जानिए- क्यों मनोहर लाल के लिए बड़ी चुनौती होगा लोकसभा चुनाव 2019
असल में 2019 के इस लोकसभा चुनाव में भाजपा का बेहतर प्रदर्शन ही राज्य विधानसभा में जीत की नींव रखेगा।
नई दिल्ली [बिजेंद्र बंसल]। Lok Sabha Election 2019: इस बार हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव मुख्यमंत्री मनोहर लाल के लिए बड़ी चुनौती की तरह हैं। असल में लोकसभा के बाद अगले छह माह के दौरान हरियाणा विधानसभा के चुनाव होने हैं। 2014 में हरियाणा में भाजपा ने 10 में से 7 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसी जीत के दम पर ठीक पांच माह बाद अक्टूबर 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अपने दम पर पहली बार राज्य में सरकार बनाई थी। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंद के रूप में मनोहर लाल को मुख्यमंत्री बनाया गया था। मनोहर लाल ने इससे पहले भाजपा और संघ के संगठन में सक्रिय रूप से काम किया था, मगर शासन-सत्ता का काम उन्होंने पहली बार संभाला।
स्वयंभू संत रामपाल मामले और जाट आरक्षण आंदोलन से लेकर डेरा सच्चा सौदा प्रमुख की गिरफ्तारी के बाद हुई हिंसा के कारण राज्य में विपक्ष ने मुख्यमंत्री की अनुभवहीनता को मुद्दा बनाया लिया था। हालांकि सरकारी नौकरियों में पारदर्शिता, शिक्षक तबादला नीति और ईमानदार सरकार की छवि के चलते जब मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नेतृत्व में पार्टी को पांच नगर निगम के मेयर और जींद उपचुनाव में जीत मिली तो ये मुद्दे भी गौण हो गए। 2014 का लोकसभा चुनाव भाजपा ने तत्कालीन हरियाणा जनहित कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर लड़ा था, मगर तब सिर्फ भाजपा को ही चुनाव में सफलता मिली थी। इसके बाद विधानसभा चुनाव भाजपा ने अकेले के दम पर लड़ा था। इस बार भाजपा राज्य में लोकसभा चुनाव सभी दस सीटों पर अकेले के दम पर लड़ रही है। पार्टी के सामने 2014 में जीत दर्ज करने वाले सात सीटों को जीतने के साथ उन तीन सीटों पर भी विजय हासिल करने की चुनौती है, जिन पर सफलता नहीं मिल पाई थी।
2014 के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन रखेगा विधानसभा में जीत की नींव
भाजपा 2014 के मुकाबले इस बार दस सीट पर जीत दर्ज करने की रणनीति के साथ चुनाव मैदान में है। असल में 2019 के इस लोकसभा चुनाव में भाजपा का बेहतर प्रदर्शन ही राज्य विधानसभा में जीत की नींव रखेगा। इसके लिए पार्टी ने पूरी ताकत झोंकी हुई है। लोकसभा के प्रत्याशियों को इस बार यह भी फायदा हो रहा है कि प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में उनकी पार्टी के संभावित उम्मीदवार टिकट की आस में सक्रियता के साथ चुनाव प्रचार में जुटे हैं। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के नेता दो लोकसभा क्षेत्रों की 18 विधानसभा सीटों पर एक तरह से असमंजस में थे क्योंकि तब कांग्रेस नेता कुलदीप बिश्नोई के नेतृत्व वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस के साथ भाजपा का समझौता था।
पिछले चुनाव में था सिर्फ एक चेहरा अब हैं दो चेहरे
पिछले लोकसभा चुनाव में राज्य में कांग्रेस की सरकार थी और मोदी लहर के चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा समर्थक नेताओं ने तो यह भी कहना शुरू कर दिया था ऊपर नरेंद्र,नीचे भूपेंद्र। यानी लोकसभा में बेशक मतदाता नरेंद्र मोदी को वोट दे दें मगर विधानसभा चुनाव में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को ही विजयी बनाए। हालांकि हुड्डा समर्थक नेताओं का पार्टी लाइन से अलग यह नारा राज्य के मतदाताओं नकार दिया। कांग्रेस मुख्य विपक्ष की भूमिका में भी नहीं आ पाई थी। कांग्रेस से ज्यादा विधायक जीतने के कारण नेता प्रतिपक्ष का पद भी इनेलो के खाते में गया था। इस बार भाजपा के पास मोदी के अलावा राज्य में मनोहर लाल का भी नेतृत्व चेहरा है। पांच नगर निगम के मेयर और जींद उपचुनाव में भाजपा की जीत को नजर दौड़ाएं तो राज्य के गैर जाट मतदाताओं ने मनोहर लाल की ईमानदार छवि पर अपनी मुहर लगा दी है।
भाजपा को मिल रहा है बिखरी कांग्रेस और टूटे इनेलो का फायदा
राज्य में मुख्य विपक्षी दल इनेलो का विघटन हो चुका है। इनेलो के सांसद दुष्यंत चौटाला ने अलग जननायक जनता पार्टी बना ली है। इसके चलते दोनों ही पार्टियां अपने अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं। इतना ही नहीं इन पार्टियों में ताऊ देवीलाल के परंपरागत मतदाताओं को लुभाने की भी होड़ लगी है। इसी तरह राज्य में कांग्रेस भी विभिन्न नेताओं के गुटों में बंट गई थी। हालांकि लोकसभा चुनाव का बिगुल बजने के बाद प्रदेश प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव गुलाम नबी आजाद ने गुटों में बंटे नेताओं को समन्वय समिति बनाकर एकजुट करने का प्रयास किया मगर यह समिति कितनी कारगर साबित होगी, इसके बारे में भी लोकसभा चुनाव के नतीजे ही बयान करेंगे। कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा सोनीपत व रोहतक लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। सोनीपत में हुड्डा समर्थक नेताओं ने चौधर की लड़ाई को चुनावी मुद्दा बनाने का प्रयास किया है। हुड्डा समर्थक कह रहे हैं कि उनके नेता सांसद बनने के बाद विधानसभा चुनाव लड़ेंगे और राजनीतिक रूप से हुड्डा को चंडीगढ़ में मुख्यमंत्री की कुर्सी सोनीपत से दिल्ली भेजने के बाद मिलेगी। भाजपा नेता हुड्डा समर्थकों के इस बयान पर ही प्रतिकूल टिप्पणी कर रहे हैं।
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