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दिल्ली के लालकिला की बावली में कैद रहे थे नेताजी की फौज के 3 सैन्य अफसर, जुड़ा है नेहरू से भी कनेक्शन

Subhash Chandra Bose Jayanti 2021 अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर ब्रिटिश आर्मी से लड़ाई में बर्मा में जनरल शाहनवाज खान और उनके दल को ब्रिटिश आर्मी ने 1945 में बंदी बना लिया था। मेजर जनरल शाहनवाज खान कर्नल प्रेम सहगल व कर्नल गुरुबक्श सिंह को इसी जेल में रखा गया।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 07:59 AM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 09:01 AM (IST)
दिल्ली के लालकिला की बावली में कैद रहे थे नेताजी की फौज के 3 सैन्य अफसर, जुड़ा है नेहरू से भी कनेक्शन
लालकिला की इस बावली को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है।

नई दिल्ली [वीके शुक्ला]। नेताजी सुभाष चंद्र बोस का देश की एतिहासिक धरोहर लालकिला से भी एक रिश्ता है। दरअसल, उनकी फौज के तीन सैन्य अधिकारियों को लालकिला की बावली में कैद करके रखा गया था। ऐसे में अब जबकि 23 जनवरी को नेताजी की 123वीं जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का भारत सरकार ने निर्णय लिया है, तो इस बावली का एतिहासिक महत्व और अधिक बढ़ जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) भी इस बावली को पर्यटकों के लिए खोलने पर विचार कर रहा है। इतिहास के जानकारों के मुताबिक अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर ब्रिटिश आर्मी से लड़ाई के दौरान बर्मा में जनरल शाहनवाज खान और उनके दल को ब्रिटिश आर्मी ने 1945 में बंदी बना लिया था। नवंबर 1946 में मेजर जनरल शाहनवाज खान, कर्नल प्रेम सहगल और कर्नल गुरुबक्श सिंह को इसी जेल में रखा गया था। इन पर अंग्रेजी हुकूमत ने मुकदमा चलाया था।

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नेहरू ने की थी सैन्य अधिकारियों की पैरवी

उस समय के नामी वकील और बाद में देश के पहले प्रधानमंत्री बने पं. जवाहर लाल नेहरू जैसे लोगों ने इन तीनों सैन्य अधिकारियों की पैरवी की थी। इसके बाद तीनों सैन्य अधिकारियों को कोर्ट ने अर्थदंड का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया था। कुछ साल पहले तक लालकिला के एक संग्रहालय में कोर्ट में वह सीन उपलब्ध था, जिसमें कैदी के रूप में तीनों सैन्य अधिकारियों को दिखाया गया था। वहीं, वकीलों के पैनल में पं. जवाहर लाल नेहरू को भी दिखाया गया था। पुराने संग्रहालय को हटाए जाने के बाद कुछ साल पहले इसे भी हटा लिया गया था।

बावली के इतिहास को लेकर रहा विवाद

लालकिला की इस बावली को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है कि इसे लालकिला के साथ बनाया गया था या फिर पहले की बनी है। इसके इतिहास को लेकर शुरू से ही विवाद रहा है। लालकिला के स्मारकों में इस बावली का जिक्र नहीं है। हालांकि, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) भी मान रहा है कि यह एक महत्वपूर्ण बावली है।

सुरक्षा व्यवस्था को लेकर फंसा पेच

वहीं, देशवासियों के लिए यह बावली इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस बावली में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाले तीन वीर सैनिकों को रखा गया था। इसमें अभी तक ताला लटक रहा था, लेकिन अब इसके नजदीक जाने की पर्यटकों को इजाजत दी जा चुकी है। यही नहीं अब एएसआइ पर्यटकों को बावली का वह भाग दिखाने पर भी विचार कर रहा है, जहां तीनों सैन्य अधिकारियों को रखा गया था। फिलहाल यहां की सुरक्षा व्यवस्था को लेकर पेच फंसा हुआ है। लालकिला में यहां पर है ये बावली लालकिला में प्रवेश करने के बाद छत्ता बाजार से जैसे ही आगे बढ़ते हैं। बाएं तरफ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी संग्रहालय है। इसी रास्ते पर थोड़ा आगे जाकर दाहिनी ओर बावली है, जिसमें जेल बनी है।  

लालकिला में बनाया गया है सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज संग्रहालय

दो साल पहले 23 जनवरी 2019 को लालकिला में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो चार संग्रहालयों का शुभारंभ किया था। उसमें एक संग्रहालय नेताजी सुभाष चंद्र बोस और उनकी आजाद हिंद फौज पर आधारित है। यह संग्रहालय उसी इमारत में बनाया गया है, जिसमें आजाद हिंद फौज के तीनों सैन्य अधिकारियों पर मुकदमा चलाया गया था। इस संग्रहालय में वह कुर्सी मौजूद है, जो नेताजी की है। इसके अलावा नेताजी की टोपी भी मौजूद है। इस टोपी को प्रधानमंत्री को भेंट किया गया था, जिसे उन्होंने इस संग्रहालय को समर्पित कर दिया। इसके अलावा नेताजी से जुड़ी तमाम यादें इस संग्रहालय में मौजूद हैं। जिसमें उनकी तलवार, पदक और आजाद ¨हद फौज की वर्दी शामिल है।

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