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Virender Sehwag: क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने बताया, आखिर क्यों भाते हैं सिर्फ दिल्ली के पराठे

वीरेंद्र सहवाह कहते हैं मैं दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहूं लेकिन जब बात खानपान की आती है तब दिल्ली के पराठे स्ट्रीट फूड व अन्य जायकों का मेरे मुंह में स्वाद आ जाता है।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 13 Mar 2020 10:03 AM (IST)Updated: Fri, 13 Mar 2020 10:12 AM (IST)
Virender Sehwag: क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने बताया, आखिर क्यों भाते हैं सिर्फ दिल्ली के पराठे
Virender Sehwag: क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने बताया, आखिर क्यों भाते हैं सिर्फ दिल्ली के पराठे

नई दिल्ली [प्रियंका दुबे मेहता]। Virender Sehwag: क्रिकेट की दुनिया में 'मुल्तान के सुलतान' के नाम से मशहूर वीरेंद्र सहवाग अपनी बेबाकी के अलावा खाने-पाने के शौकीन के तौर पर भी जाने जाते हैं। वह कहते हैं ' दिल्ली के नजफगढ़ में पला बढ़ा हूं। मुझे लगता है दिल्ली दिल से जीने की जगह है, लेकिन देश के लिए खेलते हुए मैं दिल्ली में उस उम्र को नहीं जी पाया, जिसमें सबसे ज्यादा मस्ती होती है। करोलबाग से लेकर लाजपत नगर, जामा मस्जिद से लेकर कनॉट प्लेस तक घूमने और मस्ती करने की उस उम्र को मैंने क्रिकेट के नाम कर दिया था। दसवीं तक मैं नजफगढ़ में पढ़ा।

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ग्रेजुएशन के दौरान ही खेलने लगा था भारत के लिए

वीरेंद्र सहवाग बताते हैं- '10वीं के बाद की पढ़ाई राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक बाल विद्यालय विकासपुरी से की। उस दौरान मैं बड़े स्तर पर क्रिकेट खेलने लगा था। इसके बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि से स्नातक करने के दौरान दूसरे ही वर्ष में मैं इंडिया के लिए खेलने लगा तो दिल्ली के कॉलेजों व विश्वविद्यालयों का वह रोमांच भी मिस कर दिया जो टीन एज में लोगों को होता है।'

दिल्ली के पराठों के आगे हर जायका फीका है

मैं दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न रहूं, लेकिन जब बात खानपान की आती है तब दिल्ली के पराठे, स्ट्रीट फूड, अंडा पराठा व अन्य जायकों का मेरे मुंह में स्वाद आ जाता है। मुझे याद है जब मैं इंटरनेशनल खेलकर रात को करीब दो-तीन बजे घर आता था, और ऐसा होता था कि पराठे खाने की तलब हो जाती थी सो, उतनी रात में ही पराठे वाली गली जाकर पराठे खाता था। इसी तरह लाजपत नगर और अमर कॉलोनी का जायका याद आते ही भूख बढ़ने लगती है।

दो दशक में बहुत बदल गई दिल्ली

बीस-पच्चीस वर्षों में दिल्ली बिल्कुल बदल गई है। मेट्रो से लेकर सड़कों की खूबसूरती देखते ही बनती है। खूब विकास हुआ है, पर ट्रैफिक भी बढ़ा है। पहले बस से नजफगढ़ से दिल्ली पहुंचने में मात्र डेढ़ घंटा लगता था, अब तो ढाई घंटे में भी यह दूरी तय कर पाना मुश्किल होता है।

मेरी मां और बहन मेरे लिए शॉपिंग करती थीं

शॉपिंग के मामले में भी दिल्ली का कोई जवाब नहीं है, लेकिन अफसोस की बात है कि मैं उस दौर में भी शॉपिंग नहीं कर पाता था। इंडिया के लिए खेलने के दौरान तो शॉपिंग के लिए बिल्कुल समय नहीं मिल पाता था। पहले मेरी मां और बहन मेरे लिए शॉपिंग करते थे।

आपस में लड़ना ठीक नहीं

बच्चों के साथ गली में क्रिकेट खेलने का मुझे बहुत शौक है, लेकिन उस शौक को पूरा नहीं कर पाता हूं। हां, अपने बच्चों के साथ मैं जरूर खेलता हूं। दिल्ली में पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ उसे देखकर बहुत दुख होता है। पहले लोग एक दूसरे के साथ मिलजुल कर रहते थे। हमें भी उसी तरह एक साथ मिलकर रहना चाहिए। इस तरह एक दूसरे की दुकान, मकान व गाड़ियां जलाना ठीक नहीं है।

सड़क सुरक्षा के प्रति जागरूक हों लोग

हम अनएकेडमी क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन करने जा रहे हैं, जिनमें पांच देशों के पूर्व दिग्गज खिलाड़ी खेलेंगे। इस खेल के बीच में लोगों को सड़क सुरक्षा के लिए जागरूक किया जाएगा। इसका प्रसारण बूट एप, कलर्स व जियो टीवी पर होगा।


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