जानें- दिल्ली के इस ऐतिहासिक किले में क्यों तड़प-तड़पकर मर गई थी औरंगजेब की बेटी
Salim Garh Fort दिल्ली के सलीमगढ़ किले को लेकर अफवाह है कि इस किले में वर्तमान में प्रेतात्माएं रहती हैं? इसके जवाब में भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) के अधिकारी और किले के गेट पर ड्यूटी देने वाले सीआइएसएफ के जवान इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।
नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। Salim Garh Fort: आप में से ज्यादातर ने देश की राजधानी दिल्ली का मुगलकालीन लालकिला जरूर देखा होगा, लेकिन इसके पास ही मुगल काल की एक और नायाब विरासत है, जो ऐतिहासिक दृष्टि से काफी समृद्ध है। यह है- सलीमगढ़ का किला। अगर आपकी इतिहास में रुचि है, तो आपको कम से कम एक बार इस जगह पर जरूर जाना चाहिए। यह किला लालकिला के पीछे की तरफ स्थित है। यह त्रिकोणीय आकार में है। दरअसल, यह किला लंबे समय तक कैद खाना बना रहा। पहले मुगल इसे कैदखाना के रूप में इस्तेमाल करते रहे। इसके बाद अंग्रेजों द्वारा इसे स्वतंत्रता सेनानियाें को कैद कर रखने के लिए उपयोग में लाया गया। वहीं, सलीमगढ़ किले को लेकर अफवाह है कि इस किले में वर्तमान में प्रेतात्माएं रहती हैं? इसके जवाब में भारतीय पुरातत्व विभाग (ASI) के अधिकारी और किले के गेट पर ड्यूटी देने वाले सीआइएसएफ के जवान इसकी पुष्टि नहीं करते हैं। उनका कहना है कि यह कोरी अफवाह है।
सलीमगढ़ का किला देखने के लिए करनी पड़ती है पैदल चलने की कवायद
सलीमगढ़ का किला का दीदार करना है तो पर्यटन यहां पर आ सकते हैं, लेकिन यहां पहुंचना थोड़ा कठिन है। इसकी वजह यह है कि इस किले में जाने का रास्ता लालकिला के अंदर से ही है। जब आप लाल किले से होते हुए छत्ता बाजार चौक तक पहुंचते हैं और बाईं ओर संग्रहालय की तरफ मुड़ जाते हैं तो वह रास्ता सलीमगढ़ की तरफ जाता है। जो लोग इस किले को देखने का मन बनाकर जाते हैं, वही यहां तक पहुंच पाते हैं।
लाल किले से गहरा रिश्ता
दरअसल, लालकिला देखने के बाद इस किले को नहीं देखा जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए लालकिला के मुख्य गेट से करीब एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। इस किले को स्वतंत्रता सेनानी स्मारक नाम भी दिया गया है। इसकी दीवारें काफी मोटी हैं। यह किला लालकिला से पहले का बना हुआ है। जब इसका निर्माण हुआ, तब से इसका संरक्षण कई बार कराया गया। कभी इस किला के दोनों ओर यमुना बहती थी।
500 साल पुराना है सलीमगढ़ का किला
सलीमगढ़ का नाम कई खौफनाक चीजों से भी जुड़ा हुआ है। आज के समय में यहां कुछ बैरकों और मस्जिद के ही अवशेष बचे हैं। शेरशाह सूरी के वंशज सलीम शाह ने इसे 1546 ईस्वी में बनवाया था और उसी के नाम पर इसका नाम सलीम गढ़ का किला रख दिया गया था। औरंगजेब और अंग्रेजों ने इस किले का इस्तेमाल कैदियों को यातना और फांसी देने के लिए किया। तमाम लोगों को यहां कैद रखा गया और फांसी दी गई। इसे भुतहा किला भी कहा जाता है।
किले में नहीं रहता को भूत
बताया जाता है कि औरंगजेब ने अपनी बेटी को यहां कैद रखा था, जिसकी भूख-प्यास से 22 दिन बाद मौत हो गई थी। किला में रात के समय कोई नहीं रहता है। सुनसान होने से यह किला भुतहा किला के नाम से बदनाम हो रहा है। परिवार सहित कम लोग ही यहां जाते हैं। इस किले को लेकर अफवाह है कि इस किले में प्रेतात्माएं रहती हैं, मगर एएसआइ के अधिकारी और किले के गेट पर ड्यूटी देने वाले सीआइएसएफ के जवान इसकी पुष्टि नहीं करते हैं। उनका कहना है कि यह कोरी अफवाह है।
काेरोना काल के बाद ही इस किले में संरक्षण कार्य की होगी बात
अब इस किले में संरक्षण कार्य की बात कोराेना काल के बाद ही होगी। इस किले में वर्षों से संरक्षण कार्य नहीं हुआ है। इस किले पर स्थित ऐतिहासिक जेल की दशा सुधारी जाएगी। जेल जर्जर हालत में है। माना जाता है कि यहां के कुछ कमरों में इंडियन नेशनल आर्मी के तीन सिपाहियों कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल जी एस ढिल्लन और मेजर जनरल एसएन खान को भी रखा गया था। इस जेल में बनी बैरकें अंग्रेजों द्वारा जी गई प्रताड़ना की कहानी कहती हैं। स्वतंत्रता सेनानियों को इन बैरकों में अत्यधिक कष्ट दिए जाते थे। इसके अलावा इस किला में बचे एक मात्र गुंबद में भी संरक्षण कार्य होना है। इसके साथ ही किला की बाहरी दीवारों पर भी जगह जगह टूटफूट हो गई है। इसे भी ठीक किया जाएगा।
कुछ-कुछ टावर ऑफ लंदन से मिलता-जुलता है किला
यह किला कुछ-कुछ टावर ऑफ लंदन से मिलता-जुलता है। यह किला हर दिन खुला रहता है और इसके खुलने का समय 10 बजे से 5 बजे का होता है। इसके लिए टिकट नहीं है। सबसे अच्छी बात तो यह है कि पर्यटक यहां पर फोटोग्राफी भी कर सकते हैं। लालकिला में जाने का शुल्क तो लगेगा, मगर इसके लिए अलग से किसी तरह का शुल्क नहीं है।
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