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जानिए बांग्लादेश की आजादी में दिल्ली के चांदनी चौक की क्या थी भूमिका, किस तरह आजादी में रहा शामिल

बांग्लादेश की आजादी में जनसंघ (अब भाजपा) व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का योगदान कम नहीं था। लंबे समय तक बांग्लादेश को मान्यता दो सत्याग्रह किया था। इससे बांग्लादेश के लोगों की पीड़ा को वैश्विक पटल पर उभारने में मदद मिली थी

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Sun, 28 Mar 2021 11:40 AM (IST)Updated: Mon, 29 Mar 2021 10:19 AM (IST)
जानिए बांग्लादेश की आजादी में दिल्ली के चांदनी चौक की क्या थी भूमिका, किस तरह आजादी में रहा शामिल
उसने लंबे समय तक बांग्लादेश को मान्यता दो सत्याग्रह किया था।

नई दिल्ली, [नेमिष हेमंत]। बांग्लादेश की आजादी में जनसंघ (अब भाजपा) व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का योगदान कम नहीं था। उसने लंबे समय तक 'बांग्लादेश को मान्यता दो' सत्याग्रह किया था। इससे न सिर्फ बांग्लादेश के लोगों की पीड़ा को वैश्विक पटल पर उभारने में मदद मिली थी, बल्कि इससे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी बड़ा फैसला लेने की इच्छाशक्ति मिली थी।

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उस समय यह आंदोलन पूरे देश में चला था और दिल्ली का चांदनी चौक इसका प्रमुख केंद्र था। उस समय दिल्ली का मतलब ही चांदनी चौक या लुटियन दिल्ली होता था और अजमेरी गेट में जनसंघ का मुख्य कार्यालय था।

चांदनी चौक के प्रमुख समाजसेवी व कारोबारी नेता विजय गुप्ता उन दिनों को याद कर बताते हैं कि मुजीबुर्रहमान की पार्टी अवामी लीग को 1971 में जब बहुमत मिला और उन्होंने अलग बांग्लादेश की घोषणा कर दी तो पाकिस्तान की सेना ने वहां के लोगों पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए थे।

इसे लेकर जनसंघ ने इंदिरा सरकार पर हस्तक्षेप के लिए दबाव बनाने के लिए 'बांग्लादेश को मान्यता दो' आंदोलन चलाया था। इसके तहत तय हुआ कि हर सप्ताह एक तय दिन पर लालकिला से संसद भवन तक पैदल यात्रा निकाली जाएगी।

यह यात्रा चांदनी चौक, नई सड़क, चावड़ी बाजार, अजमेरी गेट व रामलीला मैदान होते हुए मिंटो ब्रिज से कनाट प्लेस की तरफ जाती थी। हर एक पदयात्रा में एक हजार से 1500 के बीच लोग हुआ करते थे। बांग्लादेश को मान्यता दो जैसे नारों से पूरा इलाका गूंज जाता था। जनसंघ के झंडे और बांग्लादेश के समर्थन में लोग प्लेकार्ड व बैनर लेकर चलते थे। उसमें हर वर्ग के लोग बढ़चढ़कर भाग ले रहे थे। यह आंदोलन भारत सरकार के बांग्लादेश को अलग देश के रूप में मान्यता देने तक चला।

उन्होंने बताया कि उस समय रामलीला मैदान से आगे बढ़ने पर ही सभी आंदोलनकारियों को हिरासत में ले लिया जाता था। फिर उन्हें एक से लेकर सात दिन तक हिरासत में रखा जाता था। विजय गुप्ता उस वक्त 17 साल के थे। उनके पिता राधेश्याम गुप्ता तब संघ में नगर कार्यवाह थे। ऐसे में विजय गुप्ता भी युवाओं के साथ इस आंदोलन में सक्रिय थे।

इस आंदोलन का नेतृत्व उस समय जनसंघ के दिग्गज नेता केदारनाथ साहनी, विजय कुमार मल्होत्रा, मदन लाल खुराना व कंवर लाल गुप्ता करते थे। वहीं, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी व डा. बलदेव प्रकाश समेत अन्य वरिष्ठ नेता भी कुछ पदयात्राओं में शामिल हुए थे।


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