गोली लगने के बाद भी शिवजी ने ढीली नहीं होने दी बंदूक की पकड़, और फिर आतंकियों ने चली चाल
अचानक आतंकियों की ओर से गोलीबारी बंद हो गई। टीम को लगा कि आंतकी ढेर हो गए हैं। घायल अवस्था में ही शिवजी आगे बढ़ने लगे। कुछ दूर जाने के बाद आतंकियों ने फिर से ग्रेनेड से हमला कर दिया।
नई दिल्ली [भगवान झा]। 31 जनवरी 2003 का दिन। लांस नायक शिवजी सिंह छुट्टी बिताने के बाद कुपवाड़ा (जम्मू-कश्मीर) में रेजीमेंट का साथ देने के लिए घर से निकल रहे थे। परिजनों को इस बात की खुशी थी कि वह जल्द लौट आएंगे और उसके बाद हर समय परिवार के साथ रहेंगे। 15 वर्ष से ज्यादा की नौकरी सफलतापूर्वक पूरी करने के बाद वह सेवानिवृत्त होने वाले थे। वह गए और जल्द लौटे भी, लेकिन तिरंगे में लिपटकर। यह कहते-कहते उनकी पत्नी देवंती देवी की आंखों से आंसू छलकने लगते हैं।
घात लगाए आतंकियों ने किया हमला
शिवजी सिंह 218 मेडियम रेजीमेंट में कुपवाड़ा में तैनात थे। वह टुकड़ी के साथ गश्त कर रहे थे, तभी घात लगाए आतंकियों ने हमला बोल दिया। दोनों तरफ से भारी गोलीबारी हो रही थी। टीम में शिवजी सिंह सबसे आगे थे और आतंकियों को मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे। कुछ गोलियां उनके हाथों में भी लगीं, लेकिन बंदूक की पकड़ ढीली नहीं हुई। फायरिंग के साथ वह साथियों का हौसला भी बढ़ा रहे थे।
शिवजी सिंह के शरीर से टकराया ग्रेनेड
अचानक आतंकियों की ओर से गोलीबारी बंद हो गई। टीम को लगा कि आंतकी ढेर हो गए हैं। घायल अवस्था में ही शिवजी आगे बढ़ने लगे। कुछ दूर जाने के बाद आतंकियों ने फिर से ग्रेनेड से हमला कर दिया। ग्रेनेड शिवजी सिंह के शरीर से टकराया और वह वहीं पर शहीद हो गए। इसके बाद रेजीमेंट के अन्य जवानों ने ताबड़तोड़ हमला कर आतंकियों को मार गिराया। बीस दिन बाद शिवजी का शव उनके पैतृक गांव छपरा (बिहार) ले जाया गया, जहां उनका अंतिम संस्कार किया गया।
पत्नी को सता रही थी अनहोनी की आशंका
देवंती देवी ने कहा कि जब वह घर से जा रहे थे तो मेरा मन घबरा रहा था। श्रीनगर पहुंचने पर उनसे बात हुई। उन्होंने कहा कि मैं अब कुपवाड़ा जा रहा हूं, दूसरी बार श्रीनगर आने पर बात होगी। मुझे चिंता हो रही थी। दस फरवरी को सीओ साहब की पत्नी को फोन मिलाया और रेजीमेंट के हालचाल के बारे में पूछने लगी, लेकिन उन्होंने भी कहा कि वहां से कोई जानकारी नहीं मिल रही है।
कोई कुछ नहीं बता रहा था
18 फरवरी को फिर मैंने सीओ साहब के घर पर फोन किया, लेकिन कोई कुछ नहीं बता रहा था। इसके बाद मेरे घर पर कई अधिकारी आए और कहा कि आप अपने घर (छपरा) जाओ। अधिकारी ने जाने की व्यवस्था की, लेकिन मुझे घटना के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया। सब यही कहते कि अब तुम्हे मजबूत होकर रहना है। बच्चों की देखभाल करनी है। इसके बाद मैं समझ गई कि मेरे साथ अनहोनी हुई है।
हिम्मत से लिया काम
मैं बच्चों को लेकर छपरा गई। वहां करीब बीस दिन के बाद सेना के जवान तिरंगे में लिपटे हुए मेरे पति को लाए। शिवजी सिंह की शहादत के समय उनके बच्चे काफी छोटे थे। देवंती देवी कहती हैं कि कुछ समय तक तो जिंदगी अंधकारमय ही दिखने लगी थी, लेकिन इसके बाद मैंने हिम्मत से काम लिया और बच्चों की पढ़ाई पर ध्यान दिया।
स्कूल में करना चाहते थे काम
द्वारका सेक्टर 18 बी, कारगिल अपार्टमेंट में रह रहीं देवंती देवी ने बताया कि शिवजी सिंह सेवानिवृत्ति के बाद स्कूल में बच्चों को खेल की शिक्षा देना चाहते थे। जाते समय भी उन्होंने कहा कि सबसे पहले भारत मां की रक्षा करना मेरा सपना था जिसे मैं पूरा कर रहा हूं और अब दूसरा सपना बच्चों को खेल की शिक्षा देना है, जिसे सेवानिवृत्ति के बाद पूरा करूंगा। स्कूल में शिक्षा देने के लिए उन्होंने कोर्स भी किया था।