ने बहुत अच्छी तरह से यह काम पूरा किया। जिस दिन यह काम पूरा कर सौंपा, उसी दिन उन्होंने पैसे कमाने का दूसरा साधन तलाश लिया।

कभी मां के साथ मिलकर चूडिय़ां बेचने वाली कमल ने इस काम को दोबारा शुरू कर दिया। चूड़ी के साथ स्टेशनरी के सामान और कुछ दिनों बाद साड़ी आदि भी बेचने लगीं। सर्वे वाले काम में जिन महिलाओं से संपर्क हुआ था, उन सबको अपना ग्राहक बनाया। वह उनसे लगातार जुड़ी रहीं। पांच सौ रुपये से शुरू किया गया यह कारोबार बड़ा होने लगा, पर उन्होंने सरकार की ग्रामीण योजना से जुड़े कमाई करने वाले कार्यों को अब भी नहीं छोड़ा। इसी दौरान वह आशा कार्यकर्ता भी बनीं और ग्राम पंचायत सदस्य भी।

कमल को कभी सब डिवीजन में पेड़ों की गणना का काम मिलता तो कभी कृत्रिम शौचालय लगवाने का काम। अब कमल को लगने लगा कि उन्हें माइक्रोफाइनेंस में प्रशिक्षण की जरूरत है ताकि वह अपने काम बड़े स्तर पर कर सकें। इसके लिए उन्होंने जिला उद्योग केंद्र से एक माह का प्रशिक्षण लिया। इसके बाद कुशल उद्यमी बन चुकीं कमल ने वर्ष 1998 में पशु पालन के क्षेत्र में कमल पोल्ट्री एंड एकता सखी प्रोड्यूसर कंपनी शुरू की। इसकी मदद से सूखाग्रस्त उस्मानाबाद इलाके की तकरीबन 3,000 से अधिक महिलाओं को अपने पैरों पर खड़ा होने का अवसर मिला।

कमल स्वावलंबन की इस अनूठी यात्रा पर चलते हुए धन अर्जित कर रही थीं, लेकिन वह बेजा खर्च के बजाय बचत पर ध्यान देतीं। वह बैंक में इतने पैसे जमा कर लेना चाहती थीं जिससे कि वह अपने लिए सोने के गहने बनवा सकें साथ ही उससे दूसरा-तीसरा-चौथा बिजनेस शुरू कर सकें। कमल के मुताबिक, उन्हें सोने के गहने पसंद हैं, जो वह अपने पैसे से खरीदती हैं। कमल कहती हैं, मुझे कभी पैसा कमाने की चाहत नहीं रही। इसलिए मुझे पैसे से अधिक नाम मिला। मैं लोगों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहती हूं। मेरे लिए नाम मायने रखता है, दाम नहीं। यह नाम और काम सचमुच लोगों को संकट काल में राहत देने वाला था। कोरोना संक्रमण के दौरान जब सब कुछ बंदी के कगार पर आ गया था, कमल से स्वरोजगार सीखने वाली महिलाओं की रोजी-रोटी चलती रही।

कमल के पति किसान हैं, लेकिन वह उनकी हर संभव मदद करते हैं। उनके दो बच्चे हैं, जिन्हें अपनी एंटरप्रेन्योर मां पर गर्व है। खराब आर्थिक हालत, घर पर मदद न मिलना, गांव वालों का विरोध और दूसरे एक कम पढ़ी-लिखी स्त्री, इन सबके कारण तो समस्याएं आई होंगी। कैसे निपटा इन सबसे? इस सवाल पर वह कहती हैं, मैंने कभी इन सबके बारे में सोचा ही नहीं। मैं समस्या नहीं, हमेशा समाधान पर फोकस करती हूं।

कमल के संगठन में 100 महिलाएं ऐसी हैं, जो लीडर कहलाती हैं, उनका काम दूरदराज जाकर महिलाओं के लिए प्रशिक्षण की व्यवस्था करना है। कमल का सपना है कि महिलाओं के लिए एक विद्यापीठ बनाएं, जहां कारोबार को आसान बनाने के गुर सिखाएं जाएं। कमल को नीति आयोग द्वारा वर्ष 2017 में सीआइआइ फाउंडेशन वीमेन एग्जेम्प्लर अवार्ड और वीमेन ट्रांसफार्मिंग इंडिया अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। वह अपनी सफलता के मंत्र बताते हुए कहती हैं, जीवन में आज झाड़ यानी पौधा रोपा तो तुरंत फल की उम्मीद न करें। लगातार जुटे रहना जरूरी है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.