वायु प्रदूषण को लेकर चौंकाने वाला अध्ययन, 10 साल कम हो रही दिल्ली वालों की जिंदगी
दो साल के दौरान दिल्ली का प्रदूषण बेहद खतरनाक हो चुका है। दिल्ली एनसीआर में खराब हुई हवा का लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
नई दिल्ली, जेएनएन। ग्लोबल वॉर्मिंग से तपती धरती, कटते पेड़ और धूल-धुआं इन चारों से पैदा हुए वायु प्रदूषण का हमारी-आपकी जिंदगी पर बहुत खतरनाक प्रभाव पड़ रहा है। इस बीच हालिया अध्ययन में सामने आया है कि दिल्ली-एनसीआर में रहने वालों की जिंदगी के औसतन 10 साल कम हो रहे हैं। दो साल पहले हुए एक अध्ययन में सामने आया था कि दिल्ली में रहने वालों की जिंदगी के 6.3 साल कम हो रहे हैं। अब ताजा आकड़ा दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर लगाम लगाने वाले इंतजामात की भी पोल खोल रहा है।
अमेरिका के चर्चित विश्वविद्यालय ने दिल्ली में लगातार बद से बदतर हो रही जहरीली हवा पर ताजा अध्ययन किया है। इस अध्ययन में चौंकाने वाली बात सामने आई है। अध्ययनकर्ताओं ने नतीजा निकाला है कि दिल्ली को सांस लेने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के आधार पर हवा मिले तो उनकी जिंदगी 10 साल ज्यादा हो सकती है।
अध्ययन साफ बता रहा है कि दिल्ली में रहने वालों की जिंदगी के 10 साल कम हो रहे हैं। इस अध्ययन को एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (EPIC) के साथ मिलकर किया गया है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, PM 2.5 की सुरक्षित सीमा 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर सालाना होनी चाहिए। भारतीय मानकों के आधार पर इस सीमा को 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर तक बढ़ाया गया है, फिर भी यह जानलेवा है।
जानकारी के मुताबिक, शिकागो स्थित चर्चित विश्वविद्यालय 'मिल्टन फ्राइडमैन प्रफेसर इन इकॉनमिक्स' से जुड़े मिशेल ग्रीनस्टोन ने अपने सहयोगियों के साथ एयर क्वॉलिटी लाइफ इंडेक्स (AQLI) को लेकर यह अध्ययन किया है। इस अध्ययन में उनकी टीम ने दिल्ली एनसीआर में खराब हुई हवा का जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया।
जानकारी के मुताबिक, वर्ष 1998 में दिल्ली समेत उत्तर भारतीय राज्यों उत्तर प्रदेश, हरियाणा और बिहार पहले से ही हवा में घुले हुए इन छोटे-छोटे कणों से जूझ रहे थे। WHO के आधार पर उस समय इन राज्यों में रहने वाले लोगों की आयु पर 2 से 5 साल का प्रभाव पड़ रहा था। अब दो दशक बाद प्रदूषण के ताजा हालात पर नजर डालें तो यहां तब की अपेक्षा प्रदूषण में 10 गुना की बढ़ोतरी हुई है।
यह पहलू भी सामने आया है कि 1998 में जहां प्रदूषण के चलते नागरिकों की जिंदगी में 2.2 साल की कटौती हो रही थी। 2 दशक बाद वह कटौती बढ़कर 4.3 साल हो गई है। इन दो दशकों में हवा में आए ये छोटे-छोटे कण 69 फीसदी तक बढ़ चुके हैं।
बता दें कि दिल्ली में हर साल होने वाली दस हजार से लेकर तीस हजार मौतों के लिए यहां का वायु प्रदूषण जिम्मेदार है और पूरे देश में होने वाली कुल मौतों का यह पांचवां बड़ा कारक है। दो साल पहले एक अध्ययन में भी सामने आया था कि दिल्ली में जिंदगी के औसतन 6.3 साल कम हो जाते हैं।
दो साल पहले पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिअरॉलजी (IITM) के खुलासे ने कई और राज्यों में प्रदूषण की गंभीर स्थिति पर रोशनी डाली थी। इनमें उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र भी शामिल थे। IITM के अध्ययन में जहां प्रदूषण के चलते दिल्ली के हालात चिंताजनक थी वहीं, इससे सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुई थीं। इसके बाद महाराष्ट्र का स्थान आता है।
यह अध्ययन IITM के वैज्ञानिकों ने नेशनल सेंटर फॉर एटमोस्फोरिक रिसर्च (NCAR) के सहयोग से किया था। अध्ययन में खुलासा हुआ था कि लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज से दिल्ली बदतर स्थिति में थी। हालांकि, यह अध्ययन 2011 की जनगणना के आधार पर था। अध्ययन के मुताबिक, प्रदूषण के चलते असमय मौतों को सिलसिला बढ़ा है।
3.4 साल कम हो रही है भारतीयों की जिंदगी
पुणे स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिअरॉलजी (IITM) की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रदूषण से एक आम भारतीय की जिंदगी के औसत 3.4 साल कम हो रहे हैं।
वहीं देश के सबसे प्रदूषित शहरों की लिस्ट में शुुमार दिल्ली के बाशिंदों को इसकी कहीं ज्यादा बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण से उनकी जिंदगी के औसतन 6.3 साल घट जाते हैं। बताया गया है कि जिस तरह से हवा जहरीली होती जा रही है, आने वाला वक्त और भी चिंताजनक होगा।
IITM के मुताबिक, भले ही विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट में दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर नहीं रहा है, लेकिन वायु प्रदूषण से जीवन पर पड़ने वाला असर राजधानी दिल्ली में सबसे ज्यादा है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती आबादी और शहरीकरण के साथ परिवहन, ऊर्जा का उपभोग बढ़ने का सीधा प्रभाव पीएम 2.5 और ओजोन स्तर पर देखने को मिलेगा। इससे फेफड़ों में आसानी से प्रवेश करने वाले सूक्ष्म प्रदूषणकारी कणों का स्तर और बढ़ेगा।
हृदयरोग से ज्यादा मौतेें
अध्ययन में कहा गया था कि प्रदूषण के कारण असमय मौतों के मामले में सबसे ज्यादा ढाई लाख लोग हृदय रोग की चपेट में आए, जबकि प्रदूषण के कारण पक्षाघात से 1.9 लाख लोगों ने जान गंवाई।
दिल्ली के अलावा इन प्रदेशों में भी स्थिति खतरनाक
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में दुनिया के सबसे प्रदूशित शहरों में दिल्ली का स्थान 11वां है। वहीं पश्चिम बंगाल और बिहार में भी खतरा कम नहीं है।
पश्चिम बंगाल में प्रदूषित हवा से आम इंंसान की जिंदगी करीब 6.1 साल कम हो रही है, वहीं बिहार के लिए यह आंकड़ा 5.7 साल है। 2011 की जनगणना के अनुसार, जहरीले कणों वाली हवा के सेवन से देश में हर साल 5.7 लाख लोगों की मौत हो रही है। वहीं 31,000 लोगों की मौत ग्राउंड लेवर ओजोन (O3) के सेवन से हुई है।
IITM के मुख्य अनुसंधानकर्ता सचिन घुडे के मुताबिक, बीते दो दशक में देश में औद्योगिकीकरण और ट्रैफिक बहुत बढ़ा है। इसका साफ असर लोगों की जिंदगी पर नजर आ रहा है।
दिल्ली में हर साल होने वाली दस हजार से लेकर तीस हजार मौतों के लिए यहां का वायु प्रदूषण जिम्मेदार है। इसमें कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन हमें मौसम की स्थितियों में आ रहे तेज और अतिवादी बदलाव और उसकी सघनता की ओर ले जा रहा है।
रिपोर्ट में पर्यावरण और स्वास्थ्य के बीच के संपर्क की पड़ताल की गई है और कहा गया है कि पर्यावरण कारकों के चलते बहुत सी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां देश भर में लोगों को पेश आ रही हैं।
रिपोर्ट में वाहनों से होने वाले प्रदूषण के अलावा घरों के भीतर अंगीठी के कारण होने वाले प्रदूषण और इसके जैसे अन्य मुद्दों की भी पड़ताल की गई है। रिपोर्ट के अनुसार नियंत्रण से बाहर हो चुके वायु प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की दर पूरे विश्व में बढ़ी है और पिछले दशक में यह 300 फीसद तक बढ़ गई है।
रिपोर्ट में कहा गया था कि वर्ष 2000 के 800,000 से यह 2012 में 32 लाख हो गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2014 के रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा प्रदूषित दिल्ली में वायु प्रदूषण से हर साल 10,000 से 30,000 तक मौतें हो रही हैं।
दिल्ली प्रवास से छह घंटे कम हो चुकी है ओबामा की जिंदगी
2015 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के दौरे के समय US मीडिया ने दावा किया था कि भारत आने से बराक ओबामा की जिंदगी के छह घंटे कम हो गए।