उत्तरी दिल्ली में ऑनलाइन मांस बिक्री के लिए लेना होगा लाइसेंस, निगम कर रहा मीट नीति में बदलाव
ऑनलाइन मांस की बिक्री करने वाले प्रोसेसिंग यूनिट को उपभोक्ता को निगम से लिए गए लाइसेंस की जानकारी भी देनी होगी। निगम के मुताबिक जब कोई लाइसेंस लेगा तो उसे वह सभी मानदंड पूरे करने होंगे जो स्वच्छ खाने के लिए जरुरी होते है।
नई दिल्ली [निहाल सिंह]। अब ऑनलाइन मांस की बिक्री करने के लिए भी निगम से लाइसेंस लेना होगा। ऐसा न करने पर मांस की बिक्री करना न केवल गैर कानूनी होगा बल्कि निगम की कार्रवाई के दायरे में भी आएंगे। इसके लिए उत्तरी दिल्ली नगर निगम अब अपनी मीट नीति में बदलाव करने जा रहा है। वर्ष 2011 में आखिरी बार इसमें संशोधन हुए थे। बदलते समय और मीट बिक्री के बदलते तरीकों के बाद निगम नीति में बदलाव कर रहा है। उत्तरी निगम के बाद दक्षिणी और पूर्वी निगम भी इसी दिशा में कदम आगे बढ़ा रहे हैं।
दरअसल, शुक्रवार को हुई स्थायी समिति की बैठक में पशु-चिकित्सा विभाग की ओर से नई मीट नीति को लेकर आन टेबल प्रस्ताव रखा गया था। इसमें पशु चिकित्सा विभाग के निदेशक यतेंद्र कुमार ने इन नई नीति के बारे में जानकारी दी थी। उन्होंने कहा कि चूंकि मांस बिक्री के तौर तरीके बदल रहे हैं। इसलिए नीति में उन तौर तरीकों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इसी के तहत ऑनलाइन मांस की बिक्री के लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य होगा।
वहीं, मीट प्रोसेसिंग यूनिट चलाने वालों को अब एक हजार या दो हजार की वार्षिक लाइसेंस फीस के बजाय एक लाख तक फीस देनी होगी। इसमें श्रेणी अनुसार प्रोसेसिंग यूनिट की लाइसेंस फीस तय की जाएगी। छोटे प्रोसेसिंग यूनिट की कम तो बढ़े प्रोसेसिंग यूनिट की ज्यादा फीस ली जाएगी। उल्लेखनीय है कि ई-कामर्स में कपड़ो और राशन की बिक्री के साथ मांस की बिक्री का भी प्रचलन बढ़ रहा है। कई ई-कामर्स कंपनियां उपभोक्ताओं को ताजा और कम समय में मांस उपलब्ध कराने का प्रचार करती हैं।
बिल पर दर्शाना होगा लाइसेंस नंबर
ऑनलाइन मांस की बिक्री करने वाले प्रोसेसिंग यूनिट को उपभोक्ता को निगम से लिए गए लाइसेंस की जानकारी भी देनी होगी। निगम के मुताबिक जब कोई लाइसेंस लेगा तो उसे वह सभी मानदंड पूरे करने होंगे जो स्वच्छ खाने के लिए जरुरी होते है। इसलिए बिल या डिलीवरी के पैकेट में निगम के लाइसेंस की जानकारी देनी होगी
उत्तरी निगम के नेता सदन योगेश वर्मा ने कहा कि यह प्रस्ताव एजेंडे से अतिरिक्त था। इसलिए कई सदस्य इसे पढ़ नहीं पाए। इसलिए इस प्रस्ताव को स्थगित कर दिया था। अब अगली स्थायी समिति में इस प्रस्ताव पर चर्चा की जाएगी। उपभोक्ताओं और विक्रेताओं को ध्यान में रखकर नीति में बदलाव किए जाएंगे।