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जानिये- आखिर दिल्ली में कांग्रेस क्यों बुरी तरह हारी लोकसभा और विधानसभा चुनाव

कोई भी नया अध्यक्ष आता है तो अपने हिसाब से संगठन में बदलाव करता है लेकिन 2013 में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल ने ही आखिरी बार प्रदेश कार्यकारिणी का गठन किया था।इसके बाद 8 साल तक कोई बदलाव नहीं हुआ।

By Jp YadavEdited By: Published: Fri, 12 Mar 2021 08:35 AM (IST)Updated: Fri, 12 Mar 2021 10:30 AM (IST)
जानिये- आखिर दिल्ली में कांग्रेस क्यों बुरी तरह हारी लोकसभा और विधानसभा चुनाव
कमजोर संगठन के चलते कांग्रेस न तो दिल्ली में लोकसभा का कोई चुनाव जीती और न विधानसभा का।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली में कांग्रेस का जनाधार तो तेजी से घट ही रहा है, इसका संगठनात्मक ढांचा भी ढहने लगा है। आलम यह है कि आठ साल से प्रदेश कार्यकारिणी का गठन नहीं हुआ है तो विभिन्न प्रकोष्ठ भी फाइलों में धूल फांक रहे हैं। ऐसे में बिना संगठनात्मक मजबूती के सिर्फ एक वर्ष में होने वाले नगर निगम चुनाव में कामयाबी हासिल करना ख्वाब जैसा ही लगता है। किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए जमीनी स्तर पर मजबूत संगठनात्मक ढांचा होना बहुत जरूरी है। इसमें जितनी अहमियत प्रदेश कार्यकारिणी की है, उतनी ही जरूरी जिला व ब्लाक स्तर की मजबूती है।

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बता दें कि अमूमन कोई भी नया अध्यक्ष आता है तो अपने हिसाब से संगठन में बदलाव करता है, लेकिन 2013 में तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल ने ही आखिरी बार प्रदेश कार्यकारिणी का गठन किया था। इसके बाद 2013 में आम आदमी पार्टी सत्ता में आई तो जैसे कांग्रेस ने खुद से हथियार डाल दिए। 2013 के बाद से लेकर अभी तक इन आठ सालों में अरविंदर सिंह लवली, अजय माकन, शीला दीक्षित, सुभाष चोपड़ा और अनिल चौधरी के रूप में दिल्ली कांग्रेस को पांच अध्यक्ष मिल चुके हैं, लेकिन संगठन की मजबूती किसी के लिए भी प्राथमिकता नहीं रही। संगठन के कमजोर होने का ही नतीजा है कि इसके बाद से कांग्रेस न तो दिल्ली में लोकसभा का कोई चुनाव जीती और न विधानसभा का। नगर निगम में पार्टी के पार्षदों की हिस्सेदारी भी 10 फीसद से कम है। वोट फीसद तो हर चुनाव में घटता ही जा रहा है।

जिलाध्यक्ष भी फुलाने लगे मुंह

कमजोर होती पार्टी और चुनावों में लगातार मिल रही हार से ज्यादातर जिलाध्यक्ष भी मुंह फुलाने लगे हैं। उनकी शिकायत है कि काम तो उनसे खूब लिया जाता है, लेकिन सम्मान कभी नहीं मिलता। यहा तक कि पांच वार्डो के उपचुनाव में भी सारी जिम्मेदारी जिलाध्यक्षों पर डाल दी गई और बाद में उन्हें उनकी मेहनत के लिए प्रशंसा के दो शब्द भी नहीं कहे गए। प्रदेश प्रभारी शक्ति ¨सह गोहिल ने भी जिलाध्यक्षों के साथ कभी कोई बैठक नहीं की। इसी से आक्रोशित कुछ जिलाध्यक्षों ने कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने का समय भी मांगा है। 

उधर, (शक्ति सिंह गोहिल, प्रभारी, दिल्ली कांग्रेस) का कहना है कि पहले कोरोना और फिर उपचुनावों की वजह से संगठन का विस्तार टलता रहा। अब जल्द ही इस मुद्दे पर बैठकें आरंभ करके प्रक्रिया चालू की जाएगी। जिलाध्यक्षों के साथ भी अगले कुछ दिनों में बैठक होगी।


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