लाइफस्टाइल: फैमिली हॉलीडे के बदले मायने, छुट्टियों में गायब हुई दादी-नानी के घरों की रौनक
बदले समय के साथ फैमिली हॉलीडे के मायने भी बदल रहे हैं। गर्मियों में छुट्टी जाने वाले लोग अब नाना-नानी और दादा-दादी के घरों की बजाय अब लग्जरी रुटीन को चुन रहे हैं।
गुरुग्राम [प्रियंका दुबे मेहता]। कभी समय था जब गर्मियों की छुट्टियों में दादी-नानी के घरों की रौनक बढ़ जाती थी। अधिकतर लोग गांवों में जाकर अपने बचपन की यादें ताजा करते थे और बच्चे एक अलग ही दुनिया में जाने के लिए छुट्टियों का इंतजार किया करते थे। लेकिन अब जमाना बदल गया है। लोगों को गांवों-कस्बों में सुविधाओं की कमी खटकने लगी और लग्जरी रुटीन से समझौता नहीं करना चाहते। ऐसे में लोग अब घरों की जगह रिसॉर्ट में जाकर लग्जरी वैकेशन मना रहे हैं।
भावनाएं नहीं, लग्जरी बन रही है प्राथमिकता
लगातार बढ़ती गर्मी वजह हो या फिर जीवन पर छा रहा बाजारवाद, कहीं न कहीं अब हॉलीडे ट्रिप्स का आकर्षण लोगों को परिवारों से दूर कर रहा है। दादा-दादी, नानी-नानी की आंखें इंतजार में पथरा रही हैं और रिसॉर्ट और होटल्स में लोगों की संख्या बढ़ रही है। लोगों का कहना है कि तनाव और भागदौड़ से दूर कुछ सुकून के पल बिताने के लिए लोग अब देश-विदेश के हॉलीडे ट्रिप प्लान करते हैं।
आइटी कंपनीकर्मी कृति भूषण का कहना है कि अब बच्चों में गर्मी बर्दाश्त करने की क्षमता नहीं रही। वे कम संसाधनों में दादी-नानी के घरों पर नहीं रह सकते। ऐसे में कहीं हिल स्टेशन या फिर रिसॉर्ट का ट्रिप प्लान करना पड़ता है।
सोशल मीडिया का प्रभाव
मनोवैज्ञानिक नियति का कहना है कि पहले छुट्टियों में परिवार के सदस्य एक दूसरे से मिलते-जुलते थे लेकिन अब सोशल मीडिया वॉल पर महंगे से महंगे डेस्टिनेशन और रिसॉर्ट की फोटो पोस्ट करने की होड़ में लोग गांवों व घरों पर नहीं जाना चाहते।
मनोवैज्ञानिक डॉ. रचना का कहना है कि यह बदलाव परिवारों को दूर कर रहा है। उनका कहना है कि लोग अपने ऐशो आराम से समझौता नहीं करना चाहते। पहले परिवार के सदस्यों से मिलने के लिए महीनों से बच्चे व बड़े उत्साहित रहते थे लेकिन अब ऐसा नहीं रहा है। इस बदलाव के दो पहलू हैं। इससे निश्चित रूप से परिवारों में दूरियां बढ़ रही हैं। खासकर बुजुर्गों को अकेलापन महसूस हो रहा है लेकिन दूसरा पहलू देखें तो पहले बच्चों के पास केवल दादी-नानी के घर जाने का विकल्प होता था लेकिन अब देश दुनिया का एक्सपोजर मिल रहा है।
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक?
मनोवैज्ञानिक डॉ. नियति धवन का कहना है कि बाहर दुनिया में क्या हो रहा, यह पता होना जरूरी है। परिवार और टूर को बैलेंस करके चलना जरूरी है। ग्रैंड पेरेंट्स को भी वैकेशन ट्रिप पर ले जाना चाहिए ताकि उन्हें भी महसूस न हो और ट्रिप का आनंद भी लिया जा सके।
द्रोणाचार्य महाविद्यालय की मनोविज्ञान की प्राध्यापक डॉ.गरिमा यादव का कहना कि अब लोग बाहर निकलकर छुट्टियों में मौज-मस्ती करना चाहते हैं। गांवों में या घरों का आकर्षण खत्म होता जा रहा है, बचपन के वे खेल खत्म होते जा रहे हैं। बढ़ते तनाव में लोगों को थोड़ा सुकून चाहिए होता है ऐसे में लोग वैकेशन ट्रिप प्लान करते हैं। ऐसे में परिवार के सदस्य आपस में मिल नहीं पाते और दूरियां और बढ़ती जा रही है।
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