जानिए उन वैक्सीन की खोज के बारे में, जिन्होंने विषाणुजनित रोगों से निजात दिलाने में मानवता की मदद की
आइए जानते हैं कि वाइरोलॉजी की दुनिया में उन वैक्सीन की खोज के बारे में जिन्होंने विषाणुजनित रोगों से निजात दिलाने में मानवता की बड़ी मदद की। 1850 में फ्रांस के माइक्रोबॉयोलाजिस्ट लुई पाश्चर का इस क्षेत्र में किया गया काम मील का पत्थर साबित हुआ।
नई दिल्ली, जेएनएन। मैं समय हूं। युगों-युगों से मैं देखता चला आ रहा हूं कि जब भी इंसान के अस्तित्व के लिए कोई आपदा खतरा बनी है तो ब्रम्हांड के इस सबसे समझदार जीव ने कितने संयम और समझदारी से उसे हराया है। आज फिर हम एक बड़ी आपदा को हराने के करीब पहुंच चुके हैं। यह इंसान की अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि और जीत है। करीब एक साल पहले शुरू हुई इस महामारी से अब तक 15 लाख से ज्यादा लोग मारे गए जबकि 1918 में स्पेनिश फ्लू से करीब पांच करोड़ लोगों की मौत हुई थी। तब करीब दुनिया की कुल आबादी का 3-5 फीसद लोग इस विपदा से काल-कवलित हुए थे। फिर भी मैं कोविड-19 को अब तक की सबसे बड़ी महामारी देख रहा हूं।
आज चिकित्सा, ज्ञान-विज्ञान, तकनीक की उन्नत हासिलात के बावजूद जिस व्यापक स्तर पर इसका प्रसार हुआ और जितने लोग जिस रूप में इससे प्रभावित हुए, वह अब तक की इसे सबसे बड़ी आपदा बनाने को काफी हैं। खैर, अब वैक्सीन तैयार हो गई है। ब्रिटेन, रूस, अमेरिका में जल्द ही व्यापक स्तर पर इसे देना शुरू हो जाएगा। भारत भी अगले कुछ हफ्तों में इसका टीकाकरण शुरू कर सकता है। मैं देख रहा हूं, इंसान के जज्बे को। उसके संयम को। उसने धैर्य नहीं खोया। इस महामारी को हराने में उसने हर स्तर पर समझदारी दिखाई। वैक्सीन आने के बाद भी लोगों से एहतियात बरतते रहने की उसकी अपील इसकी एक बानगी है। इंसान के अस्तित्व में आने के बाद आई अब तक की सबसे बड़ी महामारी को हराने की गाथा आने वाली कई पीढ़ियों को मैं सुनाता रहूंगा। मैं समय हूं..
जीवन चलने का नाम : इंसानियत की शुरुआत से ही महामारियों से हमारा पाला पड़ता रहा है। हर महामारी के बाद इंसानी सभ्यता ज्यादा मजबूत होकर उभरी है। शुरुआती दौर में तो हम स्वास्थ्य सुविधाओं के लिहाज से बहुत कच्चे थे, लेकिन इंसानों ने अपनी सूझबूझ और जिजीविषा से हर महामारी को मात दी। नुकसान जरूर हुआ, लेकिन उनकी काट खोज हमने उन्हें मृतप्राय कर दिया। कोरोना भी इससे अलहदा नहीं होगा।
ऐसे शुरू हुई जादुई खुराक
वैक्सीन की खोज (1880 से 2016) : मध्यकाल के दौरान सन 1025 में तत्कालीन फारस (अब ईरान) के चिकित्सक इब्न सिना ने बताया कि अति सूक्ष्म संरचनाएं (माइक्रोआर्गेनिज्म) हमें बीमार कर सकते हैं। इन्हें ही पैथोजेंस कहा गया। ये संरचनाएं इतनी सूक्ष्म होती हैं कि इन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी जैसे यंत्रों की जरूरत पड़ती है। इंसान और जानवरों की कोशिकाओं में ये प्रवेश कर अपना विकास करते हैं और मेजबान को बीमार कर देते हैं। इसे जर्म थ्योरी ऑफ डिजीज कहा गया। 1850 में फ्रांस के माइक्रोबॉयोलाजिस्ट लुई पाश्चर का इस क्षेत्र में किया गया काम मील का पत्थर साबित हुआ जिसने इन रोगों की वैक्सीन बनाने का मार्ग प्रशस्त किया।
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