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Ramlila Maidan: ...जब भर आई थीं देश के पहले PM जवाहर लाल नेहरू की आंखें

रामलीला मैदान में 28 जनवरी 1961 के दिन ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ भी आई थीं। उन्होंने एक जनसभा को संबोधित किया था।

By JP YadavEdited By: Published: Sun, 16 Feb 2020 08:14 AM (IST)Updated: Sun, 16 Feb 2020 08:14 AM (IST)
Ramlila Maidan: ...जब भर आई थीं देश के पहले PM जवाहर लाल नेहरू की आंखें
Ramlila Maidan: ...जब भर आई थीं देश के पहले PM जवाहर लाल नेहरू की आंखें

नई दिल्ली [संजीव कुमार मिश्र]। दिल्ली के रामलीला मैदान में रविवार को अरविंद केजरीवाल की ताजपोशी होगी। करीने से सजी कुर्सियां, फूलों से महकता स्टेज मैदान की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है। यहां यह जानना भी दिलचस्प है कि दिल्ली के ऐतिहासिक सफर का हमसफर रहा यह मैदान कभी तालाब हुआ करता था। इसके आसपास बस्तियां थीं, इस कारण इसे बस्ती का तालाब कहा जाता था।

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जब भावुक हो गए जवाहर लाल नेहरू

रामलीला मैदान में 28 जनवरी 1961 के दिन ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ भी आई थीं। उन्होंने एक जनसभा को संबोधित किया था। भारत-चीन के बीच युद्ध के बाद यानी 26 जनवरी 1963 को यहां एक जनसभा का आयोजन किया गया था। युद्ध के ठीक दो महीने बाद आयोजित इस कार्यक्रम में लता मंगेशकर ने ए मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी गाना गाया था। कहते हैं, पंडित जवाहर लाल नेहरू समेत सभा में मौजूद हर एक शख्स की आंखें नम हो गई थीं। गाने का एक साउंड ट्रैक भी नेहरू जी को बतौर उपहार दिया गया। इसके दो साल बाद सन 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध के दौरान प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी रामलीला मैदान में एक सभा का आयोजन किया था। जिसमें उन्होंने जय जवान, जय किसान का नारा एक बार फिर दोहराया था।

होता था रामलीला का मंचन

इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं कि अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर की सेना में हिंदू सैनिक बहुतायत थे। सैनिक लाल किले के पीछे यमुना के रेत पर रामलीला का मंचन करते थे। 1845 में तालाब के बड़े हिस्से को समतल कर मैदान बना दिया गया। बाद में सैनिकों ने यहीं रामलीला का मंचन शुरू किया, जिसके बाद यह रामलीला मैदान के नाम से प्रचलित हो गया। लेकिन, 1880 के बाद यह मैदान ब्रितानिया सिपाहियों के संरक्षण में आ गया। सिपाहियों ने यहां कैंप बनाए, जहां लंबी ड्यूटी के बाद सिपाही आराम करते। सिपाहियों के जाने के बाद काफी समय तक यह मैदान बच्चों के खेलकूद के लिए ही इस्तेमाल होता रहा। हालांकि बाद के वर्षो में जैसे-जैसे दिल्ली की आबादी बढ़ी, खुले स्थानों की कमी हुई। तो यह मैदान रैलियों, जनसभाओं समेत बड़े कार्यक्रमों के लिए उपयोग होने लगा।

1945 में हुई थी जिन्ना की रैली
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल सरीखे नेताओं ने यहां से कई रैलियां कीं। ऐसा भी कहा जाता है कि सन 1945 में यहां मोहम्मद अली जिन्ना ने एक रैली की थी। जब जिन्ना रैली में बोलने लगे तो भीड़ में से कुछ लोगों ने मौलाना जिन्ना जिंदाबाद के नारे लगाए, लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने मौलाना की इस उपाधि पर नाराजगी जताई और कहा कि वो राजनीतिक नेता हैं न कि धार्मिक मौलाना। स्मिथ कहते हैं कि सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए भी इसका खूब प्रयोग हुआ। दिसंबर 1952 में जम्मू-कश्मीर के मसले श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने यहां सत्याग्रह किया था। प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1956 और 57 में मैदान में विशाल जनसभाएं की।

गूंजा था नारा- ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’

रामलीला मैदान धर्म,स्वतंत्रता संग्राम ही नहीं अपितु बड़ी राजनीतिक घटनाओं के लिए भी जाना जाता है। सन 1975 में 25 जून को रामलीला मैदान से ही लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने हुंकार भरी थी। विपक्षी नेताओं के साथ इंदिरा गांधी की सरकार को उखाड़ फेंकने आह्वान किया था। ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का नार यहां गूंज पड़ा। सरकार ने 25 -26 जून 1975 की रात आपातकाल लगा दिया। सन 1977 में यहां फिर से विपक्षी दलों की गर्जना हुई। जनता पार्टी के बैनर तले बाबू जगजीवन राम के नेतृत्व में कांग्रेस छोड़कर आए मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह और चंद्रशेखर के साथ भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन रूप जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी इसी मैदान के मंच पर एक साथ नजर आए।


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