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कांग्रेस नेताओं में अचानक क्यों जागा सरदार पटेल के प्रति प्रेम, दिया इंदिरा गांधी के बराबर सम्मान!

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आमतौर पर कांग्रेस अपने नेताओं के समकक्ष किसी को नहीं रखती। लेकिन इस बार सरदार पटेल को इंदिरा गांधी के बराबर सम्मान दिया गया। राजनीतिक जानकारों की मानें तो अचानक उमड़े इस प्रेम की वजह आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 04 Nov 2021 06:02 PM (IST)Updated: Thu, 04 Nov 2021 06:02 PM (IST)
कांग्रेस नेताओं में अचानक क्यों जागा सरदार पटेल के प्रति प्रेम, दिया इंदिरा गांधी के बराबर सम्मान!
इंदिरा गांधी को पुण्यतिथि और सरदार पटेल को जयंती पर एक साथ पुष्पांजलि अर्पित करके नमन करते अनिल चौधरी

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली कांग्रेस कार्यालय में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि इस बार थोड़ा अलग अंदाज में मनाई गई। दरअसल, इस बार पुण्यतिथि के साथ सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती भी मनी। इंदिरा गांधी की तस्वीर के बगल में ही सरदार पटेल की तस्वीर लगाई गई और प्रदेश अध्यक्ष अनिल चौधरी सहित अन्य नेताओं ने दोनों को ही अपनी पुष्पांजलि अर्पित की। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि आमतौर पर कांग्रेस अपने नेताओं के समकक्ष किसी को नहीं रखती। लेकिन इस बार सरदार पटेल को इंदिरा गांधी के बराबर सम्मान दिया गया।

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राजनीतिक जानकारों की मानें तो अचानक उमड़े इस प्रेम की वजह आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव है। कांग्रेस को लगा कि कहीं अकेले भाजपा ही पटेल के नाम पर सारे वोट न बटोर ले। समय रहते कांग्रेसियों ने भी पटेल को गले लगा लिया है। इसलिए इंदिरा की पुण्यतिथि और पटेल की जयंती साथ मना डाली।

पटाखे तो ‘पटाखे’ निकले, मुफ्त में हो गए बदनाम

दिल्ली में पटाखों पर प्रतिबंध इसलिए लगाया गया, ताकि दिवाली पर भी हवा प्रदूषित न हो। पटाखों की बिक्री, भंडारण और खरीद सहित उनको जलाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया। यह प्रतिबंध न टूटे, इसके लिए पुलिस और एसडीएम की टीमें भी तैनात कर दी गईं, लेकिन पटाखे भी ‘पटाखे’ ही निकले। मुफ्त में बदनाम हो गए। पटाखे जले भी नहीं, दिवाली आई भी नहीं और धनतेरस पर ही पूरे दिल्ली-एनसीआर की हवा रेड जोन में पहुंच गई।

पर्यावरण विशेषज्ञों का साफ कहना है कि पटाखे कुछ घंटे ही जलते हैं, उनका असर भी लंबे समय तक नहीं रहता। वहीं जानकारों का कहना है कि दिल्ली में प्रदूषण की मुख्य वजह तो कुछ और है, पटाखों पर प्रतिबंध तो जनता को यह दिखाने का जरिया है कि सरकार को पर्यावरण की कितनी चिंता है। उधर, विपक्षी दल इस मुद्दे को धर्म से जोड़ने में भी पीछे नहीं हैं।

‘हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया..

कहते हैं राजनीति में वही सफल हो सकता है, जो मोटी चमड़ी रखता हो। मोटी चमड़ी से मतलब थोड़ा पक्के दिल वाला, हर छोटी बड़ी बात को दिल से नहीं लगाने वाला। इसका मतलब यह नहीं कि आंख- कान भी बंद कर लिए जाएं। लेकिन ऐसा लगता है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी और उनकी टीम के सदस्य ‘हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया..’ गीत गुनगुनाते हुए चल रहे हैं।

पार्टी के ही कुछ दिग्गजों की मानें तो कोई पार्टी छोड़े या घर बैठे, पार्टी कमजोर हो लाचार.. किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। बस अपने एजेंडे पर चला जा रहा है। एजेंडा शायद निगम चुनाव है। अपनों को टिकटें बांटनी है, अपनों को दिलवानी है। परिणाम चाहे कुछ हो। लेकिन कहीं ऐसा न हो जाए कि पहले लोकसभा, फिर विधानसभा और अब निगम चुनाव के बाद दिल्ली में भी पार्टी का हश्र बिहार जैसा न हो जाए।

कभी थे सितारे, अब किनारे

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रतिद्वंद्वी रहे कांग्रेस उम्मीदवार रोमेश सब्बरवाल आजकल तमतमाए हुए हैं। प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व को ट्विटर के जरिये गरिया भी रहे हैं। वजह यह कि जहां पिछले साल यह नेताजी पार्टी की नजर में इतने कद्दावर थे कि इन्हें दिल्ली की वीवीआइपी सीट नई दिल्ली विधानसभा क्षेत्र से आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी केजरीवाल की टक्कर में खड़ा कर दिया गया। अब इनकी यह हालत है कि प्रदेश नेतृत्व ने इन्हें अपनी जंबो कार्यकारिणी में सदस्य के तौर पर रखने में भी रुचि नहीं दिखाई।

गुस्से में नेताजी ने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और प्रदेश प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल को टैग कर ट्वीट किया, 'नई दिल्ली क्षेत्र में पार्टी को खड़ा करने के तनाव से मुक्ति मिलने पर खासी राहत महसूस कर रहा हूं। साबित हो गया है कि कांग्रेस में वफादारों से ज्यादा मजबूत विपक्षी दलों के एजेंट हो गए हैं'।


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